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भारत-अमेरिका के ‘सम्बन्ध’

04:30 AM Aug 25, 2025 IST | Aditya Chopra
भारत अमेरिका के ‘सम्बन्ध’
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

आजादी के बाद से ही अमेरिका के साथ हमारे सम्बन्ध उतार-चढ़ाव लेते रहे हैं परन्तु वर्तमान समय में ये सम्बन्ध दरारों में फंसते नजर आ रहे हैं। इसकी मूल वजह बेशक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापारिक व विदेश नीति ही कही जा सकती है जिसके तहत वह लगातार भारत को चेतावनी मुद्रा में रख रहे हैं। मगर एेसा करते हुए वह शायद भूल रहे हैं कि भारत ने पिछले 76 सालों में जो भी प्रगति की है वह अपनी निर्दिष्ट व्यापार नीति व स्पष्ट विदेश नीति के अन्तर्गत ही की है। भारत की विदेश नीति आपसी सहयोग व शान्ति पर टिकी रही है और व्यापार नीति राष्ट्रीय हितों के समरूप रही है। भारत की आजादी के बाद इसके प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को ध्येय बनाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजी परक उद्योगों की नींव डाली। मगर एेसा करते हुए उन्होंने पहले अमेरिका की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को नजरंदाज नहीं किया। उन्होंने भारत में स्टील कारखाने शुरू करने से पहले अमेरिका से इसमें सहयोग करने की अपील की परन्तु अमेरिका ने उनके प्रस्ताव को यह कह कर टाल दिया कि स्टील उद्योग पूंजी मूलक उद्योग है और भारत बहुत गरीब देश है। अतः वह बजाये अपने कारखाने लगाने के स्टील अमेरिका से आयात करे। इसके बाद ही नेहरू जी ने सोवियत संघ का रुख किया और भारत के औद्योगीकरण में उसका सहयोग पाया जबकि दूसरी तरफ अमेरिका ने उस दौर में पाकिस्तान का रुख किया और उसे भारी आर्थिक व वित्तीय मदद दी। 1953 में अमेरिका ने पाकिस्तान को भारी मदद देने का एेलान किया।
यह भी हकीकत है कि 1947 से पहले अमेरिका भारत के दो टुकड़े करने के पक्ष में नहीं था और चाहता था कि चीन में कम्युनिस्टों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत को एकजुट व मजबूत रखा जाये परन्तु ब्रिटिश सरकार के रवैये के चलते भारत को दो टुकड़ों में काट कर पाकिस्तान का निर्माण कर दिया गया। अंग्रेजों का तर्क था कि रूस-चीन के बीच पाकिस्तान को एक एेसा देश बनाया जा सकता है जो मौका पड़ने पर पश्चिमी देशों व अमेरिका के लिए सहायक देश सिद्ध हो। इसके जरिये पश्चिमी देश मध्य एशिया के मुस्लिम देशों पर भी अपनी पकड़ बनाये रख सकते हैं। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों का दिल्ली स्थित वायसराय भारत से ही मध्य एशियाई देशों पर अपनी पकड़ बनाये रखता था। यही वजह थी कि इनमें से अधिसंख्य देशों में भारत की मुद्रा रुपये का प्रचलन था जो कि 1959 तक जारी रहा। इस नीति के चलते अमेरिका का पाकिस्तान प्रेम इस हद तक जारी रहा कि इसने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत को मिलने वाली खाद्यान्न मदद को भी रोक दिया।
पीएल-480 के तहत मिलने वाली भारत को अन्न मदद रोक कर अमेरिका पाकिस्तान की सीधी मदद इसलिए कर रहा था जिससे भारत की विशाल जनसंख्या उसकी ताकत को पहचान सके। इसके बाद ही भारत में हरित क्रान्ति हुई और भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना लेकिन अमेरिका ने भारत की स्वावलम्बी योजना का हमेशा से ही विरोध किया और 1974 में भारत ने जब पहला परमाणु परीक्षण पोखरन में किया तो अमेरिका ने अपनी विदेशी व्यापार धारा-300 के तहत भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये और नवीन टैक्नोलॉजी से इसे महरूम कर दिया। इसके बावजूद भारत लगातार तरक्की करता रहा और हालत यहां तक पहुंची कि जब 1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण शुरू हुआ तो अमेरिका ने धारा-300 के विभिन्न उपबन्धों को समाप्त कर दिया। इसके बाद 1998 में जब भारत ने पोखरन में दूसरा परमाणु परीक्षण किया तो फिर से नये आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये गये। ये प्रतिबन्ध 2008 में तब जाकर उठे जब भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया। अतः बहुत स्पष्ट है कि भारत अपनी शर्तों पर ही तरक्की करते हुए आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। जहां तक अमेरिका का सवाल है तो आज अमेरिका भारत से लगभग डेढ़ सौ अरब डालर का आयात करता है और करीब एक सौ अरब डालर का निर्यात करता है। हमने यह तरक्की पं. नेहरू के कार्यकाल से लेकर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तक की है परन्तु आज डोनाल्ड ट्रम्प कह रहे हैं कि भारत और रूस के बीच बहुत करीबी सम्बन्ध हैं जिनके तहत भारत रूस से कच्चा पैट्रोलियम तेल सस्ती दरों पर आयात करता है और फिर उसे अन्य देशों को निर्यात कर मुनाफा कमाता है। इस बारे में विदेश मन्त्री एस. जयशंकर ने साफ कर दिया है कि भारत से तेल खरीदने के लिए कोई देश बाध्य नहीं है।
विश्व में तेल व गैस के भावों को स्थिर रखने की गरज से ही भारत एेसा कर रहा है। यह उसकी व्यापार नीति है। मगर ट्रम्प भारत पर दबाव बनाने की गरज से उसके साथ होने वाली व्यापार वार्ता को बीच में ही लटकाये रखना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने भारत से आयातित माल पर सीमा शुल्क 50 प्रतिशत कर दिया है। यह इकतरफा दंडात्मक कार्रवाई भारत कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसी वजह से उसने 25 अगस्त से अमेरिका को भेजे जाने वाले हवाई पार्सलों पर अस्थायी रोक लगा दी है। हालांकि चिट्ठी- पत्री जाती रहेंगी और 100 डालर तक की कीमत वाले उपहार पार्सलों आदि पर भी रोक नहीं रहेगी। भारत यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि कोई तीसरा देश उसे इस वजह से दंडित करे कि उसने किसी तीसरे देश के साथ व्यापार किया है। भारत कोई सामान्य देश नहीं है। यहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी बसती है और इसका लोकतन्त्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है जो कि पूरे विश्व में एक उदार ताकत माना जाता है। अमेरिका को भारत की इस ताकत को पहचानना होगा। ट्रम्प इकतरफा गाड़ी किसी कीमत पर नहीं चला सकते हैं।

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