भारत का विश्वसनीय दोस्त रूस
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रूस हमेशा भारत का विश्वसनीय दोस्त रहा है। पिछले 70 वर्षों में कई ऐसे मौके आए जब यह विश्वसनीयता स्वतः सिद्ध हुई है। ऐसे में भारत और रूस का नजदीक आना हमारे पुराने प्रगाढ़ सम्बन्धों को नई ऊर्जा प्रदान करता है। अमेरिकी विरोध को दरकिनार करते हुए भारत ने रूस से सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम खरीदने सहित अन्य कई समझौतों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। विघटन से पहले का सोवियत संघ भारत का गहरा मित्र हुआ करता था लेकिन बीते कुछ वर्षों से वैश्विक बदलाव के साथ-साथ भारत का रुख अमेरिका की तरफ झुकता गया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके बीच महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आैर द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत हुई। अब एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम के समझौते के साथ भारत फिर से अपने पारम्परिक मित्र रूस के साथ बेहतर सम्बन्धों के मार्ग पर चलेगा। एस-400 समझौते का सांकेतिक महत्व यह है कि यह अमेरिका को स्पष्ट संकेत है कि भारत अमेरिका का मित्र तो है लेकिन भारत अमेरिका की सभी बातें मानने वाला नहीं। यह चीन और पाकिस्तान को भी स्पष्ट संकेत है कि रूस अभी भी हमारा महत्वपूर्ण दोस्त है। अमेरिका अपने हितों को सर्वोपरि मानता है और भारत की बाजू मरोड़ने में कोई कसर नहीं रखता।
अमेरिका ने खुली धमकी दी है कि अगर भारत रूस से एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम खरीदता है तो उस पर प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे। चीन ने रूस से एस-400 डिफैंस सिस्टम खरीदा तो अमेरिका ने उस पर प्रतिबंध लगा दिए थे। अमेरिका की चिन्ता यह है कि एस-400 का इस्तेमाल अमेरिकी फाइटर जेट्स की गुप्त क्षमताओं का टैस्ट करने के लिए किया जा सकता है। इस सिस्टम से भारत को अमेरिकी जेट्स का डाटा मिल सकता है आैर यह डाटा रूस या दुश्मन देश को लीक किया जा सकता है। 1947 के बाद भारत का आज तक का इतिहास मैं कितनी बार याद दिलाऊं। अमेरिका आैर रूस का 1965 का अनुभव ही अपने राष्ट्र के संदर्भ में देखें कि इसमें रूस का क्या योगदान था आैर अमेरिका का क्या योगदान था। अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती को क्या कोई भारतीय भूल सकता है? अमेरिका ने पाकिस्तान को दिए सैवरजेट, पैटन टैंक आैर युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए भारी रकम।
पाकिस्तान को 1965 के युद्ध में हराने के बाद हमने अपने मित्र रूस के कहने पर ताशकंद समझौता किया। इससे कुछ अर्सा पहले 10 वर्षों के लिए भारत और रूस में समझौता हुआ था कि अगर भारत पर कोई दूसरा देश आक्रमण करेगा तो रूस भारत की मदद करेगा। भारतीयों को याद रखना होगा वह दिन जब 1965 आैर 1971 की दोनों भारत-पाक जंगों में रूस ने संयुक्त राष्ट्र पिरषद में दो बार अपने वीटो के अधिकार का भारत के हक में इस्तेमाल खुलेआम किया। खासतौर पर 1971 की जंग में अमेरिका ने अपना सातवां जंगी बेड़ा भारत के विरुद्ध कार्रवाई के लिए बंगाल की खाड़ी में भेजा था उस समय रूस ने अमेरिकी बेड़े को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपना बेड़ा भेज दिया था। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने रूस के साथ सामरिक संधि की थी जिसे बार-बार आगे बढ़ाया जाता रहा है। जब भारत ने कहा कि वह स्टील अलाय बनाएगा तो अमेरिका ने हां कहने के बावजूद मदद देने से इन्कार कर दिया तब रूस ही था जिसने भारत की मदद की थी। जो स्टील कारखाने भारत की औद्योगिक संरचना की बुनियाद बने वह रूस की मदद से ही बने हैं। जब भारत ने कहा कि हम भी सैटेलाइट बनाएंगे तो अमेरिका ने हमारा मजाक उड़ाया था और कहा था कि ‘‘आप धान उगाओ, क्योंकि हिन्दुस्तानी भूखे हैं।’’ यह रूस ही था जिसने भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में मदद की बल्कि अकेले भारतीय राकेश शर्मा को अंतरिक्ष की सैर कराई। रूस ने हमें परमाणु ईंधन दिया जब सभी देशों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया था।
दो दशक पहले हम अपने 80 फीसदी रक्षा उपकरण रूस से ही लेते थे। 1990 के दशक में जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई तो कुछ हकीकत और कुछ फसाने के तौर पर भारत ने यह मान लिया कि हमारी बदली हुई जरूरतों में रूस का कोई महत्व नहीं रहा जबकि हकीकत यह थी कि आज भी अभी भी भारत का सबसे बड़ा रक्षा और रणनीतिक सहयोगी रूस ही है। भारत-रूस के रिश्ते ठण्डे होते गए। कई मौकों पर रूस की नाराजगी भी सामने आई। रूस से हमारा रक्षा कारोबार 60 फीसदी रह गया। वहीं अमेरिका से करीब 10 अरब डॉलर से ज्यादा का रक्षा कारोबार हो रहा है। भारत ने इसके साथ ही इस्राइल, दक्षिण कोरिया, फ्रांस से रक्षा सहयोग भी बढ़ाया। 2005 के आसपास जैसे-जैसे भारत का रुझान अमेरिका की तरफ बढ़ा और रूस की तरफ कम हुआ वैसे-वैसे अमेरिका के साथ हमारे रिश्तों के नए अध्याय खुले। दुनिया में सर्वाधिक शक्तिशाली अमेरिका से रिश्ते होना अच्छी बात है लेकिन यह रिश्ता विश्वसनीय दोस्त रूस की कीमत पर नहीं होना चाहिए। अमेरिका, रूस, चीन के पास एस-400 डिफैंस सिस्टम हैं और क्षेत्रीय परेशानियों को देखते हुए भारत को इसकी जरूरत भी है तो अमेरिका के विरोध का कोई औचित्य मुझे नजर नहीं आता। भारत को पुराने मित्र रूस के साथ सम्बन्ध भी बेहतर रखने हैं आैर यह भी तय करना है कि अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों को किस तरह सुरक्षित रखना है। फिलहाल दो दोस्तों ने वर्षों बाद एक-दूसरे की तरफ हाथ बढ़ाया है। उम्मीद है कि दोनों देश प्रगाढ़ मैत्री की राह पर चलेंगे।