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भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता

04:30 AM Sep 15, 2025 IST | Aditya Chopra
भारत अमेरिका व्यापार वार्ता
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा
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भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता फिर से पटरी पर लौट आई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी वार्ता के लिए अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत भेजने को राजी हो गए हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके सलाहकार पीटर नवारो द्वारा भारत के ​िखलाफ दिए गए कड़वे बयानों के बाद अब ऐसा लगता है कि अमेरिका हालात सम्भालने की कोशिश कर रहा है। व्यापार वार्ता के लिए कूटनीतिक चैनलों से वार्ता जारी है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं। अमेरिका में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा ने कई प्रमुख अमेरिकी सांसदों के साथ द्विपक्षीय व्यापार संबंधों पर चर्चा की और कूटनीति के माध्यम से यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के प्रयासों के प्रति जानकारी दी। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भी व्यापार वार्ता को लेकर सकारात्मक संकेत दिए हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने भी यह स्वीकार किया है कि रूस से तेल की खरीद के लिए भारत पर भारी शुल्क लगाने से दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। ऐसा लगता है कि ट्रम्प भारत को लेकर दुविधा में फंस गए हैं। उनकी नीतियों में साफ विरोधाभास दिखाई देता है लेकिन वे अपने ही बुने जाल में फंसते जा रहे हैं। अब उन्हें लगता है कि कुछ न कुछ किया जाना चाहिए।
डोनाल्ड ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यापारिक संबंधों में सुधार के संकेत दिए। राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि वॉशिंगटन और दिल्ली के बीच चल रही बातचीत जल्दी किसी बेहतर नतीजे पर पहुंचेगी। ट्रम्प ने यह भी कहा कि वे सभी तरह की बाधाएं खत्म करने के लिए आने वाले हफ्तों में प्रधानमंत्री मोदी से बात करेंगे। ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टुथ सोशल पर एक पोस्ट में लिखा, 'मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बाधा को दूर करने के लिए बातचीत जारी है। आने वाले हफ्तों में मैं अपने बहुत अच्छे दोस्त, पीएम मोदी से बात के लिए उत्सुक हूं। मुझे पूरा विश्वास है कि दोनों महान देशों के लिए एक सफल नतीजे पर पहुंचने में कोई दिक्कत नहीं आएगी'। राष्ट्रपति ट्रम्प की इस पोस्ट के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक पोस्ट में लिखा, 'भारत और अमेरिका अच्छे दोस्त और नैसर्गिक सहयोगी हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि हमारी व्यापार वार्ता भारत-अमेरिका साझेदारी के असीमित संभावनाओं को खोलने का रास्ता बना देगी। हमारी टीमें इन चर्चाओं को जल्दी से जल्दी पूरा करने के लिए मेहनत कर रही हैं।
भारत और चीन ने जिस तरह से समूचे ​िवश्व को अमेरिका के जाल से बाहर निकालने का रास्ता ​िदखाया है, उसके बाद से ट्रम्प भारत को पुचकारने में लगे हैं। एक तरफ ट्रम्प भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ यूरोपीय देशों को भारत आैर चीन पर 100 प्रतिशत टैक्स लगाने को कहते हैं। ट्रम्प के भारत विरोधी बयानों का बड़ा कारण वहां की घरेलू राजनीति भी है। ट्रम्प का मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा भी सबसे बड़ा कारण है। ट्रम्प देश के लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि वह अमेरिका में उद्योगों और नौकरियों को बचाने के लिए यह सब कर रहे हैं। ट्रम्प की टैरिफ नीति के ​िवरोध में अमेरिका के भीतर भी आवाज बुलंद होने लगी है। ट्रम्प यह भी जानते हैं कि चीन को संतुलित करने के ​िलए भारत को पूरी तरह से अलग-थलग नहीं किया जा सकता। भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और वह किसी के दबाव में आने वाला नहीं है। भारत ने किसी भी दबाव के आगे झुकने से साफ इंकार करते हुए रूस से तेल और हथियार खरीदना जारी रखा हुआ है। यद्यपि मोदी सरकार ने पूर्व में अमेरिकी चेतावनियों के चलते ईरान और वेनेजुएला से तेल आयात को रोक दिया था लेकिन इस वर्ष रूस के साथ यह मामला काफी जटिल हो गया। रूस से हमारी ​िमत्रता और भारत की घरेलू जरूरतों को देखते हुए तेल की खरीद बहुत जरूरी है। इससे भारत के हितों की रक्षा होती है। दूसरा भारत कृषि और डेयरी उत्पादों को लेकर अमेरिका के साथ ऐसा समझौता नहीं कर सकता जिससे भारत के किसानों को नुक्सान पहुंचे।
भारत ​िकसानों की सुरक्षा के ​िलए कृषि क्षेत्र को आयात के लिए खाेलने के खिलाफ दृढ़ है। अमेरिका इस बात के लिए दबाव डाल रहा है कि कृषि और डेयरी उत्पादों का क्षेत्र खोला जाए क्यों​िक ऐसा समझौता यूरोपीय संघ और जापान के साथ भविष्य में समझौतों के लिए एक मिसाल कायम करेगा। ट्रम्प भारत पर इसलिए ज्यादा दबाव बना रहे हैं क्योंकि यह कदम व्यापार से ज्यादा भू-राजनीतिक दबाव बनाने के लिए भी हैं। हो सकता है कि ​व्यापार वार्ता में अमेरिका कुछ नए प्रस्ताव पेश करे ​जिसमें हथियारों की ड​ील भी शामिल हो। भारत को बहुत ही फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा, क्योंकि ट्रम्प पर अब ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। देखना होगा कि आने वाले दिनों में वार्ता का क्या नतीजा ​निकलता है। टैरिफ कटौती के अलावा बोइंग विमान, हैलीकॉप्टर और परमाणु रिएक्टर तक बड़े पैमाने पर कमर्शियल खरीद के ​लिए दबाव डाल सकता है। ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की होने वाली बातचीत में कोई न कोई समाधान निकलेगा। अमेरिका उन निर्मित वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करेगा जो पूंजी प्रधान हैं, जबकि भारत उन वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करेगा जो श्रम प्रधान हों। ट्रम्प अंततः तोल-मोल करके भारत से व्यापार करने पर सहमत हो सकते हैं। अब गेंद भारत के पाले में नहीं अमेरिका के पाले में है।

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Aditya Chopra

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