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किसानों के मुद्दे का समाधान जरूरी है

एमएसपी और कर्ज माफी की मांग को लेकर किसान फिर से सड़कों पर उतर आए…

09:25 AM Dec 10, 2024 IST | Rohit Maheshwari

एमएसपी और कर्ज माफी की मांग को लेकर किसान फिर से सड़कों पर उतर आए…

किसानों के मुद्दे का समाधान जरूरी है

एमएसपी और कर्ज माफी की मांग को लेकर किसान फिर से सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदर्शन कर रहे किसानों का मुद्दा संसद में भी गूंज रहा है और सरकार उनकी मांगों का हल निकालने की बात कह रही है। राज्यसभा में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देना चाहते हैं और इस पर काम चल रहा है। केंद्रीय मंत्री के बयान से इतर किसानों का मसला सुलझाना इतना भी आसान नजर नहीं आ रहा है। जानकारों का कहना है कि किसानों की मांग और सरकारी सिस्टम के बीच कुछ बिन्दु ऐसे हैं जिसकी वजह से हाल के दिनों में इसके सुलझने के आसार कम ही दिख रहे हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के मुताबिक किसानों की सबसे बड़ी मांग सभी फसलों को एमएसपी की गारंटी देने की है। किसान संगठन चाहते हैं कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएस स्वामीनाथन की सिफारिश वाला फॉर्मूले हो। किसान संगठनों की दूसरी बड़ी मांग गन्ना और हल्दी को लेकर है। संगठन का कहना है कि गन्ना की खरीदी भी स्वामीनाथन की सिफारिश पर ही की जानी चाहिए। किसानों की एक अन्य मांग कृषि क्षेत्र को प्रदूषण से बाहर रखने की भी है। आंदोलन के अगुवा सरवन सिंह पंढेर के मुताबिक हमारी कुल 12 मांगें हैं, जिस पर पहले भी सरकार से बातचीत हो चुकी है। सरकार ने पहले इस पर ठोस एक्शन की बात कही थी, लेकिन अब सरकार सुन नहीं रही है।

असल में किसानों की मांग के बीच विश्व व्यापार संगठन के पेच हैं। किसान सभी फसलों पर एमएसपी की लीगल गारंटी चाहते हैं। अगर केंद्र लीगल गारंटी देती है तो सभी फसलों की खरीदारी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही उसे करनी होगी, लेकिन इसमें एक पेच विश्व व्यापार संगठन का है। विश्व व्यापार संगठन व्यापार से जुड़े वैश्विक नियमों को तय करने वाला अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य है और उसकी शर्तों पर हस्ताक्षर कर चुका है। डब्ल्यूटीओ ने अपनी शर्तों में न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी न देने की बात कहा है। विश्व व्यापार संगठन सिर्फ सब्सिडी देने की बात कहता है। यानी सरकार अगर इसे लागू करती है तो उसे पहले डब्ल्यूटीओ की सदस्यता छोड़नी होगी, जो कि आसान नहीं है। यही वजह है कि हाल के दिनों में किसान संगठनों ने डब्ल्यूटीओ के खिलाफ भी मोर्चा खोल रखा है।

कृषि राज्य का मसला है- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 में कृषि का जिक्र है। इसमें कृषि को राज्य का विषय बताया गया है। हालांकि, योजना लागू करने और अन्य अधिकार केंद्र के पास भी है। 2020 में संसद के मानसून सत्र में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सांसद फूलो देवी नेताम के एक सवाल के जवाब में भी कृषि को राज्य का मसला बताया था। यानी राज्य ही इस पर बड़ा फैसला ले सकती है। अभी किसान अपनी मांगों को केंद्र से मनवाने पर अड़े हैं। किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र इस मसले पर बिल लेकर आए और संसद से पास कराए। विपक्ष भी इस मांग को उठा रहा है, लेकिन केंद्र अगर ऐसा करती है तो यह संवैधानिक संकट के दायरे में आ जाएगा।

अगर इसे कोर्ट में चैलेंज किया जाए तो नए सिरे से बहस छिड़ सकती है, जिससे केंद्र पर ही सवाल उठेगा। क्योंकि, अगर इसे राज्य स्वीकार कर लेती है तो भविष्य में पुलिस और अन्य राज्य के मसले में भी केंद्र दखल दे सकती है। वहीं मसला यह भी है कि लागत कैसे तय हो, यह भी सवाल- एक पेच फसलों की लागत को लेकर भी है। आंदोलनकारियों का कहना है कि लागत किसान ही तय करें, तभी बात बन सकती है। किसान संगठनों का कहना है कि स्वामीनाथन के फॉर्मूले को वर्तमान की महंगाई के हिसाब से तय किया जाए. जब यह रिपोर्ट बनाई जा रही थी, तब मजदूरों को कम पैसे देने पड़ते थे, लेकिन अब मजदूरी सबसे ज्यादा बोझ हो गया है।

किन फसलों पर मिले एमएसपी इस पर भी संशय है। सरकार उन फसलों पर ही एमएसपी देना चाह रही है, जो वर्तमान में डिमांड में हैं। इनमें दलहन और तिलहन की फसलें हैं। सरकार ने हालिया एमएसपी की लिस्ट में इन फसलों की दामों में बढ़ोतरी भी की है। उत्तर और दक्षिण भारत के अधिकांश किसान रबी में गेहूं और खरीफ धान उपजाने का काम करता है। किसानों को इसी का ज्ञान भी है। ऐसे में किसान क्या करे? किसान संगठन सभी फसलों पर संपूर्ण एमएसपी देने की मांग कर रहा है।

किसानों के मुद्दे पर बीते दिनों राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि, ‘‘कृषि मंत्री जी, एक-एक पल आपका भारी है। मेरा आपसे आग्रह है और भारत के संविधान के तहत दूसरे पद पर विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है कि कृपा कर मुझे बताएं कि क्या किसानों से वायदा किया गया था? वायदा क्यों नहीं निभाया गया? वायदा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं!’’ हालांकि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी पर कुछ नहीं कहा और इस संबंध में गठित समिति पर भी सवाल नहीं किया, लेकिन उपराष्ट्रपति के रूप में किसानों को एक ताकतवर, सशक्त पैरोकार मिला है। शिवराज भी जून, 2024 में ही कृषि मंत्री बने हैं। जो भी वायदे किए गए होंगे, वे नरेंद्र तोमर और अर्जुन मुंडा के कृषि मंत्री काल के होंगे! बहरहाल भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का 17 फीसदी से अधिक का योगदान है और देश के कार्यबल में करीब 47 फीसदी कृषि और किसान का योगदान है। देश की करीब दो-तिहाई आबादी कृषि के भरोसे है, लेकिन आज भी किसान की औसत आय 16,928 रुपए माहवार है। किसान की आय से अधिक खर्च बढ़े हैं और प्रति किसान 91,000 रुपए से अधिक का कर्ज है।

यदि एक बार फिर राजधानी दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्रों में किसान लामबंद होकर आंदोलन छेड़ते हैं, तो चौतरफा जन-व्यवस्था अराजक हो जाएगी। जब पिछला किसान आंदोलन समाप्त कराया गया था, तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वस्त किया था। एक समिति गठित की गई थी।

कृषि विशेषज्ञों का एक तबका मानता है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी कोई समाधान नहीं है। सिर्फ खुला बाजार देने से ही किसान के हालात बदल सकते हैं, लेकिन आंदोलित किसानों की सबसे अहम मांग यही है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए। किसान इस बार आर-पार के आंदोलन के मूड में हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक संकेत अभी तक नहीं आया है। अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों ने दिल्लीम कूच का इरादा कुछ समय के लिए टाल दिया है लेकिन वे हाईवे पर जमे हुए हैं। सरकार और किसान आंदोलनकारियों को मामले के कानूनी और व्यावाहारिक पक्षों को ध्यान में रखते हुए सकारात्मक सोच के साथ इस मुद्दे का ठोस समाधान खोजना चाहिए। वहीं विपक्ष की भी जिम्मेदारी बनती है कि वो किसानों का उकसाने और भड़काने की बजाय अन्नदाताओं की उचित मांगों के लिए सकारात्मक प्रयास और राजनीति करनी चाहिए।

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