W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

It’s My Life (19)

तीसरी बार पं. नेहरू ने अपने चुने हुए नुमाइंदों का कमीशन बनाया और लालाजी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप की जांच के लिए दिल्ली से पंजाब भेजा।

04:54 AM Jul 29, 2019 IST | Ashwini Chopra

तीसरी बार पं. नेहरू ने अपने चुने हुए नुमाइंदों का कमीशन बनाया और लालाजी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप की जांच के लिए दिल्ली से पंजाब भेजा।

it’s my life  19
Advertisement
प्राईवेट बस आप्रेटरों और कैरों के षड्यंत्र रचने के उपरान्त लालाजी ने तीसरी बार अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री को सौंपा। तीसरी बार पं. नेहरू ने अपने चुने हुए नुमाइंदों का कमीशन बनाया और लालाजी के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप की जांच के लिए दिल्ली से पंजाब भेजा। एक लम्बी-चौड़ी जांच चली और आखिरकार तीसरी बार लालाजी पर लगे आरोपों को इस कमीशन ने झूठा और इरादतन लालाजी को बदनाम करने के प्रयासों के रूप में घोषित कर दिया।
Advertisement
दिल्ली से आए पंडित जी के क​मीशन ने लालाजी को जब क्लीन चिट दे दी तो उसके उपरान्त लालाजी ने दोबारा अपने तीनों मंत्रालयों का मंत्री पद संभाल लिया। आज जो पूरे देश में केंद्र और प्रदेश सरकारों के शिक्षा विभाग बनाए गए हैं और निजी प्रकाशकों की पुस्तकें स्कूलों में बंद करके प्रदेश और केंद्र के शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकें लगाई जाती हैं, इसकी शुरुआत लालाजी ने 1952 में पंजाब से की थी।
Advertisement
आज जो बड़े-बड़े सरकारी स्वास्थ्य और रिसर्च केंद्र जैसे कि AIIMS यानि आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैडिकल साइंस, सफदरजंग अस्पताल और राम मनोहर लोहिया जैसे बड़े-बड़े अस्पताल चल रहे हैं, प्रदेशों की राजधानियों और बड़े शहरों में संजय गांधी अस्पताल, अम्बेडकर अस्पताल, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल और जे.पी. अस्पतालों के अलावा देश के हर प्रमुख जिले में सरकारी सिविल अस्पताल चलाए जा रहे हैं, इसकी भी नींव लालाजी ने 1953 में चंडीगढ़ में ‘PGI’ द्वारा रखी थी।
आज पूरे देश में जो बसों के सफर का सरकारीकरण हुआ है। सभी प्रदेशों में जैसे हरियाणा रोडवेज, हिमाचल रोडवेज, यूपी रोडवेज और कितने नाम गिना दूं, इसकी भी नींव ‘पंजाब रोडवेज’ के तौर पर बतौर परिवहन मंत्री पंजाब लालाजी ने 1952-1954 के बीच रखी थी। आज लालाजी द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन की नीतियों का अनुसरण पूरे देश में हो रहा है। यह लालाजी की दूरदर्शी नीतियों का फल नहीं तो और क्या है? क्या आज ऐसे मंत्री आप को चिराग लेकर ढूंढने पर भी मिलेंगे?
कैसे थे वो लोग !  कहां चले गए वो लोग!
लालाजी ने 1952 से 1956 तक पंजाब के इन तीन मंत्रालयों के मंत्री के तौर पर जो ऐतिहासिक फैसले लिए और जिस प्रकार उन पर बार-बार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए, बार-बार (तीन बार) लालाजी ने अपने मंत्री से पद से त्यागपत्र दिए, बार-बार केंद्र से आए कमीशन द्वारा जांच की गई, बार-बार प्रताप सिंह कैरों के षड्यंत्रों का शिकार उन्हें बनाया गया, सभी षड्यंत्र और आरोप लालाजी की ईमानदारी के समक्ष धराशायी हो गए।
‘सत्यमेव जयते’ अंततः जीत तो सच्चाई की होती है। इन सभी आरोपों में दोषमुक्त हो जाने के उपरांत जब भीमसेन सच्चर के त्यागपत्र के बाद मुख्यमंत्री पद की गद्दी भ्रष्ट स. प्रताप सिंह कैरों को सौंप दी तो लालाजी का दिल न केवल पंडित जी बल्कि कांग्रेस पार्टी से टूट गया और 1956 में लालाजी ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से ही अपना त्यागपत्र दे दिया।
फिर पंजाब में दौर शुरू हुआ प्रताप सिंह कैरों के भ्रष्टाचार और परिवारवाद का! कैरों अपने समय के सशक्त मुख्यमंत्री थे लेकिन उनकी पत्नी, दोनों बेटों गुरबिंदर और सुरिंदर कैरों के भ्रष्टाचार, आचार-विचार से न केवल प्रताप सिंह कैरों बल्कि उनके पूरे परिवार को अभिमान और भ्रष्टाचार ने घेर लिया। उधर लालाजी वापस जालंधर आ गए और पिता-पुत्र  हिंद समाचार अखबार को पुनः जिन्दा करने का प्रयास करने लगे। मेरा जन्म 11 जून 1956 के दिन हुआ। यह वही दिन था ​जिस दिन लालाजी ने अपने मंत्री पद के पश्चात कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र दिया था और ‘फुल टाइम’ पत्रकारिता करने का मन बना लिया था, लेकिन 1952 से 1964 तक का लालाजी और पिताजी का सफर शायद उनके जीवन का सबसे बुरा वक्त था।
क्या कोई सोच सकता है कि जिस व्यक्ति का पिता तीन-तीन मंत्री पदों से सुसज्जित हो, उसका बेटा रात तक अखबार तैयार करता था, उसे छापता था और सुबह चार बजे अपनी साइकिल के पीछे बंडल बांधकर रेलवे रोड, जहां बाकी अखबार बिकते थे, वहां जमीन पर बैठकर खुद अखबार बेचता था।
1967-68 में तब मेरी उम्र केवल 12 वर्ष थी। मैं भी कई बार सुबह अपने पिता जी के साथ अखबार बेचने जाता था। पिता जी साइकिल के पीछे अखबार का बंडल और आगे के ‘डंडे’ पर मुझे बिठाकर ले जाया करते थे। फिर मैं भी जमीन पर बैठकर पिताजी के साथ अखबार बेचने में उनकी सहायता करता था। बचपन का पिताजी के साथ सुबह आने का लालच यही होता था कि अखबार बेचने के उपरांत पिताजी मुझे खाने के लिए दो बिस्कुट, एक ‘बंध’ और चाय पिलाया करते थे।
लालाजी पर जब-जब भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे लालाजी और रमेश जी ने मिल कर विरोधियों का सामना किया। लालाजी ने प्राइवेट पब्लिशरों से किताबों का प्रकाशन का काम और सरकारी स्कूलों में उनको बेचने पर पाबन्दी का अपना आदेश नहीं बदला। सरकारी अस्पतालों का अपना पूरे पंजाब यानि उस समय के पंजाब यानि आज के हरियाणा, हिमाचल और पंजाब में उद्घाटनों का सफर जारी रखा। अन्त में निजी बस चालकों से पंजाब रोडवेज बनाने के अपने फैसले पर अड़ गए। नजीता अन्ततः लालाजी को अपने इन ऐतिहासिक कदमों पर जीत प्राप्त हुई और पूरे देश में लालाजी का नाम उभर कर सामने आने लगा।
मैं जब 2014 में करनाल संसदीय क्षेत्र से संसद सदस्य बना और मैंने पानीपत और करनाल समेत सभी क्षेत्र का दौरा किया तो मुझे जगह-जगह सरकारी अस्पतालों में जाने का ​मौका मिला। सभी जगह लालाजी द्वारा रखे नींव पत्थर मिले। जिन पर लिखा था 1952-1956 तक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री लाला जगत नारायण जी ने इस सरकारी अस्पताल की नींव पत्थर रखा, तो गर्व से मेरा सीना चौड़ा हो जाता था। बार-बार उन पत्थरों को देखता और हाथों से पौंछ कर साफ करता रहता। कई बार तो आंखों में आंसू आ जाते ​थे।
2014 से 2019 तक मैंने करनाल संसदीय क्षेत्र की लोकसभा में सांसद के रूप में अपनी पत्नी किरण और पुत्र आदित्य के साथ मिल कर यथाशक्ति सेवा की। पानीपत जिले के एक गांव में जब मैं गया तो वहां के एक सरकारी स्कूल के अधेड़ हैडमास्टर जी और उनके बेटे, जो अब इस स्कूल का हैडमास्टर था, उन्होंने मेरा स्वागत किया। उस स्कूल की स्थापना भी लालाजी ने ही की थी। वहां नींव पत्थर पर लिखा था-इस स्कूल की स्थापना 1954 नवम्बर 25 के दिन प्रदेश के शिक्षा मंत्री लाला जगत नारायणजी ने की है। उस स्कूल की इमारत की स्थिति बेहद जर्जर थी। मैंने अपने सांसद फंड में से 25 लाख रुपए दिए और उस स्कूल की इमारत की मरम्मत करवा दी।
जब मैं दोबारा उस स्कूल में पहुंचा तो वहां एक पत्थर और लगा था। उस पर लिखा था- 1953 में प्रदेश के शिक्षा मंत्री लाला जगत नारायणजी ने इस स्कूल की नींव रखी। 2015 में संसद सदस्य बने उनके पोते अश्विनी चोपड़ा ने इस स्कूल की पूरी मरम्मत करवा कर इसे नया रूप दे दिया। इन दोनों पत्थरों के बीच खड़े मुझे दादा 1952 से पोते 2019 के बीच का जीवन सफर याद आने लगा। मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे और मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो गया। ‘दादाजी, पिता जी-I Miss You!’
Advertisement
Author Image

Ashwini Chopra

View all posts

Advertisement
Advertisement
×