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हाथीदांत का व्यापार

भारत में धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखने वाले शक्ति और शांति के प्रतीक गजराज यानि हाथियों की लगातार घटती संख्या गंभीर मुद्दा रही है।

12:18 AM Nov 21, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत में धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखने वाले शक्ति और शांति के प्रतीक गजराज यानि हाथियों की लगातार घटती संख्या गंभीर मुद्दा रही है।

भारत में धार्मिक सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व रखने वाले शक्ति और शांति के प्रतीक गजराज यानि हाथियों की लगातार घटती संख्या गंभीर मुद्दा रही है। 2017 राष्ट्रीय हाथी जनगणना के मुताबिक देश में 27312 हाथी ही बचे थे। हाथियों के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार ने 2010 में हाथी को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया था लेकिन भारत में हाथी अकाल मौत मर रहे हैं। हाथियों की ज्यादातर मौतें मनुष्य और हाथियों में टकराव, हाथी दांत के लिए शिकार, ट्रेनों से कट जाने और बीमारियों के कारण होती हैं। मनुष्य और हाथियों में टकराव के चलते विशालकाय जीव की मौतों से हाथियों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है। हाथीदांत के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से न तो हाथियों का अवैध शिकार कम हुआ और न ही अवैध व्यापार की मात्रा कम हुई। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हाथीदांत का व्यापार वैध होना चाहिए या नहीं। अवैध अंतर्राष्ट्रीय हाथीदांत व्यापार 1998 के बाद तीन गुणा हो गया है।
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उल्लेखनीय है कि भारत ने नामीबिया से चीतों का पहला जत्था 12 सितम्बर को हासिल किया था। आठ में से तीन चीतों को पहले ही संगरोध क्षेत्रों से मध्यप्रदेश के कूनो नैशनल पार्क में बड़े बाढ़े में लाया जा चुका है जहां इन्होंने शिकार करना भी शुरू कर दिया। चीतों को भारत लाए जाने से पूर्व भारत और नामीबिया में एक समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत दोनों देशों ने सीआईटीईएस की बैठकों सहित अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करके जैव विविधता के सतत् उपयोग और प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध किया था। एक तरफ से नामीबिया ने भारत से हाथीदांत व्यापार का समर्थन करने की मांग की थी। हालांकि समझौते में हाथीदांत शब्द का उल्लेख नहीं था। नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे लम्बे समय से हाथीदांत के व्यापार पर प्रतिबंध हटाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। नामीबिया के समर्थन मांगने के बावजूद 1976 में फ्लोरा और फोना की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन में शामिल होने के बावजूद पहली बार भारत ने पनामा सिटी में सीआईटीआईईएस सम्मेलन में हाथीदांत के व्यापार को फिर से खोलने के प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया। अब सवाल यह है कि क्या ऐसा करके भारत ने हाथीदांत का व्यापार फिर से खोलने के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान नहीं किया था ​या फिर उसने लचीला रुख अपनाया।
क्या भारत का मतदान से दूर रहना नीतिगत बदलाव है। या भारत पहले से ही यह जानता था कि हाथीदांत के व्यापार का प्रस्ताव विफल हो जाएगा। इतना निश्चित है कि यद्यपि भारत ने मतदान से दूरी बना ली हो लेकिन भारत गजराज के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। केन्या, कांगो, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और 85 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। नामीबिया, जिम्बाब्वे, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका का तर्क है कि उनकी हाथियों की आबादी वापिस आ गई है और इनका भंडारित हाथीदांत अगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेचा जाता है तो हाथी संरक्षण और समुदायों को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत अधिक राजस्व मिल सकता है। यह भी एक संयोग है कि इसी सम्मेलन में नामीबिया ने भारत के उत्तर भारतीय शीशम के स्थायी व्यावसायिक उपयोग की अनुमति देने के प्रस्ताव केे खिलाफ मतदान किया था। अगर हम धरती पर बचे हाथियों के प्रति सचेत नहीं हुए तो एशियाई हाथी को लुप्त होने में वक्त नहीं लगेगा। मनुष्य-वन्य जीवन टकराव का सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ेगा क्योंकि जैव विविधता के मामले में समृद्ध होने के साथ-साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश भी है। बढ़ती आबादी के चलते शहरीकरण बढ़ने, वनों के तेजी से खत्म होने, जंगलों में अवैध खनन बढ़ने से वन्य जीवों के लिए कुदरती आवास, खत्म होते जा रहे हैं। तभी तो वन्य जीव शहरी इलाकों में घूमते देखे जाते हैं और जंगली हाथियों का गुस्सा इंसानी ​बस्तियों और खेतों पर निकलता है। हाथियों का अवैध शिकार उनके दांत काटने के लिए ही किया जाता है।  चीन जो हाथीदांत से बना सामान बेचने वाला दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है वहां भी हाथीदांत से जुड़े व्यापार पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। अन्य देशों ने भी इसके लिए कानून बनाए हैं। भारत में भी हाथीदांत या इससे निर्मित वस्तुओं पर प्रतिबंध है लेकिन इसके बावजूद चोरी-छिपे कारोबार चल रहा है। 
ऐसा भी नहीं कि देश में हाथियों के संरक्षण के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हों। हाथियों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए कई शहरों और राष्ट्रीय उद्यानों में जयपुर की तर्ज पर ‘हाथी महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है। हाथी संरक्षण के लिए वर्ल्ड वाइड फंड इंडिया द्वारा 2003-04 में विकसित  ‘सोनितपुर माडल’ के तहत सामुदायिक स्तर पर हा​थियों से खेतों को नष्ट होने से बचाने और उसे मारने के बजाय भगाने और वन विभाग को सूचित करने के लिए प्रेरित किया जाता है। गौरतलब है कि 2017-2031 की अवधि के बीच देश में तीसरी  ‘राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना’ लागू है, जो वन्य जीवों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करती है और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने पर बल देती है। वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 की अनुसूची-एक में हाथी को संरक्षण प्राप्त है। इसे किसी तरह का नुकसान पहुंचाना कानूनन जुर्म है। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 48-(क) अनुच्छेद 51-(क) का सातवंा उपबंध भी पर्यावरण संरक्षण तथा सभी जीवधारियों के प्रति दयालुता प्रकट करने का कर्त्तव्य बोध कराता है। बहरहाल हाथियों के संरक्षण के लिए देशवासियों में  ‘सह-अस्तित्व’ की भावना जागृत करनी होगी।     
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
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