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ब्रिटेन के चुनाव में भारत का डंका

ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी की बड़ी जीत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों ने इस बार कंजरवेटिव पार्टी को समर्थन दिया है।

03:45 AM Dec 16, 2019 IST | Ashwini Chopra

ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी की बड़ी जीत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों ने इस बार कंजरवेटिव पार्टी को समर्थन दिया है।

ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी की बड़ी जीत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों ने इस बार कंजरवेटिव पार्टी को समर्थन दिया है। 650 सीटों वाली संसद में कंजरवेटिव पार्टी ने बहुमत के लिए 326 का आंकड़ा पार कर लिया है और उसके खाते में 368 सीटें आई हैं। उसे पिछली बार की तुलना में 47 सीटों का फायदा हुआ है। भारतीय मूल के प्रवासी परम्परागत रूप से लेबर पार्टी के समर्थक रहे हैं। 
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लेबर पार्टी इन चुनावों में पराजित क्यों हुई, उसके पीछे बहुत से कारण हैं लेकिन एक बड़ा कारण यह भी है कि लेबर पार्टी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध किया था। इससे वहां रहने वाले पंजाबी समुदाय और गुजराती समाज के लोग नाराज थे। इसलिए उन्होंने लेबर पार्टी का साथ छोड़ कंजरवेटिव पार्टी को वोट दिया। भले ही भारतीय समुदाय चुनाव नतीजों को प्रभावित करने में ज्यादा सक्षम नहीं है लेकिन यह भी वास्तविकता है कि लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कार्बिन बहुत लोकप्रिय नहीं हैं। 
उनकी नीतियां जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा या विदेश नीति को लेकर आम लोगों की राय यही थी कि उनकी नीतियां सही हैं लेकिन ब्रेक्जिट पर उनकी नीतियां ढुलमुल रही। जिसकी वजह से उन्हें चुनावों में भारी नुक्सान उठाना पड़ा। लेबर पार्टी को 1935 के बाद अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा है। कंजरवेटिव पार्टी को 1987 के बाद सबसे बड़ी जीत मिली है। लेबर पार्टी को 59 सीटों का नुक्सान हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को देश के मतदाताओं ने न केवल ब्रेक्जिट करने बल्कि पूरे राष्ट्र को एकजुट करने और इसे आगे बढ़ाने का शक्तिशाली जनादेश दिया है। 
हैरानी की बात तो यह भी है कि ब्रे​क्जिट पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। इन चुनावों ने साबित कर दिया कि ब्रिटेन की सियासत में भारतीयों का दबदबा बढ़ चुका है। कंजरवेटिव पार्टी की तरफ से भारतीय मूल के सात सांसदों ने चुनाव जीता है। पिछले चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी के महज पांच सांसद भारतीय मूल के थे, अब उनकी संख्या बढ़कर सात हो गई है। इस बार लेबर पार्टी की तरफ से भी भारतीय मूल के सात प्रत्याशी जीतने में सफल हो गए हैं। इस तरह से भारतीय मूल के लोगों का सत्ता और विपक्ष दोनों में दबदबा रहेगा। 
पहली बार चुनाव जीतने वालों में गगन मोहिंदर, क्लेयर कूटिन्हो, नवेंद्रु मिश्रा और मुनीरा विल्सन हैं। मोहिंदर ने कंजरवेटिव पार्टी के टिकट पर हार्टफोर्ड शायर साउथ वैस्ट सीट से जीत दर्ज की। नवेंद्रु लेबर पार्टी से स्टॉकपोर्ट सीट से चनाव जीते हैं, जबकि विल्सन लिबरल डेमोक्रेट्स के टिकट पर साउथ-वैस्ट लंदन की सीट से निर्वाचित हुई। आसान जीत के साथ दोबारा संसद पहुंचने वाले भारतीय मूल के कंजरवेटिव उम्मीदवारों में प्रीति पटेल भी शामिल हैं। इसी पार्टी से इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनक और आलोक शर्मा भी दोबारा संसद पहुंचे। शैलेस वारा ने नॉर्थ वैस्ट कैंब्रिजशायर और गोवा मूल की सुएला ब्रावरमैन ने फेयरहम सीट से जीत दर्ज की। 
पिछले चुनाव में पहली सिख महिला के तौर पर संसद पहुंचने का रिकार्ड बनाने वाली प्रीत कौर गिल बर्मिंघम एजबेस्टन सीट से फिर चुनी गई हैं। तनमनजीत सिंह ढेसी दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड की स्टफ सीट से भारतीय मूल के ही कंजरवेटिव उम्मीदवार कंवर तूर मिल को हराकर दोबारा संसद पहुंचे। वीरेन्द्र शर्मा ने ईलिंग साउथहाल सीट से आसान जीत दर्ज की। लीजा नंदी विगान सीट और सीमा मल्होत्रा फेल्थम एंड हेस्टन सीट से दोबारा निर्वाचित हुईं। पूर्व सांसद कीथ वाज की बहन वेलरी वाज ने वाल्सल साउथ सीट पर भारतीय मूल के कंजरवेटिव उम्मीदवार गुरजीत बैंस को परास्त किया। 
भारतीय मूल के 63 लोगों ने चुनाव लड़ा था। इनमें 25 को कंजरवेटिव पार्टी ने चुनाव मैदान में उतारा था। लेबर पार्टी से 13, ब्रेक्जिट पार्टी से 12 और लिबरल डेमोक्रेट्स से आठ भारतवंशियों ने चुनाव लड़ा। अब यह स्पष्ट है कि भारत-ब्रिटेन रिश्ते जो पहले ही काफी मधुर हैं और आगे भी रहेंगे। कंजरवेटिव पार्टी की सरकार ने कुछ कदम उठाए थे, जैसे भारतीय छात्र यहां आकर दाे साल रहकर काम कर सकते हैं, उसका कुछ लाभ मिला है। नई व्यापार नीति जो बनेगी उसमें भारत का हाथ थोड़ा मजबूत रहेगा। बोरिस जॉनसन चाहेंगे कि अच्छी से अच्छी व्यापारिक डील हो, इससे रिश्ते और घनिष्ठ होंगे। 
अब यह सुनने में आ रहा है कि ऐसे अप्रवासियों को तरजीह दी जाएगी जो पढ़े-लिखे हों, कुशल हों, निवेश के लिए आना चाहते हों, बड़ी कम्पनियों में काम करना चाहते हों क्योंकि इसमें भारत के लोग फिट बैठते हैं। कुल मिलाकर लगता है कि दोनों देशों के बीच संबंध पहले से बेहतर होंगे। मॉरीशस को लेकर भारत और ब्रिटेन के बीच कुछ मनमुटाव है। मॉरीशस के द्वीप समूहों को देने से ब्रिटेन  आनाकानी कर रहा है। इस मसले पर भी कुछ फैसला हो सकता है। इसके अलावा जलियांवाला बाग हत्याकांड के मामले में बोरिस जॉनसन अमृतसर जाकर जो माफी मांगना चाहते थे, इस पर कुछ आगे बढ़ने की स्थिति में व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्तों में और सुधार आएगा।
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