भारत का ‘ट्रम्प कार्ड’ रूस
आज की तारीख में अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अगर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की दादागिरी की चर्चा है तो वहीं एशियाई महाद्वीप में भारत का जिक्र भी उसकी बढ़ती ताकत के लिए किया जाता है जिसके सूत्रधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे हैं। यहां चीन को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए जो कि एशिया में भारत की ही तरह एक बड़ा वजूद रखता है। अगर पिछले तीन-चार वर्षों की बात की जाए तो रूस और यूक्रेन के युद्ध के बाद स्थितियां बदली और राष्ट्रपति पुतिन के खिलाफ अन्तर्राष्ट्रीय माहौल बनाने में ट्रंप ने एक बड़ा काम किया। लेकिन पिछले दो-तीन महीनों में जो कुछ हुआ है उससे दुनिया की नंबर दो सुपर पावर रूसी राष्ट्रपति पुतिन का चेहरा भी उभरकर सामने आया है। जितने भी नये-नये एंगल बन रहे हैं उनमें एक खलनायक के रूप में ट्रप ही उभर रहे हैं। इस बीच भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ जिसके सीजफायर का श्रेय लेने के लिए ट्रंप ने कम से कम 25 बार फायर किये होंगे। जब प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर से अपने यहां भारी तबाही को लेकर पाकिस्तान खुद गिड़गिड़ाया तो भारत ने युद्ध रोका, इसके बाद से लेकर ट्रंप बिदक गये हैं। इसी की खुंदक में उन्होंने भारत के खिलाफ नया टैरिफ बम फोड़ दिया है और इसे 50 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है। यह बात अलग है कि रूस से भारत का आयल लेना भी उन्हें पसंद नहीं है।
इन सब घटनाक्रमों के परिणाम जिस तरह दिखाई दे रहे हैं उससे भारत ही मजबूत होगा और रूस हमेशा की तरह भारत के एक टेस्टिड और ट्रस्टिड अर्थात देखे-परखे मित्र के रूप में उभरा है। पुतिन अगर मास्को से विशेष रूप से पीएम मोदी को अपनी ट्रंप से मुलाकात के बारे में भारत को जानकारी दे सकते हैं तो यहीं से रिश्तों की मजबूती का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसी कड़ी में मोदी और सी-िजनपिंग के बीच प्रस्ताावित वार्ता ने भी ऐसी नई संभावनाओं को जन्म दिया है जो अमरीका को परेशान कर सकती है। लिहाजा आने वाले दिनों में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा। यह सब ट्रंप के लिए चेतावनी का संकेत भी है। बड़ी बात यह है कि आज की तारीख में रूस, इंडिया और चीन अर्थात आरआईसी के एक नए गठबंधन की चर्चा दुनिया के बड़े देश कर रहे हैं।
रूस से दोस्ती की हमारी पुरानी मजबूती ट्रम्प को रास नहीं आ रही आज भी चुनौतियां तो हैं लेकिन मोदी है तो सब मुमकिन है, भारत सबकुछ ठीक कर लेगा। आजादी के बाद से लेकर आज तक रूस के साथ हमारे रिश्ते मजबूत रहे हैं और मजबूत ही रहेंगे। यह विश्वास भी दोनों राष्ट्रों को है। रूस विखंडन के बाद हमारे रिश्ताें पर बर्फ जमी लेकिन संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहे, उधर अमेरिका सुपर पॉवर बन गया था। उसे भारत कतई पसंद ही नहीं था, क्योंकि हमने पोखरन एटमी विस्फोट कर दिया था। वरना 1996 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कॉम्प्रिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी (सीटीबीटी) पर दस्तख़त करके ऐसा करने वाले पहले वैश्विक नेता के तौर पर इतिहास रचा था। इस संधि के तहत परमाणु हथियारों के परीक्षण और या विस्फोट को प्रतिबंधित किया गया था लेकिन 1998 में भारत ने पोखरन में परमाणु विस्फोट किया तो अमरीका ने हम पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। राष्ट्रपति बिल िक्लंटन का यह व्यवहार वैश्विक स्तर पर नैतिकता की दृष्टिकोण से सही नहीं था लेकिन बाद में समय बदला। भारत की विदेश नीति के चलते और हमारे मजबूत स्टेंड के अच्छे परिणाम निकलने लगे।
अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए इन व्यापक प्रतिबंधों और इनका असर दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में रिश्तों पर भी पड़ा। इन प्रतिबंधों का मक़सद भारत को अलग थलग करना और उसे परमाणु हथियार बनाने से हतोत्साहित करना था। फिर भी ये प्रतिबंध स्थायी नहीं रहे, क्योंकि लगाए जाने के कुछ महीनों के भीतर ही इन प्रतिबंधों को हटा लिया गया। यह भारत की एक बड़ी जीत थी। 1999 में सब कुछ भारत के हक में गया। भारत को एक वास्तविक परमाणु शक्ति स्वीकार किया गया। समय के साथ, जैसे-जैसे भारत और अमेरिका के रिश्ते धीरे-धीरे बेहतर हुए। अमेरिका पर 9/11 के आतंकवादी हमले के बाद, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जो माहौल बना उसने दोनों देशों के बीच सुरक्षा के मामले में तालमेल की ज़मीन तैयार कर दी। भारत की रूस से आयल खरीद पर ट्रम्प चिढ़ गए। सत्ता वापसी के कुछ दिन तक वह भारत के प्रति ठीकठाक रहे लेकिन बाद में भारत से असहमति दिखाने लगे। वरना पीएम मोदी ने वैश्विक मंच पर उनका हमेशा समर्थन किया था। अब टैरिफ को लेकर भारत के प्रति ट्रम्प जिस तरह दादागिरी दिखा रहे हैं उसका चीन में आन दा रिकार्ड विरोध करते हुए साफ कहा है कि वह इस मुद्दे पर साथ खड़ा है। एटमी परीक्षण के बाद प्रतिबंध लगाने से लेकर अब ‘वैश्विक सामरिक साझेदारी’ तक, भारत और अमेरिका के रिश्तों ने लंबा सफ़र तय किया है।
सच यह है िक रूस ने भारत को सुखोई-30, टी-90 टैंक, और एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली जैसे उन्नत हथियार प्रदान किए हैं। इसके अलावा, ऊर्जा क्षेत्र तकनीकी सहयोग, अंतरिक्ष-परमाणु सहयोग, आर्थिक सहयोग, शिक्षा-विज्ञान-प्रोद्यौगिकी सहयोग में भी रूस भारत का महत्वपूर्ण साझेदार रहा है। ट्रम्प की नीतियों के बाद भारत और रूस के बीच सहयोग और गहरा सकता है। रूस, जो स्वयं अमेरिका के प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, भारत के साथ एक नया आर्थिक और रणनीतिक गठजोड़ बनाने में रुचि दिखा रहा है। यह गठजोड़ न केवल द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि वैश्विक मंचों पर दोनों देशों की स्थिति को भी मजबूत करेगा, ट्रम्प को यही पसंद नहीं है। यदि भारत, रूस, और चीन के साथ गठजोड़ बनाता है, तो इसके कई फायदे हो सकते हैं। पहला, यह भारत को वैश्विक व्यापार में एक नई ताकत के रूप में स्थापित कर सकता है। रूस और चीन के साथ मिलकर भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता है। तथा यह भारत को अमेरिका के आर्थिक दबाव से बचने में मदद कर सकता है।
आज की तारीख में विश्व के 300 से ज्यादा प्रोडक्ट भारत और चीन तैयार कर रहे हैं आैर इससे तेल खरीदने व भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने को लेकर पीएम मोदी रिश्ते समेट रहे हैं। दुनिया इस घटनाक्रम को देख रही है और पुतिन से भारत के मजबूत रिश्तों को ट्रम्प देख रहे हैं। चीन की ताकत भी ट्रम्प देख रहे हैं लेकिन देर-सवेर ट्रम्प को भारत से टैरिफ वार खत्म करनी ही हगी। ट्रम्प कभी पाक आर्मी चीफ मुनीर से भेंट कर रहे हैं तो कभी फिर इसका प्रचार करते हैं लेकिन मोदी पूरी दुनिया को परिवार मान कर आगे बढ़ रहे हैं। देश के पीएम मोदी के सुन्दर संतुलन विजन के चलते भारत कुल मिलाकर चीन को भी स्वीकार्य है। आने वाले दिनों में भारत अपने शांतिपूर्ण और संतुलित विजन के तहत और सबका साथ सबका विश्वास की नीति पर चलते हुए अपना परचम फहराने को तैयार है।