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मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी पर भड़के जावेद अख़्तर, PM मोदी को सुनाई खरी-खोटी

जावेद अख्तर ने धर्म संसद, ऑनलाइन मुस्लिम महिलाओं की नीलामी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर जमकर निशाना साधा है।

12:39 PM Jan 04, 2022 IST | Desk Team

जावेद अख्तर ने धर्म संसद, ऑनलाइन मुस्लिम महिलाओं की नीलामी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर जमकर निशाना साधा है।

100 महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी और धर्म संसद मामले पर जावेद अख्तर ने बीते रोज अपने विचार रखे। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए जावेद ने पीएम मोदी से सवाल पूछा था कि सौ महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी हो रही है, तथाकथित धर्म संसद सेना और पुलिस को लगभग 200 मिलियन लोगों के नरसंहार की सलाह दे रही है। मैं हर एक की चुप्पी, खास तौर पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से हैरान हूं। क्या यही है सब का साथ है? इसके बाद जावेद अख्तर को खूब ट्रोल किया गया। अब एक बार फिर उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए अपना पक्ष रखा है।
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 अब अपने इस ट्वीट को लेकर जावेद अख्तर ट्रोल हो रहे हैं। जावेद अख्तर को इसलिए ट्रोल किया जा रहा है क्योंकि उन्होंने ऐप को लेकर बात करते हुए हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद का भी उल्लेख किया था। वहीं, कुछ यूजर्स उनके द्वारा अन्य मामलों पर चुप्पी साधने के लिए भी उन्हें ट्रोल कर रहे हैं। 


जावेद अख्तर को ट्रोल करने वालों पर लेखक ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। अपने एक हालिया ट्वीट में जावेद अख्तर ने लिखा – जिस क्षण मैंने महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी, गोडसे का महिमामंडन करने वालों, पुलिस और लोगों को नरसंहार का उपदेश देने वालों के खिलाफ आवाज उठाई, उसके बाद कुछ बड़े लोगों ने मेरे ग्रैंड फादर, जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे और 1864 में काला पानी में मारे गए, उन्होंने उनको गाली देना शुरू कर दिया। आप ऐसे बेवकूफों से क्या कह सकते हैं?


आपको बता दें कि सोमवार को किए अपने एक ट्वीट में जावेद अख्तर ने लिखा था-  100 महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी हो रही है। तथाकथित धर्म संसद में सेना और पुलिस को लगभग 20 करोड़ भारतीयों के नरसंहार की सलाह दी जा रही है। मैं हर चुप्पी, खासतौर पर पीएम की चुप्पी से हैरान हूँ।  क्या यही सब का साथ है?


जावेद अख्तर के इस ट्वीट पर बवाल मच गया और उन्हें खूब ट्रोल किया गया। एक यूजर ने लिखा- बंगाल में हुई राजनीतिक हिंसा पर आपकी चुप्पी से हम भी हैरान थे। अगर आप किसी भी अपराध के खिलाफ हैं, तो आपको किसी भी जाति, धर्म या व्यक्तिगत पसंद के बावजूद इसका विरोध करना होगा। हमारे बुद्धिजीवियों का सिलेक्टिव आक्रोश वास्तव में निराशाजनक है। 

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