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कर चले हम फिदा जान...

आज सारे विश्व में तनाव, घबराहट और असुरक्षा का माहौल है। न जाने ​कौन व्यक्ति किस समय इस महामारी की चपेट में आ जाए क्योंकि जब यह किसी को अपनी चपेट में लेती है तो यह न तो बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब, संत, फकीर, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई कुछ नहीं देखती

12:08 AM May 10, 2020 IST | Kiran Chopra

आज सारे विश्व में तनाव, घबराहट और असुरक्षा का माहौल है। न जाने ​कौन व्यक्ति किस समय इस महामारी की चपेट में आ जाए क्योंकि जब यह किसी को अपनी चपेट में लेती है तो यह न तो बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब, संत, फकीर, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई कुछ नहीं देखती

आज सारे विश्व में तनाव, घबराहट और असुरक्षा का माहौल है। न जाने ​कौन व्यक्ति किस समय इस महामारी की चपेट में आ जाए क्योंकि जब यह किसी को अपनी चपेट में लेती है तो यह न तो बड़ा-छोटा, अमीर-गरीब, संत, फकीर, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई कुछ नहीं देखती। सो यह समय है गीता के उपदेश को अपने सामने रखकर जीवन को चलाने का। क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाओगे। जो होना है वो होकर रहेगा। खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाएंगे। अच्छे कार्य करें, कर्म ही हमारे साथ जाएंगे आदि।
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मुझे लगता है इस समय काफी लोग इस जीवन की सच्चाई को समझ रहे होंगे और काफी ऐसे भी होंगे जो सोच रहे हैं कि शायद वह इन सब बातों से ऊपर हैं। हमें तो कुछ हो ही नहीं सकता। इन्हीं में से कुछ भटके हुए लोग, जिन्हें हम आतंकवादी का नाम देते हैं, वे सोचते ही नहीं कि वह किस मिट्टी में पैदा हुए हैं, उन्हें अपने मां-बाप के साथ-साथ भारत माता की रक्षा करनी है।
और कुछ लोग ऐसे हैं जो देश के सिपाही हैं, रखवाले हैं, जो देश के लिए अपनी आन-बान-शान-जान कुर्बान कर देते हैं। चाहे वो देश के डाक्टर हों, पुलिस वाले हों या अन्य सेवक, जो सरहदों पर या देश की सुरक्षा के लिए जान दे देते हैं और अपने परिवारों को बि​लखता छोड़ जाते हैं, उनका तो कहना ही क्या जो जाते-जाते यही संदेश दे जाते हैं-कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो….।
ऐसे शहीदों और उनके परिवारों के जज्बे को तहेदिल से सलाम है आैर हमें नाज है। अभी हाल में देश के लिए कुछ कर दिखाने और अपनी जान कुर्बान कर देने का संकल्प लेना और बात है और आगे बढ़कर जान दे देना दूसरी बात। यह सच है कि हमारे देश में सेना, अर्धसैन्य बल के अलावा पुलिस के जवान भी इसी तरह अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं लेकिन शहादत के बाद हमारे शहीदों के परिजन जिस तरह से शहीदों को विदाई दे रहे हैं हमें उन पर भी नाज है। 
कर्नल आशुतोष, मेजर अनुज, जम्मू-कश्मीर के एसआई शकील काजी, अल्मोड़ा के लांस नायक दिनेश सिंह, पंजाब में मानसा के जवान नायक राजेश कुमार, ऐसे जवान हैं जिनकी शहादत को हम कोटि-कोटि नमन कर लें वह भी कम है। 
पिछले सप्ताह कश्मीर घाटी में आतंवादियों के साथ 48 घंटे तक चली मुठभेड़ में शहीद हुए एक बड़े सैन्य अधिकारी कर्नल आशुतोष को जब उनके पैतृक नगर जयपुर में अंतिम विदाई दी गई तो उनकी पत्नी पल्लवी ने कहा कि अक्सर आशु कहा करते थे कि मैं देश के लिए कुछ करना चाहता हूं इसलिए अपने आपको मजबूत बनाकर रखो। उनकी बात मानकर मैं मजबूत हूं और दो बार वीरता पुरस्कार पाने वाले अपने पति तथा भारत मां के सपूत की शहादत पर आंसू नहीं बहाऊंगी क्योंकि  इससे उनकी आत्मा दुखी होगी। संयोगवश कश्मीर में जो दूसरे जवान शहीद हुए उनमें मेजर अनुज सूद भी शामिल हैं और उनका अंतिम संस्कार चंडीगढ़ में परिजनों ने पूरी शान और सिद्दत के साथ किया। देश में लॉकडाउन चल रहा है लेकिन इन सपूतों को लोगों ने दिल से विदाई दी। वहीं सीआरपीएफ के जवान गाजीपुर के अश्विनी यादव को भी अश्रुपूर्ण विदाई दी गई। उन्होंने अपनी छह साल की बेटी से साइकिल खरीदकर लाने का वादा किया था जो पूरा न हो सका। वहीं उन्होंने अपनी पत्नी आशू को कहा था कि जल्दी ही मई में छुट्टियों में आऊंगा लेकिन उनका शरीर तिरंगे में लिपट कर पहुंचा। इसके अलावा सेना के लांस नायक उत्तराखंड के दिनेश सिंह के पिता बताते हैं कि 2019 में वह दिसंबर में आखिरी बार वह घर आए थे और शहादत से दो दिन पहले उसने अपने पिता को कहा कि मैं बहुत जल्द ही घर लौटूंगा लेकिन उनका शरीर तिरंगे में ​लिपट कर पहुंचा। पंजाब के शहर मानसा के रहने वाले नायक राजेश कुमार अपनी शहादत के बाद माता-पिता, दो भाई और दो बहनों को छोड़ गए हैं। उनके माता-पिता ने कहा कि कुछ नहीं किया जा सकता, सेना में भर्ती होने वाले अपनी जान की परवाह नहीं करते और हमें उनकी शहादत पर नाज है। 
कहने का मतलब, इन जवानों की शहादत से पूरा देश सुरक्षित रहता है और जो कुछ सामने आ रहा है वह बताता है कि 48 घंटे की मुठभेड़ के दौरान हमारे ये भारत माता के लाल मुकाबले से हटे नहीं और बराबर आतंकियों की फायरिंग के बीच में डटे रहे और आखिरकार तीन आतंकी भी ढेर हो गए। यह बात अलग है कि इनसे मुठभेड़ करने वाला असली गुनाहगार और मास्टर माइंड हिजबुल कमांडर रियाज नायकू भी मुठभेड़ के चौबीस घंटे बाद सेना ने अपनी गोलियों से उड़ा डाला और हमारे जवानों की शहादत का बदला कुछ हद तक ले भी लिया। ये जवान दिन, दोपहर, शाम और रात की परवाह नहीं करते और आज पूरा देश इनके साथ है। मैं इनके परिजनों की पीड़ा को समझ सकती हूं क्योंकि हमारा परिवार भारत मां की झोली में शहीदों के रूप में दर्ज है। हमारे पूज्य लाला जगत नारायण जी और श्री रमेश चंद्र जी भी देश के नाम कुर्बानी दे चुके हैं। हम इन जवानों के परिजनों के बुलंद हौंसले को प्रणाम करते हैं कि अपने घर के लोगों की शहादत के बावजूद इनके हौंसले मजबूत हैं। 
कर्नल आशुतोष तो सीओ रह चुके थे और आतंकवादियों से मुठभेड़ के एक्सपर्ट माने जाते थे। राष्ट्रीय राइफल के महान योद्धा आशुतोष शर्मा की बेटी और पत्नी पूरे गौरव के साथ उस दिन टीवी पर दिखाई दीं और उन्होंने कहा कि उनकी कुर्बानी पर नाज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि हमारे जवानों की शहादत बेकार नहीं जायेगी। हमें उनके बलिदान पर नाज है। दुश्मन को खत्म करने वाले हमारे सैनिकों के इस बलिदान को देश कभी भी भुलायेगा नहीं। हमारा यह मानना है कि देश के लोग इनके परिजनों को जितना सम्मान दे सकते हैं दें और कितना ही अच्छा हो कि सरकार के वरिष्ठ मंत्री और उच्च अधिकारी या सेना के बड़े अधिकारी इनके घरों में जाकर इन्हें अपनी संवेदनाएं दें और इनके घरों के आसपास के लोगों को भी कहें कि हम और आप अब इन परिवारों के साथ हैं। भारत मां के इन सपूतों के परिवारों की रक्षा का संकल्प हमारा है। ऐसा करने से इनके परिजनों के दु:ख तकलीफ में हम थोड़ी सी राहत का मरहम लगा सकते हैं और मैं समझता हूं कि यह शहादत के प्रति हमारी न केवल सच्ची श्रद्धांजलि होगी बल्कि हमारी कर्त्तव्य परायणता भी है। 
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