W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

जेएनयू छात्र संघ चुनाव

06:30 AM Nov 08, 2025 IST | Aditya Chopra
जेएनयू छात्र संघ चुनाव
जेएनयू
Advertisement

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनावों में वामपंथी गठबंधन ने चारों सीटें जीतकर क्लीन स्वीप किया है। इसके साथ एक रिकार्ड भी बना है। छात्र संघ के सैंट्रल पैनल पर तीन लड़कियों का कब्जा हुआ है। सैंट्रल पैनल के चार में से तीन पदों पर छात्राओं ने जीत हासिल की है। चुनावों में लेफ्ट छात्र दल गठबंधन बनाकर मैदान में था जिसके तहत आईसा, एसएफआई, डीएसएफ ने महागठबंधन बनाया था। आईसा की अदिति मिश्रा ने अध्यक्ष पद पर, एसएफआई की गोपिका ने उपाध्यक्ष पद पर, डीएसएफ से सुनील ने महासचिव पद पर और आईसा से दानिश अली संयुक्त सचिव पद पर चुनाव जीते हैं। इन चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और एनएसयूआई को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जेएनयू के चुनाव देशभर में चर्चा का विषय रहते हैं। पूरे देश में जब वामपंथी विचारधारा सिमट कर रह गई है लेकिन जेएनयू का राजनीतिक माहौल एक बार फिर लाल रंग में रंग गया है। चुनाव परिणामों से साफ हो गया है कि जेएनयू परिसर में लेफ्ट का दबदबा सिर्फ इतिहास नहीं है बल्कि उसकी मौजूदगी अभी भी मजबूत है।

जेएनयू की अकादमिक और राजनीतिक चेतना की कहानी में सबसे बड़ा प्रतीक यह है कि यूनिवर्सिटी की राजनीति सिर्फ वोट तक सीमित नहीं यह हर बहस में और हर उस छात्र में जीवित है जो सवाल पूछने की हिम्मत करता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि जेएनयू में चुनाव हमेशा मुद्दा आधारित राजनीति पर केन्द्रित रहे न कि राष्ट्रीय पार्टियों की छवि पर। 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जेएनयू की स्थापना इस विचार के साथ करवाई थी कि भारत में ऐसी यूनिवर्सिटी बनाई जाए जहां रिसर्च, क्रिटिकल थिंकिंग, सामाजिक न्याय और प्रगतिशील लोकतांत्रिक बहस को जगह मिले। इंदिरा गांधी ने विश्वविद्यालय का नाम जवाहर लाल नेहरू के नाम पर रखा लेकिन आज तक वहां कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई सिर्फ एक बार ही अध्यक्ष पद जीत पाई। इसमें कोई संदेह नहीं कि जेएनयू में लेफ्ट के बाद भाजपा समर्थित एबीवीपी तीसरे विकल्प के रूप में संघर्ष करती रही और उसने अपनी जगह भी बनाई। 2014 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण का असर जेएनयू परिसर पर भी पड़ा और एबीवीपी ने अपना प्रभाव बढ़ाया। विद्यार्थी परिषद ने 26 काउंसलर सीटों में से कई सीटों पर शानदार जीत हासिल की और कई संकायों में क्लीन स्वीप भी किया।

पिछले वर्ष विद्यार्थी परिषद ने जेएनयू छात्र संघ के सैंट्रल पैनल में संयुक्त संचिव का पद जीतकर वापसी की थी। 2015 में एबीवीपी ने आखिरी बार यह पद जीता था। वामपंथी गठबंधन ने संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ के नारों पर चुनाव लड़ा, जबकि एबीवीपी ने राष्ट्रवाद, विकास और कैंपस में अनुशासन पर जोर दिया। अन्य मुद्दों में आम बजट में बढ़ौतरी, लाइब्रेरी में विस्तार और राजनीतिक स्वतंत्रता आदि शामिल हैं। यह वास्तविकता है कि इस संस्थान के छात्रों ने बहस और क्रांतिकारी सोच के जरिए जेएनयू का नाम दुनियाभर में ​किया है। लेफ्ट संगठनों की कैंपस में गहरी जमीनी पकड़ रही और छात्र हितों के लिए आंदोलनकारी उपस्थिति ने लेफ्ट का प्रभाव बनाए रखा। जेएनयू कई मामलों में विवादित भी रहा। वर्ष 2015 में तत्कालीन जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर आतंकवादी अफजल गुरु की बरसी आयोजित करने का आरोप लगा। कन्हैया कुमार और उसकी साथी शहला राशिद पर देशद्रोह का मुकद्दमा दर्ज किया गया। जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद पर भी विवादित नारे लगाने के आरोप लगे। उमर खालिद पर 2020 के दिल्ली दंगे भड़काने का भी मुकद्दमा चल रहा है और वह पिछले 5 साल से जेल में बंद है। भारत तेरे टुकड़े होंगे लेके रहेंगे आजादी जैसे नारों के लिए भी जेएनयू विवादित रहा। जेएनयू छात्र संघ चुनावों का एक और आकर्षण पूरे देश में सबसे सस्ती शिक्षा जेएनयू में ही उपलब्ध है।

देशभर के छात्र-छात्राओं का जेएनयू में पढ़ने का सपना होता है। जेएनयू में उनको पढ़ाई के साथ-साथ विचारधाराओं को समझना और उनको अपनाकर राजनीति करने का भी मौका मिलता है। इसलिए जेएनयू का चुनाव देशभर में चर्चा का विषय रहता है। जेएनयू छात्र संघ चुनाव के देशभर में चर्चा में रहने का एक और प्रमुख कारण यह है कि जेएनयू को वामपंथ का गढ़ माना जाता है और वामपंथी विचारधारा अब गिने चुने राज्यों में ही है। इसके अलावा जेएनयू इस विचारधारा के प्रचार प्रसार का मुख्य अड्डा है। जेएनयू छात्र संघ चुनाव में प्रचार का तारीका भी अलग ही होता है। सभी वामपंथी छात्र संगठन ढपली की थाप पर गाते-बजाते हुए चुनाव प्रचार करते हैं। यह भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहता है। प्रेसीडेंशियल डिबेट होती है जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों की तरह उम्मीदवार छात्रों के आगे अपना विजन रखते हैं। इस बार का चुनाव भी वामपंथी और दक्षिणपंथी विचारधारा पर केन्द्रित रहा। खास बात यह है कि छात्र संघ चुनावों का संचालन छात्र ही करते हैं। विचारधारा की लड़ाई में वामपंथ आगे रहा। इतिहास को देखें तो जेएनयू छात्र संघ से बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेता निकले हैं। इनमें से प्रमुख रूप से सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, डी. राजा, एनी राजा, योगेन्द्र यादव, देवी प्रसाद त्रिपाठी और कन्हैया कुमार के नाम शामिल हैं। वर्ष 2019 में सीपीआई से और पिछले साल कांग्रेस से कन्हैया कुमार ने लोकसभा चुनाव भी लड़ा है, लेकिन जीत नहीं मिली। इनके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और सुब्रह्मण्यम स्वामी भी जेएनयू के ही छात्र रहे हैं। हालांकि, इन लोगों ने छात्र संघ चुनाव में भाग नहीं लिया।

Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
Advertisement
×