संयुक्त परिवार ही बचाव...
आज के समय संयुक्त परिवार बहुत कम दिखाई देते हैं। अधिकतर एकल परिवार दिखते हैं। हम सदियों से देखते आ रहे हैं कि संयुक्त परिवार में बहुत ताकत होती है, संस्कार होते हैं। सभी सदस्य मर्यादा या नियमों का पालन करते आगे बढ़ते हैं। वहीं अकेला चलो यानी एकल परिवार में विश्वास रखने वाले यही समझते हैं कि उनका भी स्वतंत्र जीवन हो। उन्हें अपनी मर्जी से जीने का हक है, परन्तु जब अकेले मां-बाप जो काम करते हैं या बिजनेस या जॉब तो उन्हें अपने छोेटे बच्चों को आया या डे-केयर में छोड़ना पड़ता है।
अगर माता-पिता नौकरी में हैं या मिलकर बिजनेस करते हुए छोटे बच्चों को चाइल्ड केयर मेड के सहारे छोड़ जाते हैं तो छोटे बच्चे सुरक्षित नहीं हैं।
आज की तेजी से भागती दुनिया में, विश्वसनीय चाइल्ड केयर सेवाएं पाना माता-पिता के लिए एक कठिन काम हो सकता है। हालांकि विश्वसनीय बेबीसिटर या चाइल्ड केयर सेवाओं पर भरोसा कर सकते हैं। लोगों के भरोसे को तोड़ने का काम ही अगर चाइल्ड केयर मेड करने लग जाएं तो इसे क्या कहेंगे। दिल्ली या अन्य राज्य में ऐसे बच्चों के साथ क्रूरता की डरा देने वाली घटनाएं आए दिन सामने आ रही हैं। ऐसे में दशकों पुरानी संयुक्त परिवार परम्पराएं याद आ रही हैं, जो माता-पिता, चाचा-चाची, दादा-दादी, भैया-भाभी, नाना-नानी, मामा-मामी के बच्चों के प्रति प्यार पर केन्द्रित है। पिछले दिनों नोएडा के एक डे-केयर सेंटर में 15 महीने की बच्ची के साथ हुई बर्बर मारपीट ने पूरे देश को झकझोर दिया है। सीसीटीवी फुटेज में एक मेड को बच्ची को थप्पड़ मारते, जमीन पर पटकते, दांतों से काटते और यहां तक कि पेंसिल से उसके मुंह में चोट पहुंचाते देखा गया. इस मामले में बच्ची के पैरेंट्स की शिकायत पर डे-केयर प्रमुख और उक्त मेड के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। मेड की बर्बरता की शिकार हुई महज 15 महीने की बच्ची के केस में आरोपी की मनोदशा को समझने की जरूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकार की हिंसक हरकतें अक्सर डिस्प्लेसमेंट नामक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया का परिणाम होती हैं। अगर किसी व्यक्ति ने बचपन में मानसिक, शारीरिक प्रताड़ना या घरेलू हिंसा का सामना किया है तो उसका असर सबकॉन्शियस माइंड में बना रहता है। मौका मिलने पर ऐसे लोग यह गुस्सा और पीड़ा किसी कमजोर या असुरक्षित व्यक्ति पर निकालते हैं, जैसे इस मामले में बच्ची पर निकाला। इस तरह का व्यवहार अत्यंत निंदनीय अपराध है और यह हमारी समाज की नैतिक गिरावट का उदाहरण है।
आदर्श परिवार वह है जहां माता-पिता की छत्रछाया में सब रहते हैं। पोते-पोतियों या दोते-दोतियां अपने नाना-नानी के साथ रहते हैं तो सब प्रेमपूर्वक एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ाते हैं। मैं आदर्श परिवार की आज भी पक्षधर हूं। संयुक्त परिवार ही आदर्श परिवार प्रेम का आधार है। सभी सदस्य यानि छोटे-बड़े सब एक-दूसरे के प्रति जान देने को तैयार रहते हैं और एक-दूसरे के दुख-दर्द को समझते हैं। यह आदर्श परिवार ही हैं जहां मुसीबत पड़ने पर दुख बांटा जाता है तथा खुशियों की स्थिति में प्यार बांटा जाता है, जो बांटने से बढ़ता है। रिश्तों की मजबूती के लिए संयुक्त परिवार बहुत जरूरी है। रामायण हमें आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पत्नी, आदर्श शासन, आदर्श परित्याग, आदर्श माता, आदर्श पिता के िरश्ते का पवित्र संदेश देती है। कैकेयी का भरत के लिए राजगद्दी तथा श्रीराम को बनवास यह मातृत्व हो सकता है लेकिन जिस तरीके से इसे स्वीकार िकया गया वह आदर्श परिवार के रिश्तों की पवित्रता है। कुल मिलाकर आज के समय में माता-पिता को व्यस्तताओं के चलते संयुक्त परिवार एक मजबूत विकल्प है, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी भी है। अगर मजबूरी के कारण बच्चों को डे-केयर में भेजना भी पड़े तो माता-पिता को सतर्कता रखनी चाहिए।
डॉक्टरों का कहना है कि यदि माता-पिता डे-केयर से लौटकर अपने बच्चों के साथ समय बिताएं तो वे किसी भी असामान्य बदलाव को पहचान सकते हैं। बच्चा अचानक चुप और डरा-सहमा रहने लगे या किसी अनजान व्यक्ति से डरने लगे तो अलर्ट हो जाएं। इसी तरह अगर आप पाते हैं कि बच्चे की खेलने की आदतें बदल रही हैं या वह खेलने से मना कर रहा है। अगर बच्चा माता-पिता से चिपका रहे। या डे-केयर जाने से मना करे अथवा रोए या खाने-पीने और सोने का रूटीन बिगड़ जाए तो ये संकेत खतरनाक हैं।
इसका मतलब बच्चे ने डे-केयर या अन्य जगह पर किसी प्रकार की प्रताड़ना झेली है। विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों की देखभाल और इस तरह की घटनाओं से बचाव के लिए ऐसे डे-केयर का चयन करें, जो काफी समय से चल रहा है और जिसकी अच्छी प्रतिष्ठा हो। जहां ज्यादा बच्चे आते हो और सुरक्षा मानक स्पष्ट हो। परिसर सीसीटीवी से लैस हो और पैरेंट्स समय-समय पर विजिट कर सकें। इसके अलावा बच्चे से रोजाना बातचीत करें और उसके व्यवहार पर नजर रखें। यह घटना एक चेतावनी है कि बच्चों की सुरक्षा में लापरवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सतर्क पैरेंट्स और सख्त सरकारी निगरानी दोनों मिलकर ही ऐसे हादसों को रोक सकते हैं। बेहतर है संयुक्त परिवार प्रणाली को अपनाएं।