भारत-अमेरिका गलबहियां
भारत और अमेरिका सहयोग को हर क्षेत्र में अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाने की दिशा…
भारत और अमेरिका सहयोग को हर क्षेत्र में अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से बातचीत के बाद हुए अहम समझौते इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण दे रहे हैं। दोनों देश व्यापार को बढ़ाने, रक्षा तैयारियों में रणनीतिक और भरोसेमंद साझेदार होने के चलते संयुक्त विकास, संयुक्त उत्पादन और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमत हुए हैं। सबसे महत्वपूर्ण इस बात पर सहमति हुई है कि भारत अमेरिका ट्रेड रूट इंडियन मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनामिक कॉरिडोर के निर्माण में मिलकर काम करेंगे। यह ट्रेड रूट भारत से इजराइल, इटली औरआगे अमेरिका तक जाएगा। डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बातचीत के दौरान भारत की चिंताओं से जुड़े मुद्दों पर भी चर्च की। एक तरफ ट्रम्प ने 2008 के मुम्बई आतंकवादी हमले के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा के प्रत्यार्पण की घोषणा की वहीं उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए भारत के सुर में सुर मिलाकर बातचीत की। खालिस्थान समर्थक तत्वों के उपद्रवों को लेकर ट्रम्प ने कड़ा रुख अपनाया। डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को हथियारों की बिक्री करने और एफ-35 स्टेल्थ लड़ाकू विमान देने का ऐलान किया। इसके अलावा अमेरिका भारत को तेल और प्राकृतिक गैस भी बेचेगा। इन सब समझौतों के बीच डोनाल्ड ट्रम्प टैरिफ के मुद्दे पर कोई भी छूट देने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि अगर कोई देश अमेरिका पर शुल्क लगाता है तो अमेरिका भी उस पर वैसा ही शुल्क लगाएगा। जैसा शुल्क भारत लगाएगा वैसा ही हम भी लगाएंगे।
ट्रम्प अपनी दूसरी पारी में एक हाथ से दे और दूसरे हाथ से ले की सीधी नीति अपनाए हुए हैं। जब उनसे सवाल किया गया कि भारत के साथ व्यापार पर सख्त रुख अपनाकर आप चीन से कैसे लड़ेंगे तो ट्रम्प ने कहा कि हम किसी को भी हराने में बहुत अच्छी स्थिति में हैं लेकिन हम किसी को हराने की कोिशश नहीं कर रहे हैं। हम वास्तव में अच्छा काम करना चाहते हैं। ट्रम्प के शब्द इस बात का संकेत हैं कि भविष्य की बातचीत में टैरिफ के मसले पर भी समाधान निकल आएगा। ट्रम्प से बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत ही सहज दिखे और ट्रम्प के साथ उनकी अच्छी कैमिस्ट्री भी नजर आई। प्रधानमंत्री ने ट्रम्प के माई ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (मागा) का उल्लेख करते हुए मीगा यानि मेक इंडिया ग्रेट अगेन का नारा दिया। यह नारा 2047 तक भारत को विकसित बनाने का संकल्प है। भारत ने इस संकल्प को पूरा करने के लिए अमेरिका से सहयोग मांगा। प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना काफी अर्थपूर्ण है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका और िवशाल लोकतंत्र भारत एक साथ आने का मतलब 1+1=2 नहीं बल्कि एक और एक ग्यारह होता है। यह ताकत दुनिया के कल्याण में काम आएगी।
आज के संबंधों की कुछ सकारात्मकता ओबामा प्रशासन के दौरान ही दिखाई दे रही थी। भारत ने बड़ी मात्रा में अमेरिका से सैन्य उपकरणों को खरीदने की शुरूआत की। इससे भी महत्वपूर्ण बात ये थी कि अमेरिका ने रक्षा व्यापार एवं तकनीक की पहल को लेकर खुद को प्रतिबद्ध किया। इस पहल ने रक्षा तकनीक के क्षेत्र के किरदार के रूप में उभरने की भारत की इच्छा को पूरा किया। 2015 में ओबामा की भारत यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने “एशिया पैसिफिक और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए साझा रणनीतिक दृष्टिकोण” पर हस्ताक्षर किए। ये पहल बाद में इंडो-पैसिफिक संबंधों को आगे ले गई। रक्षा रूप-रेखा समझौते का नवीनीकरण किया गया और 2016 में भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार माना गया।
ट्रम्प प्रशासन के दौरान आधिकारिक स्तर के संपर्कों में बढ़ौतरी हुई और अब इसने दोनों देशों के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों के बीच नियमित रूप से ‘‘2+2’’ बैठकों का रूप ले लिया है। कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। भारत ने 2016-2020 के बीच तीन बुनियादी समझौतों-लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट, कम्युनिकेशन कंपैटिबिलिटी एंड सिक्युरिटी एग्रीमेंट और बेसिक एक्सचेंज कोऑपरेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए। भविष्य में रक्षा उद्योग के क्षेत्र में तालमेल की भूमिका तैयार करते हुए भारत को “स्ट्रैटेजिक ट्रेड ऑथराइजेशन टियर 1” का दर्जा प्रदान किया गया और फिर 2019 में इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। ये ट्रम्प ही थे जिन्होंने आख़िरकार “एशिया पैसिफिक” का नाम “इंडो-पैसिफिक” करके और यहां तक कि अमेरिकी पैसिफिक कमांड का नाम इंडो-पैसिफिक कमांड रखकर भू-राजनीति में बदलाव की धारणा के लिए अमेरिका को प्रतिबद्ध किया। इसके बाद ट्रम्प प्रशासन के दौरान ही 2017 में क्वॉड में नई जान फूंकी गई। बिल क्लिंटन से शुरू होकर अमेरिका के अलग-अलग राष्ट्रपतियों ने अपने-अपने ढंग से प्रगतिशील और व्यवस्थित तरीके से भारत का कार्ड खेला है। तत्कालीन विदेश उप मंत्री स्ट्रोब टैलबोट और विदेश मंत्री जसवंत सिंह के बीच बातचीत ने भारत- अमेरिका संबंधों की जटिलताओं को सुलझाया जो अप्रसार से जुड़ी पाबंदियों के मुद्दे पर तनावपूर्ण हो गए थे लेकिन अमेरिका की रणनीति में भारत के महत्व को साफ तौर पर बताने का श्रेय जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन को जाता है।
2004 में सामरिक साझेदारी में अगले कदम के साथ शुरू होकर संबंध तेजी से आगे बढ़े और 2005 में भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को मंजूरी दी गई। परमाणु मुद्दा भारत और अमेरिका के लिए गले में अटकी गोली की तरह था लेकिन परमाणु समझौते ने दोनों देशों को सफलतापूर्वक इसे निगलने में मदद की। साथ ही इससे वो सामरिक संबंध तैयार करने में सहायता मिली जो हम आज देख रहे हैं और जिसे उसी समय हस्ताक्षरित “अमेरिका-भारत रक्षा संबंध के लिए नई रूप-रेखा” के द्वारा व्यक्त किया गया था। अमेरिका एक बार फिर दुनिया में हर जगह अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है। जिस तरह से ट्रम्प ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति पुतिन से सीधे बातचीत की है उससे इस बात के सीधे संकेत मिल रहे हैं। अमेरिका के साथ भारत की गलबहियां मजबूत और गहरी और व्यापक होती जा रही हैं वहीं भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाये रखने की जरूरत से अवगत है। दूसरों के वर्चस्व में की लड़ाई में भारत को फंसना गंवारा नहीं इसलिए भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए सतर्क भी रहना होगा।