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It’s My Life (20)

मैंने जब 1982 में राजधानी दिल्ली से पंजाब केसरी निकाला तो पुराने दिनों की याद दिमाग में ताजा थी। मैं खुद दिल्ली के चौराहों पर जहां अन्य अखबार बिकते थे वहां जमीन पर बैठकर अपना अखबार बेचा करता था।

05:32 AM Jul 31, 2019 IST | Ashwini Chopra

मैंने जब 1982 में राजधानी दिल्ली से पंजाब केसरी निकाला तो पुराने दिनों की याद दिमाग में ताजा थी। मैं खुद दिल्ली के चौराहों पर जहां अन्य अखबार बिकते थे वहां जमीन पर बैठकर अपना अखबार बेचा करता था।

it’s my life  20
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मैंने जब 1982 में राजधानी दिल्ली से पंजाब केसरी निकाला तो पुराने दिनों की याद दिमाग में ताजा थी। मैं खुद दिल्ली के चौराहों पर जहां अन्य अखबार बिकते थे वहां जमीन पर बैठकर अपना अखबार बेचा करता था। आज भी अशोक विहार के ‘बिल्लू जी’ और गांधीनगर के ‘भोला जी’ इस बात का प्रमाण आपको दे सकते हैं कि आज से 37 वर्ष पूर्व कैसे मैंने अपने जालंधर के शरीकों के प्रबल विरोध में जमीन पर बैठ-बैठकर 1990 तक पंजाब केसरी को राजधानी दिल्ली का नम्बर वन अखबार बनाया था।
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इस समय तो मैं यही लिखना चाहता हूं कि 1952 से 1964 तक लालाजी को और हमारे परिवार को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर कैसे प्रताड़ित किया गया? क्या ये सोचा जा सकता है कि लालाजी पंजाब के सबसे कद्दावर मंत्री हों और घर में दो वक्त की रोटी भी पिताजी तथा परिवार के अन्य सदस्यों को नसीब न हो? मैं तो छोटा था मुझे आज भी याद है, मुहल्ला पक्का बाग में ER129 के घर में हमारा परिवार किराए पर रहता था। जब यह घर लालाजी ने शायद 1965 से 1970 के बीच करतारपुर के बाबा परिवार से 70 हजार का खरीदा और अपने छोटे बेटे यानी हमारा पूज्य चाचाजी की ड्यूटी लगाई कि जा बेटा इस घर की ‘रजिस्ट्री’ आधी अपनी भाभी के नाम और आधी अपनी बीवी के नाम करवा दे।
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‘बाप बड़ा न भईया, सबसे बड़ा रुपैया!
मेरे दादा जी कई बार अकेले में मुझे कहा करते थे- ‘‘बेटा मैं पूरे परिवार के लिए एक बहुत बड़ी रियासत बनाकर छोड़ने जा रहा हूं, इसको टूटने मत देना।’ मैं भी उनसे कहा करता था कि ‘दादाजी मैं आपको वायदा करता हूं आप द्वारा बनाई गई इस रियासत को मैं अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखूंगा!’
अब बात करें लालाजी और प्रताप सिंह कैरों के बीच चल रहे लम्बे राजनीतिक युद्ध की। इधर प्रताप सिंह कैरों केन्द्र से पंडित जी के पूर्ण समर्थन के साथ सशक्त होकर मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे। उधर लालाजी और रमेशजी के थोड़ी सी संख्या में छपने वाले उर्दू दैनिक हिंद समाचार की वजह से परिवार आ​र्थिक परिस्थितियों से गुजर रहा था। मुझे याद है हमारे जालन्धर के घर के अन्दर के खुले क्षेत्र में एक गाय और एक कुआं था, उस पर हैंडपम्प था। क्या आज यह सोचा जा सकता है कि एक भूतपूर्व पंजाब का ताकतवर मंत्री किराए के मकान में रहता था जिसकी छतें मिट्टी और ‘तूड़ी’ की बनी थीं। बरसात के मौसम में सभी जगह से पानी की बौछारें नीचे गिरती थीं, हम सभी लोग ऊपर छत पर जाकर जगह-जगह गोबर से छेदों को भरते थे। हमारे किसी के पास पंखा नहीं था। रात को सभी ऊपर छत पर सोते थे लेकिन वो भी क्या दिन थे। दो वक्त की रोटी खाकर मेहनत करने के पश्चात सोने का अपना ही आनंद था। पूरा घर एकजुट था।
इस बीच मुख्यमंत्री स. प्रताप सिंह कैरों की पंजाब में दहशत बढ़ती चली गई। साथ में ही उनकी पत्नी और बेटों के भ्रष्टाचार के चर्चे भी होने लगे। मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के एक बेटे ने तो हद कर दी जब चंडीगढ़ के सैक्टर 22 के मशहूर स्थान किरण सिनेमा के आगे से दिनदहाड़े अपनी कार में एक लड़की को उठाकर ले गए। उस समय किसी भी अखबार में इतनी हिम्मत नहीं थी जो यह खबर प्रकाशित करे लेकिन लालाजी और रमेशजी ने इस खबर को प्रमुखता से हिंद समाचार के प्रथम पृष्ठ पर छापा। पहला दिन था जब हिंद समाचार अखबार ​हाथों हाथ पूरे पंजाब में बिका और पूरा पंजाब इस घटना से दहल गया। लालाजी ने एक सम्पादकीय भी इस शर्मनाक घटना पर लिखा।
लेकिन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों और उनके परिवार के भ्रष्टाचार के किस्से यहीं पर ही खत्म नहीं हुए। कितनी ऐतिहासिक और समृद्ध थी हमारी विरासत और हमारे अतीत के गुजरे हुए समय के हमारे दादा, पड़दादा, लक्कड़दादा और उनके पुरखे। इसका जिक्र मैं कल के लेख में करूंगा। इस संबंध में विस्तार से आगे लिखूंगा। इस बीच अपने परिवार पर कल के लेख में अभी नजर डालनी बाकी है।
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Ashwini Chopra

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