‘सीटियों’ वाला भारतीय गांव ‘कोंगथोंग’
जहां एक ओर मराठी, तमिल, पंजाबी व अन्य भाषाओं को लेकर विवादों के सिलसिले जारी हैं, वहां भारत के पूर्वोत्तर पहाड़ी क्षेत्र में मेघालय राज्य के पूर्वी खासी हिल्स जिले में एक गांव ‘कोंगथोंग’ अपनी सीटियों की भाषा में ही बात करने में सुख पाता है। कोंगथोंग, संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (यूएनडब्ल्यूटीओ) की दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गांव प्रतियोगिता के लिए भारत की प्रविष्टि है और यूनेस्को में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की स्थिति के लिए दावेदार है। कोंगथोंग एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो अपने मनोरम दृश्यों और निवासियों की अनूठी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां के लोग सीटी वाली भाषा ‘जिंग्रवाई इओबेई’ का उपयोग करते हैं। अमेरिका, जर्मनी और जापान सहित कई देशों के पर्यटक और भाषा शोधकर्ता यहां आते हैं। गांव के प्रत्येक मूल निवासी का एक अनूठा नाम है जो एक सीटी वाली लोरी है और ग्रामीण एक-दूसरे को लोरी बजाकर बुलाते हैं।
कोंगथोंग अर्थात ‘जिंग्रवाई इओबेई’ सीटी वाली लोरी के नाम से जाना जाता है। जहां प्रत्येक मूल निवासी के पास अपने लिए एक अद्वितीय सीटी वाली लोरी का नाम है और वे एक दूसरे को इस लोरी को सीटी बजाकर बुलाते हैं।
भूगोल : कोंगथोंग गांव पूर्वी खासी पहाडि़यों में स्थित एक शांत और मनोरम पहाड़ी गांव है। गांव की आबादी लगभग 500 से 700 लोगों की है।
जिंग्रवाई इआेबेई (सीटी भाषा) : कोंगथोंग के लोग खासी जनजाति से हैं जो खासी भाषा बोलते हैं जो एक बोलचाल की भाषा है। हालांकि कोंगथोंग में गांव के प्रत्येक सदस्य के नाम के रूप में अनोखी सीटी की धुन रखने की विशिष्ट परंपरा है। इसे ‘जिंग्रवाई इआेबेई’ अर्थात ‘मूल पूर्वज’ के सम्मान में गाया जाने वाला राग माना जाता है। प्रत्येक नवजात शिशु को मां द्वारा एक अनोखे नाम के रूप में दिया जाता है जो उस व्यक्ति की स्थायी पहचान बन जाता है। यह नाम एक शब्द नहीं है बल्कि एक सीटी के रूप में एक अनोखा कॉल नाम या कॉलर ट्यून है, यानी ‘कॉल’ करने वाला एक धुन गुनगुनाता है जो एक अनोखा ‘नाम’ है जिसे केवल ग्रामीणों द्वारा ही समझा जा सकता है।’ शिशुओं का यह नामकरण एक मातृसत्तात्मक परंपरा है जिसमें मां बार-बार सीटी के रूप में विशिष्ट संगीतमय धुन गुनगुनाती है जिसके बढ़ते बच्चे धीरे-धीरे आदी हो जाते हैं। यह अनोखी सीटी की धुन या ‘जिंग्रवाई इआेबेई लोरी’ व्यक्ति का अनूठा नाम और स्थायी पहचान बन जाती है सभी ग्रामीण एक-दूसरे को उनके लिए निर्धारित विशिष्ट कॉलर ट्यून से बुलाते हैं। प्रत्येक जिंग्रवाई इआेबेई या व्यक्ति के विशिष्ट नाम के दो रूप होते हैं, छोटा और लंबा।
इस परंपरा पर शोध करने वाले शोधकर्ता डॉ. पियाशी दत्ता के अनुसार, प्रत्येक कबीले का एक मूल पूर्वज होता है। हर बार जब किसी बच्चे के लिए धुन बनाई जाती है तो उस पूर्वज को सम्मान दिया जाता है। ‘जिंगरवाई इओबेई’ एक राग (जिंगरवाई) है जो मूल पूर्वज (इओबेई) के सम्मान में गाया जाता है। इस परंपरा की उत्पत्ति के बारे में कई लोक कथाएं हैं जो इस बात पर केंद्रित हैं कि ‘कैसे एक आदमी कुछ गुंडों से जूझते हुए एक पेड़ पर चढ़ गया। उसने अपने दोस्तों के नाम सीटी बजाकर पुकारे ताकि वे आकर उसे बचाएं और गुंडों को इसकी जऱा भी भनक न लगे’। संवाद करने के इस अनोखे तरीके ने दुनियाभर के पर्यटकों के साथ-साथ भाषा अनुसंधान विद्वानों को भी आकर्षित किया है।
इस गांव में 8वीं कक्षा तक का एक मिडिल स्कूल है। यह गांव सोहरा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है जो अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र है। गांव की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। ग्रामीण अपनी फसल बेचने के लिए पहाड़ी से नीचे उतरकर बाज़ारों तक लंबी यात्राएं करते हैं, जहां वे पूरे गांव के लिए हफ्ते भर की ज़रूरत की चीज़ें भी खरीदते हैं।
परिवहन : कोंगथोंग, शिलांग से लगभग 65 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है जो 2017 तक ऐसे अन्य गांवों की तरह ही दूरस्थ बना हुआ है लेकिन हाल ही में एक मोटर योग्य सड़क से जुड़ा है। चेरापूंजी (दक्षिण-पश्चिम), खतरशनोंग (उत्तर), पिनुरस्ला (दक्षिण-पूर्व) और दावकी (दक्षिण-पूर्व, बंगलादेश-भारत सीमा पर एक हाट और आव्रजन चौकी) पास के बड़े शहर हैं। ये सभी राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों से जुड़े हुए हैं। शिलांग हवाई अड्डा (65 किमी उत्तर पूर्व) और सेला हवाई अड्डा (75 किमी दक्षिण पूर्व) निकटतम हवाई अड्डे हैं। मेंदीपाथर रेलवे स्टेशन (272 किमी उत्तर पश्चिम) निकटतम रेलवे स्टेशन है।
कोई भी इस गांव कोंगथोंग की यात्रा कर सकता है जिसका एक रास्ता घाटियों और दूसरी तरफ चट्टानों वाले पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरता है और यह एक बेहद सुखद व मनोहारी अनुभव है। यह गांव मनोरम पहाडि़यों से घिरा हुआ है, जिनमें से कुछ पृथ्वी पर सबसे अधिक वर्षा वाले सबसे नम मार्ग में से हैं (पहले चेरापूंजी सबसे अधिक नम हुआ करता था, अब पास के मावसिनराम ने इसे सबसे नम बना लिया है)। इस क्षेत्र में जीवित जड़ पुल, जलप्रपात और भौगोलिक संरचनाएं हैं जैसे ‘जिंगकिएंग म्योर’ जो एक प्राकृतिक पत्थर का पुल है जो दो चट्टानों को सोहरा नदी से जोड़ता है जो इसके सौ फीट नीचे बहती है। पर्यटक स्थानीय ‘ग्रामीण-पर्यटन’ के आतिथ्य का आनंद लेते हैं। ग्रामीणों को अपने निवासियों के नाम के रूप में जिंग्रवाई इआेबेई धुनों की अनूठी परंपरा को जीवित रखने की चिंता है। वे स्कूल को उच्च कक्षाओं में अपग्रेड करने और स्कूल में ‘सीटी भाषा’ पढ़ाने की मांग कर रहे हैं। कैनरी द्वीप में सिल्बो गोमेरो सीटी भाषा 22,000 चिकित्सकों के साथ और तुर्की पक्षी भाषा 10,000 चिकित्सकों के साथ स्कूल में पढ़ाई जाती है और दोनों को क्रमश: 2013 और 2017 में यूनेस्को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई थी, जबकि केवल 700 चिकित्सकों के साथ जिंग्रवाई इआेबेई को स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता है जिससे इसके संरक्षण के लिए चिंताएं पैदा
होती हैं।