क्या ढाई साल के सीएम हैं नीतीश?
‘उजाला कम होता है तो परिंदे तेज परों से अपने-अपने घर
लौटते हैं आहटें तूफानों की वे दरख्त भी पढ़ लेते हैं, जिन पर इनके घरौंदे होते हैं
नीतीश कुमार ने पूरे तामझाम के साथ भले ही 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की ‘शपथ ले ली हो, पर माना जा रहा है कि उनके स्वास्थ्यगत कारणों को देखते हुए इस बार उनका मुख्यमंत्रीय सफर आधी दूरी ही तय कर पाएगा। विश्वस्त सूत्रों का दावा है कि नीतीश के ‘शपथ ग्रहण समारोह से पूर्व जदयू के तीन प्रमुख नेतागण यूं अचानक एक विशेष विमान से दिल्ली पहुंचे, जहां उनकी पहले से ही पीएम मोदी के संग एक अहम बैठक तय थी। यह भी कहा जा रहा है कि जदयू की यह तिकड़ी यानी राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह, संजय झा और कभी नीतीश के सबसे भरोसेमंद नौकरशाहों में ‘शुमार होने वाले मनीष वर्मा एयरपोर्ट से सीधे पीएम आवास की ओर रवाना हो गए। जहां इस बात पर सहमति बनी कि इस दफे एनडीए गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी (89 सीट) होने के बावजूद भाजपा नीतीश को मुख्यमंत्री पद की ‘शपथ दिलाने को तैयार है, बदले में भाजपा ढाई साल का इंतजार करेगी। ढाई साल के बाद बिहार में भाजपा का अपना मुख्यमंत्री होगा और नीतीश को दिल्ली में किसी बड़े संवैधानिक (राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति) पद पर सुशोभित किया जाएगा। इसके बाद इन जदयू नेताओं ने वहीं से भाजपा के इस प्रस्ताव पर नीतीश से बात की, कहते हैं नीतीश आसानी से इस फार्मूले पर सहमत हो गए,।
...खड़गे की सोनिया से क्या बात हुई
बिहार के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस का सियासी तापमान नई ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया है। 14 नवंबर को जैसे ही बिहार की चुनावी तस्वीर साफ होने लगी, हैरान-परेशान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोनिया गांधी को फोन कर वहां हार के कारणों पर चर्चा की तथा परिणाम पर हैरानी भी जताई। उन्होंने इंदिया जी के जमाने से जुड़ा होने की बात कही व साथ ही 15 मिनट भर का समय न मिलने का तकाजा भी किया। उन्होंने कहा कि विहार में जब हमारा कैम्पेन शुरू हुआ तो मेरा ‘शुरू से यही मानना था कि तेजस्वी को ‘कांफिडेंस’ में लेकर यह ‘शुरू करना चाहिए, पर ऐसा नहीं हो पाया। राजद से हमारा तनाव बढ़ता रहा। चुनाव की तारीखें जब एकदम करीब आ गईं तो लोगों को भी पता चलने लगा कि कांग्रेस राजद के रिश्तों में खटास आ चुकी है तथा टिकट वितरण में देरी से माहौल खराब हो गया है। इसके साथ ही उन्होंने कर्नाटक से जुड़े रहे अल्लावरु के बारे में बिहार भेजे जाने के मामले पर सवाल भी खड़े किए।
उन्होंने कहा कि अल्लावरू भी उनके गृह क्षेत्र के ही रहने वाले हैं। खड़गे ने कहा कि अल्लावरू को बिहार का प्रभारी बनाने से पहले मुझसे एक बार भी नहीं पूछा गया अल्लावरू ने लालू परिवार के साथ कांग्रेस के रिश्ते बदतर किए, उन पर टिकट बेचने के आरोप लगे, पटना एयरपोर्ट पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा वे खदेड़े गए। इसके बाद खड़गे ने पप्पू यादव को कांग्रेस मुख्यालय से पैसा (कैडीडेट्स के लिए) भेजने तथा उम्मीदवारों को न मिलने और इसकी तहकीकात न होने का उल्लेख भी किया। भाजपा करेगी जयचंदों की पहचान
बिहार विधानसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद भी भाजपा का हारी हुई सीटों पर मंथन जारी है। वह भी ऐसी सूरत में जब इस चुनाव में पार्टी की जीत का स्ट्राइक रेट लगभग 90 फीसदी की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। पार्टी से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि सीमांचल की कुछ सीटों पर पार्टी भीतरघात की शिकार हो गई है, संघ की भी इस मामले में कमोबेश यही राय है। पार्टी रणनीतिकारों को लग रहा है कि सीमांचल की कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां पार्टी अपने कैडर अपने गठबंधन साथी जदयू को ट्रांसफर नहीं करा पाई। इस कड़ी में प्रमुखता से अररिया संसदीय क्षेत्र को निशाने पर लिया गया है।
अररिया से भाजपा सांसद प्रदीप सिंह अति पिछड़ी जाति ‘गंगई’ से ताल्लुक रखते हैं, रिपोर्ट है कि इस संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली कुछ सीटों पर प्रदीप सिंह अपने पसंदीदा लोगों को टिकट नहीं दिलवा पाए, मिसाल के तौर पर फारबिसगंज विधानसभा सीट का नाम लिया जा सकता है। जहां हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के बावजूद भगवा पार्टी लंबे समय तक यहां अपराजेय रही थी, यहां से सांसद अपने खास मित्र (जिन्हें उनका व्यापारिक साझेदार भी माना जाता है) को टिकट दिलवाना चाहते थे, पर पार्टी ने यहां से अपने दो बार के जीते विधायक विद्यासागर केसरी को रिपीट कर दिया। नतीजतन न तो सांसद महोदय केसरी के नामांकन में पहुंचे और ना ही इनके चुनाव प्रचार में ही कोई
खास दिलचस्पी दिखायी।
... अखिलेश-स्टालिन में क्या बात हुई?
बिहार चुनाव के हालिया नतीजों के बाद इंडिया गठबंधन की राजनीति में भी घोर उथल-पुथल का दौर ‘शुरू हो चुका है। नतीजे आने के तुरंत बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से एक लंबी बात की। आने वाले कुछ महीनों में (अप्रैल मई 26) तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, सो स्टालिन चाहते थे कि अखिलेश चुनाव प्रचार के लिए तमिलनाडु भी आएं क्योंकि राज्य में उत्तर भारतीयों की एक बड़ी तादाद है और इस बिहार चुनाव में भी अखिलेश ने वहां जितनी चुनावी सभाएं कीं उनमें लोगों की अच्छी-खासी भीड़ जुटी। स्टालिन अपनी बातचीत में राहुल गांधी और कांग्रेस को लेकर भी बेहद गंभीर दिखे। उनका मानना था कि राहुल गांधी ने बिहार में जितनी मेहनत की वह वोटों में तब्दील नहीं हो पायी। स्टालिन को इस बात की भी चिंता थी कि मुस्लिम वोटरों का भी बिहार में कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वे ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की ओर चले गए। यहां न सिर्फ ओवैसी के 5 लोग जीत गए, बल्कि 9 सीटों पर उनके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। कहते हैं स्टालिन ने अखिलेश से कहा कि तमिलनाडु चुनाव में उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन बरकरार रहेगा, पर उन्होंने अपने कैडर से कह दिया है कि वे चुनाव में कांग्रेस पर ज्यादा निर्भरता ना रखें। अखिलेश ने भी स्टालिन के समक्ष स्पष्ट किया कि कांग्रेस को लेकर वे भी उलझन में हैं। हालिया बिहार चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राईक रेट मात्र 10 फीसदी के आसपास है, जो
पिछली बार 27 फीसदी था।
...और अंत में
प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कांग्रेस में एक बड़ी टूट की भविष्यवाणी कर चुके हैं। इस वक्त मुख्यधारा की कांग्रेसी राजनीति में घोर उथल-पुथल का दौर जारी है। इसकी धमक कांग्रेस ‘शासित राज्यों में भी सुनी जा सकती है। बताया जा रहा है कि कर्नाटक में एक बार फिर से वहां के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके डिप्टी डीके शिवकुमार आमने-सामने आ गए हैं। लगता है ढाई-ढाई साल के राज का फार्मूला सिद्धारमैया ने ठुकरा दिया है। अब वे खम्म ठोक कर कह रहे हैं कि वे अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करेंगे। वहीं डीके ने भी दिल्ली को यह कह कर चाैंका दिया है कि कर्नाटक के सभी 140 विधायक मेरे विधायक हैं, किसी तरह का ग्रुप बनाना उनके खून में नहीं। वहीं दिल्ली में जब बिहार की हार को लेकर मंथन बैठक चल रही थी तो दिग्गी राजा ने मुकुल वासनिक को आड़े हाथों लेते हुए कहा-‘आपको क्या पता ग्राउंड रियल्टी? आपको तो यह भी नहीं पता होगा कि बीएलओ क्या होता है?’ कांग्रेस में राहुल के कुछ खास दुलारे नेताओं मसलन, केसी वेणुगोपाल या अजय माकन पर भी सीनियर नेताओं का तंज जारी है।

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