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'इस्लाम, इस्लाम ही रहेगा चाहे कोई कहीं भी रहे...', वक्फ संशोधन कानून पर Supreme Court का बड़ा बयान

सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, इस्लाम की एकरूपता पर जोर

03:39 AM May 22, 2025 IST | Shivangi Shandilya

सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, इस्लाम की एकरूपता पर जोर

वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस मसीह ने कहा कि इस्लाम की एकरूपता बनी रहेगी। केंद्र की दलील थी कि आदिवासी इलाकों के मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक पहचान अलग है। एसजी तुषार मेहता ने कहा कि संशोधित कानून से ST समुदाय की ज़मीनों का संरक्षण आवश्यक है।

Waqf Amendment Act 2025: वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर आज यानी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने इस्लाम की एकरूपता को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि “इस्लाम, इस्लाम ही रहेगा चाहे कोई कहीं भी रहे.”

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह टिप्पणी केंद्र सरकार की उस दलील पर आई जिसमें यह कहा गया कि आदिवासी इलाकों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग बाकी देश के मुसलमानों की तरह इस्लाम का पालन नहीं करते.

लगातार तीसरे दिन हुई सुनवाई

चीफ जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस मसीह की पीठ वक्फ कानून में किए गए संशोधनों को लेकर दायर याचिकाओं पर लगातार तीन दिन से सुनवाई कर रही है. तीसरे दिन की सुनवाई में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने अपनी दलीलें पेश कीं

ST समुदाय के मुसलमानों पर दिया ये तर्क

एसजी तुषार मेहता ने तर्क दिया कि संशोधित कानून के जरिए अनुसूचित जनजातियों के मुस्लिम समुदाय की ज़मीनों को संरक्षित करना जरूरी है. उनका कहना था कि संविधान द्वारा इन्हें विशेष संरक्षण मिला है और यह वैध रूप से दिया गया है.

एसजी मेहता ने वक्फ की परिभाषा देते हुए कहा कि यह खुदा के लिए स्थाई समर्पण होता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति ने अपनी ज़मीन बेच दी और बाद में पता चला कि ST समुदाय से संबंधित व्यक्ति को ठगा गया, तो ऐसी स्थिति में जमीन वापस की जा सकती है. लेकिन वक्फ एक स्थायी और अपरिवर्तनीय व्यवस्था होती है.

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सांस्कृतिक विविधता बनाम धार्मिक एकता

एसजी मेहता ने कहा कि जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) की राय है कि आदिवासी इलाकों के मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक पहचान अलग है और वे मुख्यधारा के मुसलमानों से अलग रीति-रिवाज अपनाते हैं. इस पर जस्टिस मसीह ने स्पष्ट किया कि सांस्कृतिक अंतर हो सकते हैं, लेकिन धर्म का मूल स्वरूप एक ही रहता है.

वक्फ के दुरुपयोग की शिकायतें

एसजी मेहता ने कोर्ट को यह भी बताया कि कई आदिवासी संगठनों ने आरोप लगाया है कि उनकी ज़मीनें वक्फ के नाम पर हड़पी जा रही हैं, जो पूरी तरह असंवैधानिक है. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इस आधार पर कानून पर रोक लगाई जा सकती है.

बता दें कि मंगलवार से नए सीजेआई बी आर गवई की बेंच ने वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की. यह मामला पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के समक्ष लंबित था, लेकिन उनके सेवानिवृत्त होने से पहले इसे नए चीफ जस्टिस बी आर गवई की पीठ को सौंप दिया गया.

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