कैलाश मानसरोवर यात्रा
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चीन…
पांच साल के अंतराल के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा 30 जून से शुरू हो रही है। भारत और चीन के बीच संबंधों को सुधारने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है। यह यात्रा भगवान शिव के निवास स्थान के रूप में मानी जाती है, जहां हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। चीन ने 2020 में सीमा विवाद के कारण इसे रोक दिया था।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच चीन के रवैये को लेकर भले ही सवाल उछल रहे हों लेकिन अच्छी खबर यह है कि 5 साल बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा इस वर्ष 30 जून से शुरू हो रही है जो 25 अगस्त तक चलेगी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने तीर्थयात्रियों के पंजीकरण के लिए वेबसाइट भी खोल दी है। वर्ष 2020 में सीमा पर गतिरोध पैदा हो जाने के बाद से ही चीन ने यह यात्रा रोक दी थी। सीमा पर गतिरोध के चलते गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों में संघर्ष भी हुआ था। 5 साल के अंतराल के बाद यात्रा को फिर से शुरू करना दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मान्यता है कि कैलाश मानसरोवर भगवान शिव का निवास है। कैलाश पर्वत 22028 फीट ऊंचा एक पत्थर का पिरामिड है जिस पर साल भर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है। हर साल कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने, शिव-शंभु की आराधना करने, हजारों साधु-संत, श्रद्धालु, दार्शनिक यहां एकत्रित होते हैं, जिससे इस स्थान की पवित्रता और महत्ता काफी बढ़ जाती है। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का समागम होता है, जो ॐ की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।
हिन्दू धर्म के चार वेदों में से एक ऋग्वेद में भी कैलाश पर्वत का उल्लेख है। यही वजह है कि हिन्दुओं के िलए यह एक पवित्र जगह है। जैन धर्म में यह मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष प्राप्त किया था। बौद्ध ग्रंथों में इसे ब्रह्मांड का केन्द्र बिन्दु बताया गया है। भारत आैर चीन ने पिछले वर्ष अक्तूबर में समझौते के तहत डेमचौक और देपसांग से अपने-अपने सैिनकों को पीछे हटा िलया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आैर चीनी राष्ट्रपति शी जिनिपंग तब पांच वर्ष बाद रूस के कजान शहर में मिले थे। तब दोनों देशों ने आपसी संबंधों की स्थिित पर चर्चा की थी। इसके बाद दोनों देशों ने कैलाश मानसरोवर यात्रा और उड़ानें शुरू करने का फैसला किया था। कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में है और तिब्बत पर चीन का अधिकार है। 20 मई,2013 को भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से होकर कैलाश मानसरोवर जाने के लिए पहला समझौता हुआ था। तब इस यात्रा के िलए लिपुलेख दर्रा खोला गया था। दूसरा समझौता 18 सितम्बर, 2014 को नाथुला के जरिये कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते को लेकर हुआ था।
भारत और चीन ने इसी वर्ष कूटनीतिक रिश्तों के 75 वर्ष पूरे किए। वर्ष 1950 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उस समय के चीनी राष्ट्रपति माओ त्से तुंग ने राजनीतिक संबंधों की औपचारिक शुरूआत की थी, परन्तु 1962 के चीनी हमले के बाद दोनों देशों के रिश्ते ठंडे पड़े रहे। यह भी सच है कि चीन को पूर्वी लद्दाख गतिरोध के दौरान पहली बार भारत के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। चीन को इस बात का अहसास हो चुका है कि भारत अब न केवल बड़ी आर्थिक शक्ति है बल्कि उसकी सैन्य शक्ति में भी बहुत वृद्धि हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए जा रहे टैरिफ से वैश्विक परिदृश्य पर नए-नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि चीन अब कह रहा है कि भारत आैर चीन को आपस में सहयोग करना चाहिए। ड्रैगन और हाथी को एक साथ डांस करना चाहिए। संबंधों में जटिलता के बावजूद एशियाई युग लाने के लिए दोनों देशों को एक-दूसरे के करीब आना ही चाहिए। ऐसे में इस बात की सम्भावनाएं बन रही हैं कि दोनों देशों के बीच नए आर्थिक समीकरण बन जाएं।
भारत और पाकिस्तान में अगर युद्ध होता है तो रक्षा विशेषज्ञ इस बात की सम्भावना से इंकार नहीं कर रहे कि हो सकता है चीन पाकिस्तान के पाले में खड़ा िदखाई दे। रक्षा विशेषज्ञों की राय चीन पर भरोसे की कमी की ओर ही इशारा कर रही है। अब जबकि भारत में चीन के नए राजदूत ने भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिए चीन के बाजार और अधिक खोलने की बात कही है, तो चीन को पाकिस्तान के समर्थन में नहीं खड़े होकर भारत को सहयोग का भरोसा देना होगा। वैश्विक भू-राजनीति एक बार फिर अस्थिरता के दौर में है। ऐसे में जरूरी है कि भारत-चीन संबंधों की उष्मा आगे भी बनी रहे।