कानपुर शूट आउट : राजनीति के अपराधीकरण का परिणाम
कानपुर में गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर हमले में डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों की शहादत ने समूचे तंत्र की नाकामी को उजागर कर दिया है।
12:03 AM Jul 06, 2020 IST | Aditya Chopra
कानपुर में गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर हमले में डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों की शहादत ने समूचे तंत्र की नाकामी को उजागर कर दिया है। इतना नृशंस हमला पुलिस के भीतर से ही जानकारियां लीक हुए बिना हो ही नहीं सकता।
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विकास दुबे के गिरोह को पुलिस एक्शन की पल-पल की जानकारी मिल रही थी। जिस तरह से जेसीबी मशीन खड़ी कर पुलिस का रास्ता रोका गया, पुलिसकर्मियों पर घरों की छतों पर से फायरिंग की गई। उससे स्पष्ट है कि हमले की तैयारी पहले ही की जा चुकी थी। पुलिसकर्मियों की शहादत के बाद यद्यपि गैंगस्टर विकास दुबे का घर उसी जेसीबी मशीन से गिरा दिया गया है जिस जेसीबी से पुलिस कर्मियों को रोका गया था। अब यह कहा जा रहा है कि पुलिसकर्मियों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी, दोषियों को दंडित किया जाएगा।
राजनीतिक दल एक-दूसरे को निशाना बना रहे हैं, गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि विकास दुबे कोई रातोंरात उभरा माफिया है, जो किसी पर्दे में छिपा हुआ था। पिछले कई वर्षों से अपने अपराधों और लगभग हर राजनीतिक दल में अपनी पहुंच के बूते पर उसने अपने प्रभाव को कायम किया था। जिस शख्स पर थाने में घुस कर उत्तर प्रदेश के राज्यमंत्री संतोष शुक्ला और पुलिसकर्मी समेत अन्य लोगों की हत्या करने के मामले दर्ज हों और उसका नाम उत्तर प्रदेश के टॉप 25 अपराधियों की लिस्ट में भी नहीं हो तो सवाल उठता है कि आखिर वह किस संरक्षण में और किन वजह से बेखौफ होकर आराम से जिन्दगी बिता रहा है।
स्थानीय राजनीति में भी वह सक्रिय रहा। हैरानी की बात तो यह है कि एक अपराधी इतने मामलों में संलिप्त होने के बावजूद जेल की जगह बाहर कैसे घूम रहा था। इससे साफ है कि उसे न केवल राजनीतिक बल्कि पुलिस के भीतर से ही संरक्षण मिला हुआ था। यह पूरा मामला राजनीति के अपराधीकरण का है। राजनीति से जुड़े अपराधियों को अफसरों का संरक्षण प्राप्त होता है। हमारे देश में एक धारणा बड़ी प्रबल है कि कानून केवल कमजोर लोगों के लिए है, बड़े लोगों के लिए कानून अलग होता है। अगर किसी ग्रामीण ने अतिक्रमण किया होता या अवैध रूप से मकान का छज्जा भी बनाया होता तो वह कब का गिरा दिया होता लेकिन विकास दुबे के अवैध रूप से निर्मित मकान को किसी ने छुआ तक नहीं। पुिलसकर्मियों की शहादत के बाद ही उसके घर को ध्वस्त किया गया।
स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा किसी अपराधी की अनदेखी के परिणामस्वरूप पुलिस को इतना बड़ा नुक्सान झेलना पड़ा। कुख्यात विकास दुबे की कानपुर देहात के एक छोटे से गांव में एक अलग ही दुनिया थी। उसके अपराध का साम्राज्य यहीं फलाफूला था। वह अपने आलीशान घर में अपनी अदालत लगाता था, जिसमें जज वह खुद बनता था। इस अदालत की सुनवाई सुबह 6 बजे शुरू होती थी। जहां एक कुर्सी पर कुख्यात अपराधी बैठता था। बगल में दो बंदूकधारी और लट्ठ लेकर एक दर्जन लोग खड़े रहते थे। उसने कई लोगों की जमीन हड़प ली थी। पूरा गांव खौफ में रहता था।
पुलिस और प्रशासन में उसका सिक्का चलता था। जिस तरह से गैंगस्टर के घर से हथियार और गोला-बारूद मिला है उससे यही लगता है कि साजिश बहुत बड़ी है। उसके घर से मिली डायरी में पुलिस कर्मचारियों के 25 से भी ज्यादा फोन नम्बर मिले हैं। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपराधों पर नियंत्रण पाने के लिए काफी काम किया है। उत्तर प्रदेश सरकार अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए हुए है। कई कुख्यात गैंगस्टर मुठभेड़ों में मार िगराए गए हैं या फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया है लेकिन सरकार की सख्ती का असर विकास दुबे जैसे अपराधी पर क्यों नहीं पड़ा? जब तक स्थानीय प्रशासन में पुलिस में छिपी काली भेड़ों का संरक्षण अपराधियों को मिलता रहेगा तब तक विकास दुबे जैसे अपराधी फलते-फूलते रहेंगे।
अब सोशल मीडिया पर अपराधी विकास दुबे को हीरो बनाने की मुहिम शुरू कर दी गई है। विकास दुबे के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट डाले जा रहे हैं। कुछ लोगों ने अशोभनीय और आपत्तिजनक पोस्ट किए हैं। विकास दुबे को मुखबिरी के संदेह में एक पुलिसकर्मी को निलम्बित किया गया है। न जाने पुलिस विभाग में कितने ऐसे मुखबिर होंगे जिनके तार अपराधियों से जुड़े होंगे।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को पुलिस की ओवरहालिंग करनी होगी और पुलिस के भीतर बैठी काली भेड़ों को निकाल बाहर करना होगा। राजनीतिक दलों में पैठ रखने वाले अपराधियों पर काबू पाना बड़ी चुनौती है, जिसकी वजह से स्थानीय अपराधी लगातार अपराधों को अंजाम देते रहते हैं।
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