Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

It’s My Life (32)

राज्यसभा में सदस्यता के दौरान लालाजी ने मैम्बर पार्लियामैंट के तौर पर एक नया इतिहास रचा। यह मामला ​था राष्ट्रपति पद पर श्री वी.वी. गिरि को पहुंचाने का!

03:08 AM Aug 19, 2019 IST | Ashwini Chopra

राज्यसभा में सदस्यता के दौरान लालाजी ने मैम्बर पार्लियामैंट के तौर पर एक नया इतिहास रचा। यह मामला ​था राष्ट्रपति पद पर श्री वी.वी. गिरि को पहुंचाने का!

राज्यसभा में सदस्यता के दौरान लालाजी ने मैम्बर पार्लियामैंट के तौर पर एक नया इतिहास रचा। यह मामला ​था राष्ट्रपति पद पर श्री वी.वी. गिरि को पहुंचाने का! राज्यसभा सदस्यों के तौर पर लालाजी और श्री वी.वी. गिरि आपस में मिला करते थे। बाद में यह मिलने-मिलाने का सिलसिला दोस्ती में बदला और अंत में इतना प्रगाढ़ रिश्ता बना कि श्री वी.वी. गिरि को राष्ट्रपति पद पर पहुंचाने में सिर्फ लालाजी वी.वी. गिरि के काम आए और साथ खड़े दिखाई दिए। बात प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से शुरू करते हैं। 1966 में देश में राष्ट्रपति के चुनाव थे। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर श्री नीलम संजीवा रेड्डी को मैदान में उतारने का ऐलान किया। श्री संजीवा रेड्डी के नाम पर कांग्रेस पार्टी में विद्रोह होने लगा, क्योंकि राष्ट्रपति पद के लिए कितने ही दिग्गज कांग्रेसी नेता तैयारी कर रहे थे। 
Advertisement
श्री नीलम संजीवा रेड्डी के नाम की इंदिरा जी द्वारा घो​षणा के उपरांत कांग्रेस के असंतुष्टों में विद्रोह पनपने लगा और इंदिरा जी पर इसका दबाव बढ़ता चला गया। फिर नौबत यहां तक आ पहुंची कि प्रधानमंत्री को अपने इस फैसले पर पश्चाताप होने लगा। क्योंकि बहुत देर हो चुकी ​​थी और श्री नीलम संजीवा रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव आयोग के समक्ष अपने नामांकन पत्र दाखिल कर चुके थे। इंदिरा जी इस चक्रव्यूह में फंस चुकी थीं लेकिन इंदिरा जी हार कहां मानने वाली ​थीं। भारत की इस IRON LADY ने अपने इस फैसले को निरस्त करने का एक और नायाब तरीका निकाला जो इससे पहले न तो राष्ट्रपति के चुनाव में किसी भी प्रधानमंत्री ने अपनाया और न ही भविष्य में आज तक ऐसा करतब हुआ।
प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने गुपचुप तरीके से श्री वी.वी. गिरि से मुलाकात की और उन्हें एक आजाद उम्मीदवार के ताैर पर राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने को कहा। उन्हें यह निर्देश भी दिए कि वे अपने चुनावी नामांकन के लिए कोई सांसद ढूंढ लें और मैदान में खड़े हो जाएं लेकिन जब  श्री वी.वी. गिरि ने राज्यसभा और लोकसभा में कांग्रेसी और विपक्ष के सांसदों से सम्पर्क किया तो कांग्रेसी सांसदाें को प्रधानमंत्री के कोई निर्देश नहीं थे और विपक्षी सांसद उनका सा​थ इसलिए नहीं दे रहे थे कि श्री गिरि तो कांग्रेस के ही राज्यसभा में संसद सदस्य थे। श्री वी.वी. गिरि ने इंदिरा जी से सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि आप नामांकन का इंतजाम खुद करें। बाद में मैं खुलकर तो नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से मदद करूंगी। 
ऐसे में श्री वी.वी. गिरि को अपने पुराने दोस्त पूज्य अमर शहीद दादाजी लाला जगत नारायण जी की याद आई। श्री वी.वी. गिरि ने लालाजी को फोन करके अपने पास बुलाया और उन्हें सारी कहानी सुना दी। लालाजी श्री गिरि से बोले ​कि आप इंदिरा के मायाजाल में मत फंसो, वे तो आिखरी वक्त पर आपको धोखा दे सकती हैं। उन्होंने कहा कि मैं इंदिरा का विरोधी तो नहीं लेकिन उसकी राजनीतिक चालों को अच्छी तरह से समझता हूं। अगर श्रीमती गांधी नीलम संजीवा रेड्डी से धोखा कर सकती हैं तो आप किस खेत की मूूली हैं। इंदिरा गांधी जब अपने ही उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी की नहीं हुईं तो आप यानि गिरि साहेब आपकी क्या होंगी? लालाजी आगे बोले ​कि गिरि साहेब अगर आपने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का मन बना ही लिया है तो मैं आपके साथ अपनी दोस्ती की सौगंध खाता हूं कि अगर आप मुझे कहेंगे तो मैं आपके चुनाव आयोग के आवेदन पर एक आजाद सांसद के रूप में हस्ताक्षर करूंगा और आपके चुनाव प्रचार को भी संभालूंगा।
लालाजी बताते थे कि श्री वी.वी. गिरि ने उनके साथ भेंट के बाद प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी से मुलाकात की और उन्हें बताया कि कांग्रेस और विपक्ष के सांसद तो राजी नहीं हुए, लेकिन एक अकेले आजाद राज्यसभा के सांसद लाला जगत नारायण जी उनके साथ हैं। श्री वी.वी. गिरि ने बाद में लालाजी को बताया कि इंदिरा गांधी बेशक यह जानती ​थीं कि आप कांग्रेस और श्रीमती गांधी के विरोधी हैं लेकिन उन्होंने कहा कि लाला जगत नारायण  एक नेक, ईमानदार और स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। कांग्रेस पार्टी से उनका लम्बा नाता रहा है। मेरे पिता पं. नेहरू विरोध के बावजूद उनकी इज्जत किया करते थे। मैं भी दिल से उनकी इज्जत करती हूं। अगर लाला जगत नारायण तुम्हारे साथ हैं तो तुम्हें वे निश्चित रूप से मेरे समर्थन से जीत प्राप्त कराके राष्ट्रपति की गद्दी पर बिठा देंगे।
श्री वी.वी. गिरि द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का अंतिम निर्णय करने के उपरांत लालाजी ने श्री गिरि के राष्ट्रपति चुनाव का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। पहले उन्होंने श्री गिरि के राष्ट्रपति चुनाव के नामांकन पर हस्ताक्षर किए और श्री गिरि के साथ चुनाव आयोग के दफ्तर जाकर श्री गिरि के पेपर फाईल करवाए। बाद में श्री गिरि के चुनाव प्रचार का जिम्मा संसद के दोनों सदनों लोकसभा, राज्यसभा के सांसदों और पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की प्रादेशिक विधानसभाओं के विधायकों में उठा लिया।
मुझे याद है कि तब मैं बहुत छोटा था और स्कूल में गर्मियों की छुट्टियों पर पिताजी के साथ दिल्ली आया था। लालाजी और श्री वी.वी. गिरि की हर दिन बैठक होती थी। उस दिन खासतौर पर लालाजी मुझे भी श्री वी.वी. गिरि के घर ले गए। वहांं मुझे जीवन में पहली बार डोसा और इडली खाने का मौका मिला। दक्षिण भारत के इस स्वादिष्ट व्यंजन का सांभर के साथ खाने का मेरे जीवन का यह पहला अवसर था। लालाजी ने मेरा परिचय भी भी श्री वी.वी. गिरि से करवाया और कहा यह अश्विनी मेरा पोता है, जालंधर से आया है। श्री गिरि ने अपनी गोद में बिठाकर मुझे प्यार किया। लालाजी के अलावा श्री गिरि के बड़े बेटे शंकर गिरि भी वहां मौजूद थे। 
श्री वी.वी. गिरि द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन पत्र भरने के उपरांत कुछ ही दिनों में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने सभी सांसदों, मंत्रियों, प्रदेश के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों काे अपने खुफिया विभाग के माध्यम से यह गुप्त संदेश दिया कि राष्ट्रपति के चुनाव में राष्ट्रपति पद पर किसी को भी चुनते हुए सभी सांसद और विधायक अपनी ‘अन्तरात्मा’ की आवाज सुनें और अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति चुनाव में अपना मतदान करें। बाद में इंदिरा जी का संदेश प्रैस में भी लीक हो गया। प्रधानमंत्री के इस संदेश का अर्थ सभी समझते थे। वैसे भी अन्दर ही अन्दर गुप्त रूप से प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने सभी को गुप्त संदेश भेजा कि श्री संजीवा रेड्डी को हराना है और श्री वी.वी. गिरि को सफल बनाकर राष्ट्रपति पद पर बिठाना है। नतीजा सबके सामने था। सभी कांग्रेसी सांसदों और विधायकों ने अपना वोट श्री गिरि के पक्ष में डाला और श्री वी.वी. गिरि राष्ट्र के राष्ट्रपति चुन लिए गए।
राष्ट्रपति बनने के उपरान्त श्री गिरि उम्र भर लालाजी के अहसानमंद रहे। लालाजी ने गिरि साहेब से एक ही डिमांड की कि वे राष्ट्रपति के तौर पर एक बार उनके घर जालंधर जरूर आएं। शायद भारत के इतिहास में यह पहला मौका था कि एक आजाद संसद सदस्य के कहने पर देश का राष्ट्रपति सभी ‘प्राेटोकाल’ तोड़कर जालंधर शहर में लालाजी यानि हमारे घर में पधारे। मैं तब नौ या दस वर्ष का था। मुझे खासतौर पर अपने लाडले पोते के रूप में लालाजी ने दोबारा राष्ट्रपति जी से मिलवाया, इस मुलाकात का चित्र इस लेख के साथ आप सभी लोगों के समक्ष प्रस्तुत है।
Advertisement
Next Article