स्टॉक मार्किट में खरीद-फरोख्त और शार्ट-सैलिंग
भारत में गत वर्षों में स्टॉक मार्किट विश्व स्तर पर काफी ऊपर चली गई है। इस समय यह वैश्विक स्तर पर हांगकांग को पछाड़ कर पांचवें पायदान पर पहुंच गई है, जिस में लिस्टेड शेयर्स की वेल्यू अनुमानतः लगभग 5.1 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। इस समय भारत में लगभग 8.7 करोड़ आम निवेशक हर रोज शेयर मार्किट में खरीद-फरोख्त करते हैं जिसकी अनुमानित वेल्यू लगभग 5 ट्रिलियन डॉलर है।
स्टॉक मार्किट में खरीद-फरोख्त के लिए निवेशक वैसे तो आमतौर पर नीति अपनाते हैं कि ‘सस्ते में खरीदो और महंगे में बेचो’ परन्तु कुछ ट्रेडर्स इसके उलट भी नीति अपनाते हैं जिसमें ‘महंगे में बेचो और सस्ते में खरीदो’। इस नीति को शार्ट-सैलिंग भी कहते हैं। स्टॉक मार्किट में शार्ट-सैलिंग का मतलब है किसी ऐसे स्टॉक को बेचना जो आपके पास नहीं है यह मानकर कि उसकी कीमत गिर जायेगी। अगर कीमत गिरती है तो आप कम कीमत पर स्टॉक खरीदकर मुनाफा कमा सकते हैं। इसके अंतर्गत कुछ नीतिकार बाजार में कुछ रिपोर्ट या अफवाहों के आधार पर मार्किट को गिराने की कोशिश करते हैं, जिसमें वे ऐसे शेयर बेच देते हैं जो तब उनके पास नहीं होते और बाद में मार्किट के गिरने पर सस्ती कीमत में खरीद कर उसे पूरा कर लेते हैं।
शार्ट-सैलिंग कुछ वर्ष पूर्व काफी खबरों में चर्चित रहा जब अमेरिका के एक शार्ट-सैलर एक अमेरिकन कम्पनी हिण्डनबर्ग ने अडानी ग्रुप के बारे में एक रिपोर्ट निकाली जिसमें इस ग्रुप के विरुद्ध काफी आरोप लगाये गये थे, जिसके कारण अडानी ग्रुप के शेयर्स काफी नीचे गिर गये थे (अनुमानतः लगभग 100 बिलियन डॉलर तक), और खबरों के मुताबिक इस अमेरिकन कम्पनी ने बाद में मुनाफा कमाया लेकिन इस सारे प्रकरण में भारतीय बाजार में काफी हलचल हुई और पूंजी निवेशकों का काफी नुक्सान भी हुआ। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। इसी प्रकार की नीति के अन्तर्गत अभी हाल में एक और अमेरिकन शार्ट सैलर कम्पनी ‘वाईसराय रिसर्च’ ने भारत की एक विश्व विख्यात कम्पनी वेदांत ग्रुप के बारे में रिपोर्ट निकाली जिसमें आरोप लगाये गये कि इस कम्पनी के कार्यों में अनेक वित्तीय अनियमिततायें हैं।
इसके फलस्वरूप इस कम्पनी के शेयर भी अचानक नीचे आ गये जिसके निवेशकों को काफी नुक्सान हुआ। उधर कम्पनी ने इस रिपोर्ट और उन आरोपों की गहरी भर्तसना की, कि यह सारे आरोप निराधार और झूठे हैं और कम्पनी की सालाना वार्षिक बैठक से पहले दिन जानबूझ कर कम्पनी को नुक्सान पहुंचाने के लिए निकाले गये हैं। ध्यान रखने योग्य है कि वेदांता ग्रुप धातु उद्योग और क्रिटिकल मिनरल्स जो इस समय बहुत महत्वपूर्ण हैं, एल्युमिनियम, लोहा, ऊर्जा और तेल व गैस के मामलों में दुनिया में बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनके कई कार्य उत्पादन दक्षिणी अफ्रीका, नामीबिया, लाईबिरिया, संयुक्त अरब अमिरात, साऊदी अरब, कोरिया, ताईवान और जापान में भी हैं और कई क्षेत्रों जैसे एल्यूमिनियम आदि में वे वैश्विक स्तर पर पहले या दूसरे नम्बर पर माने जाते हैं। पिछले दिनों वेदांता ने डीमर्जर का प्लान बनाया था जिसके अनुसार चार स्वतंत्र इकाईयां बनाई जायेंगी जिसमें एल्युमिनियम, ऑयरन एण्ड स्टील, पॉवर तथा ऑयल एण्ड गैस से संबंधित इकाईंया होंगी।
उधर जहां तक अमेरिकन शार्ट-सैलर 'वाईसराय रिसर्च' का संबंध है, उनका इतिहास और बेकग्राउण्ड काफी धूमिल किस्म की है। सितम्बर 2021 में दक्षिणी अफ्रीका में वहां फाइनेशियल सैक्टर कन्डक्ट अथॉरिटी (एफएससीए) ने वाईसराय रिसर्च पर 50 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया था कि उन्होंने वहां के केपिटेक बैंक के विरुद्ध 2018 में एक गलत रिपोर्ट निकाली जिसके फलस्वरूप बैंक के शेयर 25% नीचे गिर गये। शार्ट-सैलिंग एक ऐसी नीति है जिससे न केवल आम निवेशकों का नुक्सान होता है, बल्कि उनका मार्किट पर भरोसा भी डगमगा जाता है और कम्पनियों को अपने कार्यकलापों को, कानूनी रूप से उचित करने में भी काफी सोच-विचार करना पड़ता है। स्टॉक एक्सचेंज आम निवेशकों के लिए पूंजी निवेश के लिए एक व्यावहारिक और लोकप्रिय साधन है और इससे कम्पनियों को भी धन जुटाने में सुविधा होती है परन्तु यह अत्यन्त आवश्यक है कि इसमें खरीद-फरोख्त और पूंजी निवेश पारदर्शी और नियमानुकूल तरीके से होता रहे ताकि आम निवेशकों का विश्वास बना रहे और उनका धन सुरक्षित रहे। ऐसे में मार्किट रेगूलेटर सेबी की जिम्मेदारी है कि वे मार्किट पर निगाह रखे और शार्ट-सैलिंग जैसी प्रणालियों पर दृढ़ कार्यवाही करें।