W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

जलेबी बेबी और क्रिकेट

05:30 AM Oct 03, 2025 IST | Kumkum Chaddha
जलेबी बेबी और क्रिकेट
Advertisement

डीजे की यह भूल दुबई में चर्चा का विषय बन गई। लगता है, मानो उसने पाकिस्तान के राष्ट्रगान और “जलेबी बेबी” को एक ही समझ लिया हो। नतीजा यह हुआ कि 21 सितम्बर को एशिया कप 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए मुकाबले के दौरान पूरे छह सेकंड तक लाउडस्पीकर पर जलेबी बेबी की धुन गूंजती रही। मानो यह घटना ही पर्याप्त न रही हो, जलेबी बेबी गायक टेशर ने भी चुटकी ली और प्रतिक्रिया देते हुए कहा- “साउंड गाइ को सलाम, जिसने एंथम गड़बड़ा दिया। जलेबी बेबी ही असली एंथम है।” स्पष्ट रहे कि जलेबी बेबी कनाडाई गायक टेशर का लोकप्रिय गीत है। 2020 में जारी यह गाना अपनी मस्तीभरी और चटपटी धुन के चलते बेहद चर्चित हुआ। शीर्षक में ‘जलेबी’ का प्रयोग इसे देसी अंदाज़ देता है। एक वर्ष बाद गायक जेसन डेरूलो के साथ बने रीमिक्स संस्करण ने तो सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए लेकिन दुबई के मैदान पर एंथम की यह भूल खिलाड़ियों के लिए शर्मिंदगी से कम नहीं रही। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में राष्ट्रगान की औपचारिकता निभाने के लिए सीना ताने, हाथ दिल पर रखे खड़ी थी, और तभी यह हादसा हो गया। वैसे यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ हो। लाहौर में चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच मैच से पहले गलती से भारतीय राष्ट्रगान बजा दिया गया था। विडंबना यह रही कि भारत ने उस ट्रॉफी के लिए पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया था और सभी मैच दुबई में खेले थे।

ज्ञातव्य है कि अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा आयोजित हर मैच से पहले प्रोटोकॉल के तहत दोनों टीमों के राष्ट्रगान बजाए जाते हैं। यह प्रक्रिया टॉस और खिलाड़ियों के आपसी हैंडशेक के साथ आगे बढ़ती है। हालांकि, इस बार सुर्खियां केवल राष्ट्रगान को लेकर नहीं रहीं, बल्कि हैंडशेक को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया। टॉस के दौरान भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने पाकिस्तानी कप्तान सलमान अली आगा से हाथ मिलाने से इन्कार कर दिया। जीत के बाद भी भारतीय खिलाड़ियों ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों से पारंपरिक हैंडशेक करने से बचा लिया। इस विवाद के केंद्र में मैच रेफरी एंडी पाइक्रॉफ्ट आ गए। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने उन पर औपचारिक शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि हैंडशेक रोकने का निर्णय पाइक्रॉफ्ट का था। यहां तक कि उनके हटाए जाने की मांग भी उठी। हालांकि जांच में यह साफ़ हो गया कि पाइक्रॉफ्ट ने सिर्फ भारत का निर्णय दोनों टीमों तक पहुंचाया था।

भारत द्वारा नो-हैंडशेक पॉलिसी अपनाने का फैसला पहलगाम हमले के पीड़ितों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए खिलाड़ियों की सामूहिक असहमति से उपजा। पाकिस्तानी टीम से हाथ मिलाने से इन्कार अचानक लिया गया निर्णय नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति थी, जिसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने एशियाई क्रिकेट परिषद के वेन्यू मैनेजर तक पहले ही पहुंचा दिया था। हालांकि सवाल समय-सीमा को लेकर उठा। बताया गया कि मैच रेफरी पाइक्रॉफ्ट को टॉस से महज़ चार मिनट पहले सूचना दी गई कि भारतीय कप्तान अपने पाकिस्तानी समकक्ष से हाथ नहीं मिलाएंगे। बाद में सूर्यकुमार यादव ने पुष्टि की कि यह कदम भारत सरकार और बीसीसीआई की सलाह पर उठाया गया। बावजूद इसके कि पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया जताई, भारत ने एक सप्ताह बाद पाकिस्तान के खिलाफ खेले गए अगले मैच में भी नो-हैंडशेक पॉलिसी जारी रखी। 21 सितम्बर को भारतीय खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वियों के सामने से गुजर गए, बिना हाथ मिलाए। इतना ही नहीं, जीत के बाद टीम ने ड्रेसिंग रूम से बाहर निकलकर अंपायरों और अधिकारियों से तो हाथ मिलाया, लेकिन पाकिस्तानी खिलाड़ियों को नजरअंदाज कर दिया।

जहां पाकिस्तान ने इस रवैये की कड़ी आलोचना की, वहीं भारत में मत विभाजित नजर आया। एक वर्ग ने इसे खेल भावना के विपरीत करार दिया, तो दूसरा मानता है कि भारतीय टीम ने बिल्कुल सही निर्णय लिया। असल सवाल यह है कि मामला केवल हाथ मिलाने तक सीमित है या उससे कहीं बड़ा है—क्या भारतीय टीम को परंपरा निभाकर तनाव कम करना चाहिए था, या फिर मौजूदा हालात में यही रुख सही था जिसने पहले से ही तनावपूर्ण रिश्तों में और कटुता भर दी? असल सवाल यह है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ खेला ही क्यों? और यदि खेलने का फैसला लिया गया, तो राजनीति को खेल में क्यों घसीटा गया और इसे मैदान से बाहर की छींटाकशी में क्यों बदल दिया गया? पहले प्रश्न का जवाब बीसीसीआई सचिव देवजीत सैकिया ने दिया। उनका तर्क था कि यह एक बहुराष्ट्रीय प्रतियोगिता है, इसलिए भारत के पास विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा कि 2013 से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई द्विपक्षीय श्रृंखला नहीं हुई है। अगर भारत ने इस टूर्नामेंट का बहिष्कार किया होता, तो इससे भविष्य में भारत में होने वाले आयोजनों पर, जिनमें 2030 ओलंपिक की मेजबानी भी शामिल है, संकट आ सकता था। बड़ी तस्वीर में देखें तो बीसीसीआई की यह दलील तर्कसंगत लगती है।

लेकिन जब बात राष्ट्रीय भावना की आती है, तो यह तर्क फीका पड़ जाता है। क्योंकि अधिकांश भारतीयों के लिए “राष्ट्र पहले” का सिद्धांत किसी भी परिणाम से बड़ा होता है। इसी संदर्भ में आरपीजी समूह के चेयरमैन हर्ष गोयनका की सोशल मीडिया पोस्ट गूंज उठती है “भारत बनाम पाकिस्तान कल। दिल कहता है मत देखो, दिमाग कहता है फर्क नहीं पड़ता, देशभक्ति कहती है बहिष्कार करो, समझदारी कहती है अपनी टीम को चीयर करो। यहां तक कि मेरे माई-बाप भी मुझे उलझे हुए संकेत दे रहे हैं। आखिर मैं करूं तो क्या करूं?” लेकिन इसे यदि पहलगाम आतंकी हमले में शहीद शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशान्या के निर्णायक आह्वान से तौलें, तो तस्वीर और साफ हो जाती है। उन्होंने साफ कहा “इस मैच को देखने मत जाइए और टीवी भी मत चालू कीजिए।” उन्होंने बीसीसीआई पर भी निशाना साधते हुए कहा कि बोर्ड उन 26 परिवारों और ऑपरेशन सिंदूर के शहीदों के प्रति संवेदनशील नहीं है।

ऐशान्या का गुस्सा सिर्फ बोर्ड तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने खिलाड़ियों से भी सवाल पूछा “हमारे क्रिकेटर क्या कर रहे हैं? कहा जाता है कि क्रिकेटर राष्ट्रवादी होते हैं लेकिन 1–2 को छोड़कर किसी ने आगे आकर नहीं कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ मैच का बहिष्कार होना चाहिए। बीसीसीआई उन्हें बंदूक की नोक पर खेलने नहीं भेज सकती। उन्हें अपने देश के लिए खड़ा होना चाहिए लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे।” उन्होंने प्रायोजकों और प्रसारकों को भी कटघरे में खड़ा किया “इस मैच से होने वाली कमाई कहां जाएगी? पाकिस्तान इसका इस्तेमाल सिर्फ़ आतंकवाद के लिए करेगा। वह एक आतंकी राष्ट्र है। आप उन्हें राजस्व देंगे और वही धन एक बार फिर हमारे खिलाफ इस्तेमाल होगा।” ऐशान्या के दर्द और पीड़ा के सामने बीसीसीआई का “भविष्य के टूर्नामेंट” वाला तर्क बेमानी हो जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय हित और क्रिकेट के बीच कोई तुलना ही नहीं रह जाती। बीसीसीआई खेल के भविष्य की बात कर सकती है, लेकिन पहलगाम आतंकी हमला आंखों के सामने खड़ा है। 26 निर्दोष पर्यटकों की दिनदहाड़े हत्या। इसके बरअक्स “नो-हैंडशेक पॉलिसी” केवल एक खोखला प्रतीकवाद लगती है, जैसा कि बहुतों ने कहा। अरबों भारतीयों के ग़ुस्से, पीड़ा और आक्रोश को हल्का करके दिखाने से बुरा कुछ नहीं हो सकता। इस बात पर मतभेद हो सकता है कि भारत ने खेल को देश से ऊपर रखकर सही किया या नहीं, लेकिन पाकिस्तान के प्रति गहरी वैरभावना और शत्रुता में भारतीय जनता पूरी तरह एकजुट है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Kumkum Chaddha

View all posts

Advertisement
×