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जयशंकर की खरी-खरी

जम्मू-कश्मीर के बारे में विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर ने लन्दन में यह कहकर भारत…

11:03 AM Mar 07, 2025 IST | Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर के बारे में विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर ने लन्दन में यह कहकर भारत…

जम्मू-कश्मीर के बारे में विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर ने लन्दन में यह कहकर भारत का पक्ष साफ कर दिया है कि जिस दिन भारत के इस राज्य के चुराये गये हिस्से को पाकिस्तान भारत को वापस कर देगा उसी दिन कश्मीर समस्या का अन्तिम हल हो जायेगा। वास्तव में समस्या का अन्तिम हल यही है और इसके अलावा भारत किसी अन्य शर्त पर राजी भी नहीं हो सकता क्योंकि फरवरी 1994 का संसद में सर्वसम्मति से पारित वह प्रस्ताव भारत का ईमान है जिसमें कहा गया है कि पूरा जम्मू-कश्मीर (लद्दाख समेत) भारत का अभिन्न अंग है। कश्मीर मसला 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के बाद खुद पाकिस्तान ने ही खड़ा किया था और अक्तूबर 1947 में इस पर आक्रमण कर दिया था। यह युद्ध 1948 तक राष्ट्रसंघ के हस्तक्षेप करने पर हुए युद्ध विराम तक चला और राज्य का 83 हजार वर्ग कि.मी. हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव के अनुसार इस हिस्से से पाकिस्तान को अपना कब्जा खत्म करके इसे भारत को सौंपना था जिससे पूरे राज्य में रायशुमारी होती। राय शुमारी का प्रस्ताव भारत ने इस वजह से ठुकरा दिया था क्योंकि कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को अपनी पूरी रियासत का विलय भारतीय संघ में उसी प्रकार किया था जिस प्रकार भारत की अन्य पांच सौ रियासतों से ज्यादा का विलय भारतीय संघ में 15 अगस्त, 1947 तक हुआ था।

भारत का कहना था कि कश्मीर में पाकिस्तान की स्थिति एक आक्रमणकारी देश की है अतः कश्मीर के लोगों के बीच रायशुमारी कराने का कोई औचित्य नहीं हो सकता। इसके बाद 1949 में राष्ट्रसंघ में ही पाकिस्तान ने यह स्वीकार कर लिया था कि कश्मीर पर आक्रमण में उसकी फौजें भी शामिल थीं। जबकि इससे पहले वह कह रहा था कि अक्तूबर 1947 में कश्मीर पर आक्रमण उसकी हदों में रहने वाले कबायली लोगों ने किया था। मगर इस घटना को अब 75 साल बीत चुके हैं और कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है। अतः श्री जयशंकर ने साफगोई के साथ कह दिया है कि पाकिस्तान भारत का हिस्सा उसे वापस करे। मगर इस बीच 1972 में बंगलादेश युद्ध के बाद पाकिस्तान से भारत का शिमला समझौता भी हुआ जिसमें साफ लिखा हुआ है कि कश्मीर भारत और पाक के बीच का मसला है जिसका हल वार्ता की मेज पर ही किया जायेगा। यह हल यही हो सकता है कि पाकिस्तान कश्मीरी हिस्से पर अपना जबरन कब्जा छोड़े और अपनी तरफ रहने वाले कश्मीरियों को खुली हवा में रहने दे क्योंकि भारत ने अपनी तरफ के एक लाख दस हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के क्षेत्रफल वाले कश्मीर में भारत के संविधान के तहत पूरी लोकतान्त्रिक प्रणाली लागू कर दी है। इस राज्य में लगे हुए अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद चुनाव करा दिये गये हैं और अब वहां श्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में लोगों की चुनी हुई सरकार काम कर रही है।

राज्य विधानसभा में पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों के लिए 24 सीटें खाली पड़ी हुई हैं। आज का कश्मीर बदल चुका है मगर पाकिस्तान इसके बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और वहां यदा-कदा आतंकवादियों की घुसपैठ कराकर हिंसक कार्रवाइयां कराता रहता है। जहां तक राष्ट्रसंघ का सवाल है तो इसके द्वारा पारित प्रस्ताव शिमला समझौते के बाद निरस्त हो चुका है। फिर भी पाकिस्तान मौका मिलते ही विभिन्न विश्व मंचों से कश्मीर समस्या का रोना रोने लगता है जबकि वास्तव में यह समस्या इतनी सी ही है कि पाकिस्तान अपने जबरन कब्जे को खाली करे। मगर पाकिस्तान ने एक और हरकत की हुई है कि इसने 1963 में अपने कब्जे वाले कश्मीर का 37 हजार वर्ग किलोमीटर का हिस्सा तोहफे में चीन को देकर उसके साथ नया सीमा समझौता किया। जिससे मामला थोड़ा उलझा जरूर है।

चीन को पाकिस्तान ने काराकोरम घाटी का इलाका दिया था जिस पर इसने साठ के दशक में सड़क का निर्माण किया था। और अब इसकी सी-पाक परियोजना भी इसी इलाके से होकर गुजरती है। भारत ने मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान ही इस परियोजना पर आपत्ति की थी और कहा था कि चीन पाक द्वारा कब्जाई हुई जमीन पर कोई भी विकास कार्य नहीं कर सकता। एक मायने में पाकिस्तान ने चीन को बीच में डाल कर भारत की समस्या बढ़ाने का प्रयास ही किया, जिससे उसकी नीयत का पता लगता है। मगर भारत इस मामले में शुरू से ही किसी गफलत में नहीं है वह जानता है कि पाकिस्तान चीन की गोदी में बैठ कर कब्जाये हुए कश्मीर को अपनी पकड़ में रखना चाहता है जबकि उसके कब्जे वाले कश्मीरी ही बीच- बीच में आन्दोलन करके उसकी गुलामी से स्वतन्त्र होने की मांग करते रहते हैं। भारत पूरे कश्मीर से एक इंच कम पर भी कभी राजी नहीं हो सकता है क्योंकि पूरा देश अपनी आन्तरिक राजनीति को ताक पर रखकर इस मुद्दे पर एक साथ खड़ा हुआ है।

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