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अलग-थलग पड़ता पाकिस्तान

कुछ लादेननुमा लोगों की अमानवीय करतूतों से पूरे विश्व में इस्लाम को आतंक का पर्याय बनाकर रख दिया है। इस्लाम और आतंक न सिर्फ एक-दूसरे से अलग हैं बल्कि एक-दूसरे के विरोधी भी हैं।

12:12 AM Dec 01, 2020 IST | Aditya Chopra

कुछ लादेननुमा लोगों की अमानवीय करतूतों से पूरे विश्व में इस्लाम को आतंक का पर्याय बनाकर रख दिया है। इस्लाम और आतंक न सिर्फ एक-दूसरे से अलग हैं बल्कि एक-दूसरे के विरोधी भी हैं।

अलग थलग पड़ता पाकिस्तान
कुछ लादेननुमा लोगों की अमानवीय करतूतों से पूरे विश्व में इस्लाम को आतंक का पर्याय बनाकर रख दिया है। इस्लाम और आतंक न सिर्फ एक-दूसरे से अलग हैं बल्कि एक-दूसरे के विरोधी भी हैं। दुनिया में कहीं भी बेकसूर को निशाना बनाने वाली कोई भी कार्रवाई भले ही वह किसी व्यक्ति की या फिर सरकार की या किसी स्वतन्त्र संगठन ने की हो, वह इस्लाम के मुताबिक आतंकवाद की कार्रवाई है।
भारत लगातार पाक प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेल रहा है लेकिन पाकिस्तान को अब कश्मीर और आतंकवाद के मोर्चे पर लगातार नाकामी मिल रही है। इस्लामी फोबिया के जरिए पाकिस्तान हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का राग अलापने लगता है और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ रही है।
जिन देशों से उसकी गहरी मैत्री रही है, वह भी अब उससे दूर खड़े नजर आते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हाईलाइट करने की भरपूर कोशिशें कर रहे हैं। 57 मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी में इमरान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के मुद्दे पर भारत को घेरने की कोशिश की लेकिन संगठन ने इस मुद्दे को अपने एजैंडे में ही शामिल करने से इन्कार कर दिया।
ओआईसी ने अपनी थीम आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता, शांति और विकास रखा था। संगठन ने स्पष्ट कर दिया कि विदेश मंत्रियों की बैठक में सिर्फ मुस्लिम देशों के सामूहिक मुद्दों पर विचार किया जाएगा। ओआईसी में पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर चर्चा कराना चाहता था लेकिन संगठन के सबसे ताकतवर देश सऊदी अरब ने वीटो लगा दिया।
कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने ओआईसी की बैठक बुलाने की धमकी दी थी लेकिन यह धमकी भी काम नहीं आई। दूसरे ही दिन पाकिस्तान को अपना स्टैंड वापस लेना पड़ा था।
अब पाकिस्तान के सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य मुस्लिम देशों से संबंधों पर संकट छा गया है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तेल की आपूर्ति करने और ऋण देने से इन्कार कर दिया है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान के लिए अपने खजाने का मुंह एक तरह से बंद कर दिया है। संयुक्त अरब अमीरात भी पाकिस्तान को मुंह नहीं लगा रहा। अन्य मुस्लिम देशों की बात करें तो वह भी अमेरिका के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
संयुक्त अरब अमीरात ने पाकिस्तान समेत 12 देशों के यात्रियों को वीजा देने पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। इन देशों में भारत का नाम नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात के इस फैसले को भले ही पाकिस्तानी अधिकारी कोरोना की दूसरी लहर से जोड़कर देख रहे हैं लेकिन राजनीति के जानकार इसे हाल के दिनों में दोनों देशों के तलख हुए रिश्तों के नतीजों के तौर पर देख रहे हैं।
जिन देशों के यात्रियों पर संयुक्त अरब अमीरात ने रोक लगाई है, लगभग उन सभी देशों में ​िकसी न किसी रूप में आतंकवाद मौजूद है। अफगानिस्तान के कंधार में 2017 में हुए बम धमाके में संयुक्त अरब अमीरात के पांच कू​टनीतिक अधिकारियों की मौत हो गई थी।
जब इस धमाके की जांच की गई तो पता चला कि इसमें हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. का हाथ था। पाकिस्तान अब तुर्की को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब का भारत को समर्थन  या उम्मीद के मुताबिक पाकिस्तान के पक्ष में समर्थन नहीं करना बहुत कुछ कहता है। भारत के संयुक्त अरब अमीरात से संबंध काफी अच्छे हैं।
यही कारण है कि उसने पाकिस्तान के कश्मीर पर ब्लैक डे मनाने के प्रस्ताव को भी अमीरात ने मानने से इन्कार कर दिया। यद्यपि ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में पारित प्रस्ताव में कश्मीर का जिक्र रस्म अदायगी भर है और यह भारत को हैरान कर देने वाला नहीं है।
भारत ने इस पर हमेशा की तरह कड़ा प्रोटैस्ट किया है। अलग-थलग पड़ते जा रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ओआईसी के समानांतर तुर्की, ईरान और मलेशिया को मिलाकर एक संगठन खड़ा करने की कोशिश की थी लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली। अमेरिका ने पाकिस्तान से काफी दूरी बना ली है। पाकिस्तान कई वर्षों तक अमेरिका का पालतू बनकर उसके डालरों पर मजा करता रहा  और आतंकवाद को सींचता रहा।
आर्थिक संकट से घिरने पर इमरान खान ने खाड़ी देशों से मदद की गुहार लगाई थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मजबूरन पाकिस्तान को चीन की गोद में बैठना पड़ा। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहली बार हो रहे जिला विकास परिषद के चुनाव में जिस उत्साह के साथ मतदाताओं ने वोट डाले उसे देखकर भी पाकिस्तान का हैरान होना स्वाभाविक है।
भय मुक्त माहौल में मतदान केन्द्रों पर कश्मीरियों की भीड़ लोकतंत्र में आस्था को ही अभिव्यक्त करना है। कड़ाके की ठंड के बावजूद लोगों का वोट डालना सामान्य होती स्थितियों की ओर इशारा करता है और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति विश्वास का ही परिणाम है। पाकिस्तान को समझना होगा कि आतंकवाद को अपनी राजनीति का एजैंडा उसके खुद के लिए भी खतरनाक है और अब वह पूरी तरह विफल राष्ट्र बन चुका है।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
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