भारत का राफेल!
भारत में बनेगा राफेल जेट का ढांचा, टाटा का बड़ा कदम…
राफेल फाइटर जेट की बॉडी अब भारत में बनेगी। इसके लिए भारत की टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (टीएएसएल) ने फ्रांस की कम्पनी डसाल्ट एविएशन (दसॉ) के साथ साझेदारी का करार किया है। राफेल जेट के मेन ढांचे को फ्यूजलाज कहा जाता है। यह पहला मौका होगा जब इसका ढांचा फ्रांस से बाहर बनाया जाएगा। इसे बहुत बड़ी उपलब्धि ही माना जाएगा कि यह अवसर टाटा कम्पनी को मिला है। टाटा ग्रुप पहले ही डसाल्ट के साथ मिलकर राफेल और मिराज 2000 जेट विमानों के पुर्जे बनाता है। यह साझेदारी भारत के हवाई जहाज बनाने के सफर में एक मील पत्थर साबित होगा। यह इस बात का प्रमाण भी है कि भारत ने एक आधुनिक और मजबूत एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम तैयार करने में जबरदस्त प्रगति की है जो दुनिया की बड़ी कम्पनियों को सहयोग दे सकता है।
एयरक्राफ्ट फ्यूजलाज विमान का वह हिस्सा होता है जिससे पंख, पूंछ और इंजन जुड़े होते हैं। यही ढांचा विमान को आकार देता है। फ्यूजलाज का 40 फीसदी हिस्सा कार्बन, फाइबर कोपोजिट से बनता है। यह मैटिरियल हल्का और बहुत मजबूत होता है जिससे जेट का वजन कम रहता है और रफ्तार बढ़ती है। इंजन के आसपास और ज्यादा तनाव वाले हिस्सों में टाइटेनियम का इस्तेमाल होता है ताकि विमान गर्मी और दबाव झेल सके। कुछ हिस्सों में एल्युमिनियम, लीथीयम धातु का इस्तेमाल होता है। दसॉ कम्पनी ने पिछले 100 सालों में 90 से अधिक देशों में दस हजार से अधिक सैन्य और नागरिक विमान वितरित किए हैं जिनमें 2700 फाल्कन विमान शामिल हैं। कम्पनी को विमानों के डिजाइन, उत्पादन बिक्री में दुनियाभर में दक्षता हासिल है।
लगभग एक दशक पहले तक, भारतीय एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र पर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के नेतृत्व वाली सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं का वर्चस्व था। आज, भारत के निजी क्षेत्र ने एक मजबूत एयरोस्पेस क्षेत्र बनाया है, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से टाटा समूह कर रहा है, जिसके तहत कई संस्थाएं घटक बनाने के साथ-साथ विमानों की पूरी तरह से असेंबली में लगी हुई हैं। एयरोस्पेस व्यवसाय का उदय करने वाले टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा यद्यपि अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जिनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की है। रतन टाटा के मार्गदर्शन में, जिनका विमानन के प्रति प्रेम बहुत प्रसिद्ध है, समूह ने प्रमुख वैश्विक एयरोस्पेस कम्पनियों के साथ संयुक्त उपक्रम में करार किया है और पिछले 10-15 वर्षों में भारत को वैश्विक एयरोस्पेस आपूर्ति शृंखला में शामिल किया है।
टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड के नेतृत्व में, टाटा समूह ने अब बोइंग और एयरबस, दो अग्रणी एयरोस्पेस दिग्गजों के साथ संयुक्त उपक्रम किया है। एक दशक पहले तक घटकों, विमान भागों के विनिर्माण से, टाटा समूह अब अपने भागीदारों के साथ विमान और हेलीकॉप्टरों की असेंबली करने में सक्षम कम्पनियों की कुलीन श्रेणी में प्रवेश कर चुका है। बोइंग वर्तमान में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के साथ एक संयुक्त उद्यम से अपाचे अटेक हेलीकॉप्टरों के लिए धड़ और साथ ही 737 यात्री विमानों के लिए ऊर्ध्वाधर पंख संरचना का स्रोत है। एयरबस के साथ, घटकों के निर्माण और उन्हें निर्यात करने के अलावा, टाटा समूह अब सैन्य परिवहन विमानों और नागरिक हेलीकॉप्टरों के निर्माण और असेंबली में लगा हुआ है।
टाटा समूह सी 295 जैसे परिवहन विमानों का निर्माण भी कर रहा है साथ ही एयरोइंजन के उत्पादन और विकास में भी शामिल है। यह समूह रक्षा उपकरणों के विकास और उत्पादन में भी सक्रिय है जिनमें मानव रहित प्रणालियां, मिसाइलें और तोपखाने शामिल हैं। यह समूह एयरोस्पेस में सिस्टम एकीकरण में भी विशेषज्ञता रखता है। टाटा समूह मेक इन इंडिया अभियान के तहत एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार जुटा हुआ है। कौन नहीं जानता कि भारत की पहली विमानन कम्पनी एयर इंडिया की शुरूआत टाटा परिवार ने ही की थी। बाद में सरकार ने एयर इंडिया को टेक ओवर कर लिया था। 2021 के अंत में टाटा संस ने सफल बोली लगाकर एयर इंडिया को वापस पा लिया था। दसॉ कम्पनी ने टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स पर भागीदारी अनुबंध करके पूरा भरोसा जताया है।
यह परियोजना भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग का बड़ा कदम है। इससे भारत में रक्षा उपकरण बनाने की क्षमता बढ़ेगी और स्थानीय इंजीनियरों को विश्व स्तरीय तकनीक सीखने का मौका मिलेगा। यह भारत के आधुनिक मजबूत एयरोस्पेस की निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने में प्रगति को भी दर्शाएगा। टाटा ग्रुप के समर्थन से राफेल के उत्पादन में दसॉ कम्पनी गुणवत्ता की जरूरतों को पूरा करेगी। परियोजना के जारी रहते प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण होगा और हो सकता है कि भविष्य में पूरे राफेल विमान भारत में ही बनने लगे। जिस तरह से युद्ध का स्वरूप बदल चुका है ऐसे में भारत को नई प्रौद्योगिकी की जरूरत है। भारत को इस क्षेत्र में निजी कम्पनियों की भागीदारी की भी जरूरत है। उम्मीद है कि टाटा समूह और दसॉ की यह संयुक्त परियोजना भारत के लिए नए मार्ग प्रशस्त करेगी और रक्षा क्षेत्र में नए आयाम स्थापित होंगे।