चांद पर इंसान भेजेगा भारत
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आज भारत का गौरव है। इसरो की स्थापना 1962 में हुई थी।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आज भारत का गौरव है। इसरो की स्थापना 1962 में हुई थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंिडत जवाहर लाल नेहरू ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारत की भागीदारी का स्वप्न देखा था। उस समय प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर विक्रम साराभाई को इसकी कमान दी गई थी। उस समय भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति की स्थापना हुई। बाद में व्यापक दृष्टिकोण के साथ इसका स्थान इसरो ने ले लिया। भारत की इस अग्रदूत संस्था ने विगत आधी सदी में अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित किए और सबसे बड़ी बात यह है कि अपने सीमित साधनों और सस्ती स्वदेशी तकनीक के साथ इसने विश्व की चोटी की अंतरिक्ष संस्थाओं की बराबरी कर ली। एक समय ऐसा भी था जब संसाधनों की कमी की वजह से रॉकेटों को बैलगाड़ी से ले जाया जाता था। इसके अलावा भारतीय वैज्ञानिक हर रोज दोपहर का खाना रेलवे स्टेशन पर खाया करते थे।
इसरो ने राष्ट्र और आम जनता की सेवा के लिए अंतरिक्ष विज्ञान को एक नई पहचान दी है। इसरो के पास संचार उपग्रह तथा सुदूर संवेदन उपग्रहों का बृहत्तम समूह है जो द्रुत तथा विश्वसनीय संचार एवं भू-प्रेक्षण की बढ़ती मांग को पूरा करता है। इसरो राष्ट्र के उपयोग के लिए विशिष्ट उपग्रह उत्पाद एवं उपकरणों को प्रदान करता है जैसे कि प्रसारण, संचार, मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन उपकरण, भौगोलिक सूचना प्रणाली, मानचित्रकला, नौवहन, दूर-चिकित्सा आदि। इन उपयोगों के कारण, विश्वसनीय प्रमोचक प्रणालियां विकसित करना आवश्यक था इससे संपूर्ण आत्मनिर्भता हासिल हुई और ध्रुवीय उपग्रह राकेट (पी.एस.एल.वी.) के रूप में उभरी। प्रतिष्ठित पी.एस.एल.वी. विभिन्न देशों के उपग्रहों का सबसे प्रिय वाहक बन गया, अपनी विश्वसनीयता एवं लागत प्रभावी होने के कारण जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिला। इसरो के चन्द्रयान-1 और चन्द्रयान-3 सफलतापूर्वक लांच कर पूरी दुनिया को दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर दिया। कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि इसरो दुनिया की एक अंतरिक्ष ताकत बन जाएगा। हर भारतीय नागरिक के लिए यह खुशी की बात है कि इसरो ने अब अपने अंतरिक्ष मिशनों की तारीखों की घोषणा कर दी है। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने घोषणा कर दी है कि मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन गगनयान 2026 में लांच होने की सम्भावना है। साथ ही चांद से सैंपल लेकर आने वाले मिशन चन्द्रयान-4 को वर्ष 2028 में लांच किया जाएगा। भारत और अमेरिका के संयुक्त अभियान को 2025 में लांच किया जाएगा जबकि चन्द्रयान-5 मिशन जापान की अंतरिक्ष एजैंसी के साथ मिलकर पूरा िकया जाएगा। चन्द्रयान-5 मिशन के तहत जो रोवर भेजा जाएगा वो करीब 350 किलो का होगा। इसरो की योजना वर्ष 2040 में चांद पर इंसानी मिशन भेजने की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विगत वर्षों में इसरो ने अनेक उपलब्धियां अपने नाम की हैं और अविश्वसनीय कीर्तिमान बनाए हैं। फिलहाल कुछ चुनौतियां भी सामने हैं, जैसे- लांच वाहनों को उन्नत तकनीक से युक्त करना, अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देने के लिए दक्ष ट्रेनिंग सेंटर्स का निर्माण, जीवन रक्षा प्रणालियों और उन्नत स्पेस सूट का विकास आदि। हमारे देश के समर्पित वैज्ञानिक इस दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को अभी भी िवस्तार देने की जरूरत है क्योंकि वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष क्षेत्र में इसरो का योगदान सिर्फ 2 प्रतिशत है। एक दशक में इसे बढ़ाकर कम से कम 10 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। खास बात यह है कि अब प्राइवेट सैक्टर भी अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश करने में रुचि दिखा रहा है। बहुत सी चीजें जो पारम्परिक रूप से केवल इसरो द्वारा की जा सकती थी अब निजी क्षेत्र द्वारा की जा रही हैं। अभी भी निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने वाली नई नीतियों की जरूरत है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम इसरो से जुड़े रहे और उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी प्रक्षेपण यान एलएलवी-3, पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, नाग और आकाश जैसी स्वदेशी मिसाइलों का विकास किया और चन्द्रयान-1 मिशन का नेतृत्व भी िकया। आज इसरो के पास चोटी के वैज्ञानिकों की बड़ी टीम है और अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं का नेतृत्व महिला वैज्ञानिक भी कर रही हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई सार्वजनिक उपक्रम विफल हुए। जबकि इसरो एक ऐसी संस्थान रही जिसने अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की धाक जमा दी। इसरो की ताकत को अमेरिकी अंतरिक्ष एजैंसी नासा भी स्वीकार करती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com