भाजपा से समन्वय की जिम्मेदारी अब अतुल लिमए को ?
‘हम नादां थे करते रहे ताउम्र इन छावों की पहरेदारी,
और तुम थे हर दिन धूप की तरह आते रहे जाते रहे’
पिछले काफी समय से भाजपा व संघ के रिश्ते सांप-सीढ़ी का खेल खेलते आए हैं, पर संघ का शीर्ष नेतृत्व भाजपा संग एक बेहतर समन्वय चाहता है। जिसके लिए आने वाले दिनों में संघ में एक बड़ा सांगठनिक बदलाव देखा जा सकता है। संघ से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि भाजपा के संग एक बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए संघ अरुण कुमार की जगह अतुल लिमए को ला सकता है। इस बात के इशारे इस 30 अक्तूबर से शुरू हुई संघ की जबलपुर में आहूत त्रिदिवसीय बैठक में मिले। सनद रहे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल की तीन दिवसीय बैठक इन दिनों जबलपुर की कचनार सिटी में जारी है। इस बैठक में 11 क्षेत्रों व 46 प्रांतों के संघचालक, कार्यवाह, प्रचारक और निमंत्रित कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे हैं। इस बैठक में संघ के सभी 6 सहकार्यवाह यानी डा. कृष्ण गोपाल, मुकुंदा, अरुण कुमार, रामदत जी चक्रधर, आलोक कुमार और अतुल लिमए भी जुटे हैं। सूत्रों की मानें तो संघ का शीर्ष नेतृत्व अरुण कुमार की जगह अतुल लिमए को लाने का मन बना चुका है। अभी अरुण कुमार ही संघ और भाजपा के बीच एक संवाद सेतु का काम करते हैं। महाराष्ट्र के नासिक से ताल्लुक रखने वाले 54 वर्षीय अतुल लिमए जो जाति से एक चितपावन ब्राह्मण हैं वे इस महाराष्ट्र चुनाव से चर्चा में आए। कहते हैं राज्य में भाजपा गठबंधन को सत्ता में लाने में लिमए की एक महत्ती भूमिका रही। वह पेशे से एक इंजीनियर हैं और कोई 3 दशक पूर्व संघ से एक पूर्णकालिक प्रचारक के तौर पर जुड़े। इनकी महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा जैसे राज्यों पर गहरी पकड़ है। कहते हैं इन्होंने इस मुश्किल का रामबाण ढूंढा कि ‘अर्बन नक्सल’और ‘मराठा आंदोलन’ से कैसे निबटा जाए। इन्होंने संघ के लिए कई ‘थिंक टैंक भी तैयार किए हैं और कई ‘रिसर्च टीम भी बनाई हैं। संघ का बेहद चर्चित रहा ‘सजग रहो’ कैंपेन का प्रणेता भी इन्हीं को बताया जाता है। कई शैक्षणिक व राजनीतिक सरकारी पदों पर प्रमुखों की नियुक्तियों को भी ये प्रभावित करते रहे हैं, चूंकि आने वाले दिनों में भाजपा संगठन का पूरी तरह कायाकल्प होना है सो, उसकी पूर्व बेला में भाजपा से समन्वय की कमान पूरी तरह लिए के हाथों में सौंप सकते हैं।
चिदंबरम को क्यों नहीं मिला भगवा साथ?
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने भले ही पिछले कुछ समय से अपरोक्ष तौर पर भगवा राग गाना शुरू कर दिया हो, पर इसका उन्हें कोई खास फायदा मिलता नहीं दिख रहा। उनके सांसद पुत्र कार्ति चिदंबरम पर ईडी की तलवार बदस्तूर पहले की तरह ही लटक रही है। कार्ति ने ईडी द्वारा ‘प्रीवेंशन ऑफ मनी लांड्रिग एक्ट के तहत जब्त की गई अपनी संपतियों को लेकर ‘एपीलिएट ट्रिब्यूनल फॉर फॉरफिटेड प्रापर्टी’ में एक अपील दायर की थी, जिसे अभी ट्रिब्यूनल ने खारिज़ कर दिया है। बेहद भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि पिता चिदंबरम इस मुश्किल घड़ी में अपने बेटे के साथ साए की तरह खड़े रहे और उन्हें कुछ फौरी निजाद दिलाने के लिए सरकार के एक सर्वशक्तिमान मंत्री जी को लगातार फोन करते रहे, पर कहते हैं मंत्री जी लाइन पर ही नहीं आए। उनके यहां से चिदंबरम साहब को बता दिया गया कि मंत्री जी बिहार चुनाव में बहुत बिज़ी हैं, अभी उनसे बात नहीं हो पाएगी, वे चाहें तो अपना मैसेज छोड़ सकते हैं। तब मंत्री जी के एक मुंहलगे नेता ने यह जानना चाहा कि ये पिता-पुत्र (चिदंबरम) लगातार कांग्रेस की पोल खोल रहे हैं और जाने-अनजाने हमारी मदद ही कर रहे हैं, फिर आप उनकी मदद को क्यों नहीं आगे आए? तब मंत्री जी ने जो कहा वह सुनने लायक है, बकौल मंत्री-आज इनकी जरूरत है तो अपनी पार्टी का बैंड बजा कर हमारी मदद का दिखावा कर रहे हैं, इनका आज मतलब निकल गया, हमने मदद कर दी तो कल हमें पहचानेंगे भी नहीं।’भाजपा के सर्वशक्तिमान चाहते हैं कि इन पिता-पुत्र को वाकई अगर भाजपा से इतनी हमदर्दी है तो पहले आकर पार्टी ज्वाइन करें तब इनकी मदद की बात सोची जा सकती है।
भाजपा के लिए जरुरी
क्यों हैं नीतीश?
एक वक्त भाजपा नेतृत्व को लग रहा था कि इस दफे भाजपा बिहार चुनाव में नीतीश से पीछा छुड़ाना ही ठीक रहेगा, शायद यही वजह थी कि रणनैतिक रूप से भाजपा ने नीतीश को एनडीए का ‘सीएम फेस घोषित नहीं किया। भाजपा चाणक्य ने मौके-बेमौके कहा कि इस बार एनडीए के निर्वाचित विधायक ही अपने नेता का चुनाव करेंगे। प्रशांत किशोर को भी नीतीश के पीछे छोड़ दिया गया। पीके ने भी दावा किया हुआ है कि इस बार नीतीश 25 सीटों के अंदर सिमट जाएंगे। पर जैसे-जैसे चुनाव की घड़ी करीब आती गई नीतीश ने भी अपना खूंटा गाड़ दिया। उन्होंने चिराग पासवान तक अपना संदेशा भिजवा दिया कि इस बार उनकी ख़ैर नहीं, शायद यही वजह रही कि भरे मंच पर चिराग को नीतीश के पैर छूने पड़े नीतीश भी बड़ा दिल दिखाते हुए छठ महापर्व के शुभारंभ -खरना पर चिराग के घर चले गए, प्रसाद ग्रहण करने। दरअसल, नीतीश को प्रदेश के पासवान मतदाताओं को यह मैसेज देना था कि उनके मन में चिराग पासवान को लेकर कोई बैर नहीं। कहते हैं जब नीतीश अपनी पीएम संग होने वाली दो रैलियां टाल गए तो मोदी को भी अपनी आगे की सभाओं में कहना पड़ा कि बिहार का विकास नरेंद्र और नीतीश मिल कर करेंगे।
अमित शाह को भी उन्हें एनडीए का सीएम चेहरा स्वीकार करना पड़ा। राज्य की 75 लाख महिला मतदाताओं के खातों में 10 हजार रुपए ट्रांसफर कर भाजपा इसे अब तक का सबसे बड़ा दांव समझ रही थी, पर जमीन पर नीतीश इसके लिए सबसे बड़े लाभार्थीं बन कर उभरे। बिहार की महिलाओं ने नीतीश को एक नया नाम दे दिया ‘दस हजरिया चचा। सो, यही वजह है कि भाजपा वालों में नीतीश की पूछ यकबयक इतनी बढ़ गई है।
चुनाव प्रबंधन एजेंसियों की चांदी
प्रशांत किशोर ने चाहे कुछ किया ना किया हो पर अपने चातुर्य कौशल और अद्भुत चुनावी प्रबंधन की रणनीतियों से चुनाव प्रबंधन के काम में लगी एजेंसियों की चांदी करा दी है, इनके भाव बढ़ा दिए हैं। अब ये एजेंसियां राजनैतिक दलों से मुंहमांगी कीमतें वसूल करना चाहती हैं। जैसे इस बिहार चुनाव की ही बात करें, तेजस्वी के सलाहकार संजय यादव अपेक्षाकृत एक नई एजेंसी को पकड़ लाए थे। कई दौर के प्रेजेंटेशन हुए, तेजस्वी को एजेंसी के काम करने का वैज्ञानिक सम्मत तरीका पसंद भी आया। एजेंसी के जमीनी सर्वे पर उन्हें कुछ यकीन भी हुआ, एक तरह से उन्होंने उस एजेंसी को अपनी पार्टी राजद का काम देने का मन बना भी लिया था, पर इसके लिए उक्त एजेंसी ने जो पैसे मांगे उसे सुन कर तेजस्वी के होश फाख्ता हो गए। यह कीमत 100 करोड़ रुपयों के आस-पास बताई जाती है। तेजस्वी ने एजेंसी के कर्ताधर्ताओं से हाथ जोड़ लिए बोले, ‘इतना पैसा तो उनकी गरीब पार्टी के पास नहीं है।’कुछ ऐसा ही वाकया सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ भी घटित हुआ। उनसे तो बिहार की इस रकम से दुगुनी रकम की डिमांड की गई थी। यूपी में 2027 में चुनाव होने हैं, अखिलेश ने भी उस एजेंसी से नमस्ते कह दिया। आम आदमी पार्टी का चुनावी प्रबंधन को लेकर अपनी ’इनहाउस व्यवस्था है फिर भी वह थोड़ा बहुत काम आउटसोर्स कर देती है। आने वाले पंजाब चुनाव को मद्देनजर रखते कई एजेंसियों ने ऐसे कुछ प्रेजेंटेशन पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के समक्ष भी दिए हैं। मान ने भी उनकी डिमांड सुनते ही उन्हें टरका दिया और कहा कि वे दिल्ली जाकर पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से मिल लें, इस बारे में आमतौर पर वही अंतिम फैसला लेते हैं।
...और अंत में
केंद्र में एनडीए के घटक दल के एक मंत्री पिछले दिनों भाजपा सर्वशक्तिमान से मिलने पहुंचे और उनके समक्ष अपना एक ‘ब्लू प्रिंट पेश किया जिसमें इस बात के गहन विमर्श छुपे थे कि पश्चिमी यूपी, हरियाणा व राजस्थान के जाट वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा क्या नए उपक्रम साध सकती है। सर्वशक्तिमान पहले से तमतमाए बैठे थे उन्होंने मंत्री जी द्वारा पेश किए गए ब्लू प्रिंट को एक किनारे करते हुए किंचित सख्त लहजे में कहा-‘मुझे तो आपसे यह जानना था कि आपकी धर्मपत्नी मंत्रालय में किस हैसियत से जाती हैं?
बकायदा वहां बैठकर बिजनेस मैन से मीटिंग करती हैं, अधिकारियों से जवाब-तलब करती हैं, उन्हें निर्देश देती हैं, टेंडर की बात करती हैं। ध्यान रखिए यह यूपीए की सरकार नहीं है, हमारे यहां ऐसी बातों की इज़ाजत नहीं है, यह आपके लिए पहली व आखिरी चेतावनी है। मंत्री जी वहां से बिना कुछ कहे उल्टे पांव लौट आए, जैसे लौटकर बुद्धु घर को आता है।

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