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एकदूसरे के हितों के अनुरूप काम करने का रास्ता खोजना भारत और चीन के पारस्परिक हित में है - जयशंकर

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि यह भारत और चीन के पारस्परिक हित में है कि वे एक-दूसरे के हितों के अनुरूप काम करने का रास्ता खोजें क्योंकि अगर वे ऐसा करने में विफल रहे तो यह एशिया के उदय को प्रभावित करेगा।

12:43 AM Sep 22, 2022 IST | Shera Rajput

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि यह भारत और चीन के पारस्परिक हित में है कि वे एक-दूसरे के हितों के अनुरूप काम करने का रास्ता खोजें क्योंकि अगर वे ऐसा करने में विफल रहे तो यह एशिया के उदय को प्रभावित करेगा।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि यह भारत और चीन के पारस्परिक हित में है कि वे एक-दूसरे के हितों के अनुरूप काम करने का रास्ता खोजें क्योंकि अगर वे ऐसा करने में विफल रहे तो यह एशिया के उदय को प्रभावित करेगा।
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संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र में भाग लेने के लिए यहां आए जयशंकर ने यहां कोलंबिया विश्वविद्यालय में बातचीत के दौरान सीमा पर गतिरोध के बीच, चीन और भारत के उदय के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की।
जयशंकर ने कहा, ‘हमारे समय में, हमने दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव देखा है, वह है चीन का उभार । इसके बारे में कोई शक नहीं है। तुलनात्मक तौर पर देखने पर इससे भारत की अप्रत्याशित प्रगति कुछ कम दिखती है।’’
विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी भारत का मूल्यांकन उसके गुणों के आधार पर करता है, उसने कितनी प्रगति की है, उसकी विकास दर, जोकि शानदार है, ‘वहीं आपके पास चीन है जो एक ही समय में तेजी से आगे बढ़ा है।’
उन्होंने कहा, ‘आज हमारे लिए मुद्दा यह है कि कैसे दो उभरती शक्तियां एक-दूसरे के हितों के अनुरूप एक गतिशील स्थिति में काम करने का तरीका ढूंढती हैं।’’
जयशंकर ने कहा, ‘एशिया का उदय एशिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं या एशिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के एक-दूसरे के हितों के अनुरूप काम करने पर निर्भर है।’
इस दौरान विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता नहीं मिल पाना न केवल हमारे लिए बल्कि संयुक्त राष्ट्र के लिए भी अच्छा नहीं है और इस वैश्विक निकाय में सुधार जरूरी है।
विदेश मंत्री से पूछा गया कि भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने में कितना समय लगेगा? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कि ‘‘भारत को स्थायी सदस्यता नहीं मिल पाना न केवल हमारे लिए बल्कि संयुक्त राष्ट्र के लिए भी सही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र में सुधार होना चाहिए।’’
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