कनाडा से मोदी को न्यौता
आजादी के बाद से ही भारत की विदेश नीति दो देशों के बीच परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व…
आजादी के बाद से ही भारत की विदेश नीति दो देशों के बीच परस्पर सहयोग, सह-अस्तित्व व शान्ति की रही है। वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार भी पिछले 11 साल से इसी नीति पर चल रही है परन्तु इसका अर्थ कमजोरी कतई नहीं है बल्कि अपने पक्ष की मजबूती है जैसा कि हमने पाकिस्तान के सन्दर्भ में मोदी सरकार के तेवरों को देखा है। विश्व शान्ति का पक्षकार भारत हमेशा से कहता रहा है कि केवल इसी रास्ते को अपना कर दुनिया के विभिन्न देशों का विकास हो सकता है मगर इसके लिए बड़े और समृद्ध व विकसित देशों को अपना दिल बड़ा रखना होगा। इस सन्दर्भ में अगर हम जी-7 (ग्रेट सेवन) देशों के समूह पर नजर डालें तो यह अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा व इटली जैसे देशों का संगठन है। इन सभी देशों में लोकोन्मुख खुला लोकतन्त्र है और ये आर्थिक रूप से विकसित देश हैं। इनमें जापान भी शामिल है जो एशिया का अकेला देश है। पहले 2014 तक रूस भी इसमें शामिल था और समूह को जी-8 कहा जाता था परन्तु 2014 में रूस ने यूक्रेन के कब्जे वाले क्रीमिया प्रान्त को अपने में समाहित कर लिया तो इसे समूह से बर्खास्त कर दिया गया और जी-8 को जी-7 कहा जाने लगा।
जी-7 देशों का सम्मेलन हर वर्ष होता है। भारत की इसमें स्थिति एक मेहमान देश की 2005 के बाद से रही है। एेसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत की विकास करती अर्थव्यवस्था को समृद्ध देश नजरंदाज नहीं कर सकते थे। इसी वजह से 2004 से लेकर 2014 तक प्रधानमन्त्री रहे स्व. डाॅ. मनमोहन सिंह को इसकी वार्षिक बैठकों में पांच बार बुलाया गया। यह परंपरा श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में जारी रही और 2019 से उन्हें भी हर वर्ष इसकी बैठक में बतौर मेहमान के बुलाया गया। इस वर्ष जी-7 की बैठक कनाडा में 15 से 17 जून तक हो रही है। इसमें प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी को कनाडा के नव निर्वाचित प्रधानमन्त्री श्री मार्क कार्नी ने बीते कल ही टेलीफोन करके आमन्त्रित किया है। पहले भारत में श्री मोदी के आलोचक कह रहे थे कि भारत-कनाडा के सम्बन्धों को देखते हुए इस बार श्री मोदी को जी-7 में नहीं बुलाया जा रहा है परन्तु श्री कार्नी के फोन ने सभी आलोचकों का मुंह बन्द कर दिया है और साबित किया है कि कनाडा के बारे में भारत की नीति गलत नहीं है। कनाडा के पिछले प्रधानमन्त्री श्री जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत के सम्बन्ध थोड़े शिथिल पड़े थे। इसकी वजह ट्रूडो का वह रुख था जो वह भारत के प्रति दिखा रहे थे।
2024 में उन्होंने भारत पर आरोप लगा दिया था कि 2023 में उनके देश के एक खालिस्तान समर्थक नागरिक की हत्या में भारत का हाथ है। इसका भारत ने पुरजोर विरोध किया था। जिसके बाद दोनों देशों के आपसी रिश्ते थोड़े ठंडे पड़ गये थे और दोनों ने एक-दूसरे के उच्चायोगों में कर्मचारियों की संख्या कम कर दी थी। इससे पूर्व भारत-कनाडा के आपसी रिश्ते बहुत गर्मजोशी भरे रहे हैं। ये सम्बन्ध नागरिक स्तर पर बहुत ही प्रगाढ़ माने जाते हैं क्योंकि कनाडा के विकास में भारतीयों खासकर पंजाबियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। इस देश के मन्त्रिमंडल में भी पिछले दस सालों से भारतीय मूल का कोई न कोई नागरिक रहता आ रहा है। वर्तमान में इसकी विदेश मन्त्री सुश्री अनिता आनन्द हैं। उन्होंने पदभार संभालने के बाद विगत मई महीने में भारत के विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर से टेलीफोन पर वार्ता भी की थी। इसे देखते हुए कयास लगाये जा रहे थे कि श्री मोदी की कनाडा यात्रा के बारे में कुछ संकेत छोड़े गये हैं। मगर अब बीते कल ही कनाडा के प्रधानमन्त्री का फोन श्री मोदी को आ गया। अतः श्री मोदी जी-7 सम्मेलन में शिरकत करने जायेंगे। सोचने वाली बात यह है कि क्या कनाडा अपने देश के आयोजन में श्री मोदी की अनुपस्थिति बर्दाश्त कर सकता था जबकि उसके देश में भारतीय मूल के नागरिकों की संख्या अच्छी-खासी हो और कनाडा की अर्थव्यवस्था में उनकी प्रमुख हिस्सेदारी हो। श्री मोदी तो 2014 में ही पहली बार प्रधानमन्त्री बन गये थे। मगर 2019 में जब जी-7 सम्मेलन फ्रांस में हुआ तो वहां के राष्ट्रपति ने श्री मोदी को बाहैसियत मेहमान देश के बुलाया और उसके बाद 2020 में जब इस समूह का सम्मेलन अमेरिका में होने जा रहा था तो वहां भी श्री मोदी आमन्त्रित थे परन्तु यह सम्मेलन कोरोना महामारी के चलते नहीं हो सका था, हालांकि तब भी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने खुली पैरवी की थी कि जी-7 का स्वरूप बदला जाना चाहिए और इसमें भारत, द. कोरिया, आस्ट्रेलिया व रूस जैसे देशों को शामिल कर इसे जी-10 या जी-11 कहा जाना चाहिए परन्तु ट्रम्प के पिछले कार्यकाल का वह अंतिम वर्ष था।
2021 में भी कोरोना का प्रकोप रहा और श्री मोदी ने इसकी बैठक में हिस्सा वीडियो कान्फ्रेसिंग की मार्फत लिया। 2022 में समूह की बैठक जर्मनी में हुई और श्री मोदी उसमें भाग लेने गये। 2023 में जापान व 2024 में इटली के सम्मेलनों में भी श्री मोदी को बुलाया गया परन्तु कनाडा द्वारा बतौर मेहमान देश के आस्ट्रेलिया व द. कोरिया को काफी पहले न्यौता भेज देने की वजह से भारत में मोदी के आलोचक सक्रिय हो गये थे और इसकी विदेश नीति की कटु आलोचना करने लगे थे। अब यह न्यौता स्वयं कनाडा के प्रधानमन्त्री की तरफ से आया है तो आलोचक बहाने ढूंढ रहे हैं और कह रहे कि सम्मेलन से केवल 10 दिन पहले ही क्यों न्यौता आया है। विदेश नीति के मामले में यह नजरिया सर्वथा अनुचित है।