Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियो...

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आतंकवादी हमारे देश के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। सेना, सीआरपीएफ व बीएसएफ जवान अपनी जान पर खेलकर हमारी

09:10 AM Feb 17, 2019 IST | Desk Team

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आतंकवादी हमारे देश के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। सेना, सीआरपीएफ व बीएसएफ जवान अपनी जान पर खेलकर हमारी

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आतंकवादी हमारे देश के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। सेना, सीआरपीएफ व बीएसएफ जवान अपनी जान पर खेलकर हमारी हिफाजत कर रहे हैं। कश्मीर में सीआरपीएफ जवानों के साथ खून की होली खेलने से चार-पांच दिन पहले ही जब करनाल के गांव डिंगरमाजरा के राष्ट्रीय राइफल के 35 वर्षीय बांके जवान हवलदार बलजीत की पुलवामा में शहादत की खबर आई तो मैं सिहर उठी। इसी पुलवामा में तीन आतंकवादियों के छिपे होने की खबर मिलने के बाद जवान बलजीत आतंकियों की घेरेबंदी के लिए निकला तो रात के अंधेरे में आतंकवादियों की फायरिंग में हमारे देश की शान व करनाल के वीर बलजीत शहीद हो गए। मैंने पति सांसद श्री अश्विनी जी से बलजीत जी की शहादत का जिक्र किया तो उन्होंने भी यही सवाल किया कि इन आतंकवादियों के खात्मे के लिए अब कुछ करना ही होगा। इस बीच कश्मीर से पूरे देश को हिला देने वाली खबर आ गई।

देश के लिए बलिदान देने वाले उन 40 जवानों के परिजनों को मेरा कोटि-कोटि नमन है और उनके एक-एक सदस्यों के लिए मैं भगवान से कामना करती हूं कि वे हमेशा स्वस्थ रहें। साथ ही यकीन दिलाना चाहती हूं कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है। शहादत को पूरा देश नमन कर रहा है परन्तु शहीदों के परिजनों की हौसला अफजाई इस समय हमारा परम कर्त्तव्य होना चाहिए। मैं शहीदों के परिवार से जुड़ी हूं इसीलिए उनका दर्द दिल से समझ सकती हूं। हमारे परम श्रद्धेय लाला जी जब 1981 में शहीद हुए और इसके बाद परम पूजनीय श्री रमेश जी ने 1984 में शहादत दी, इसे देशवासी भूले नहीं हैं और उनकी याद में उनके जन्मदिन से लेकर पुण्यतिथि तक हमारे साथ खड़े रहते हैं।

आज जरूरत इस बात की है कि शामली के सीआरपीएफ के दो जवान प्रदीप कुमार और अमित कुमार के परिवार का ध्यान हम सबको रखना है। इन शहीदों के परिजनों ने यह कहा है कि अब हमें एक-एक शहीद के बदले दस-दस आतंकियों के सिर चाहिएं। इसी तरह चन्दौली के अवधेश यादव, महाराजगंज के पंकज त्रिपाठी, देवरिया के विजय कुमार, मैनपुरी के राम वकील, इलाहाबाद के महेश, वाराणसी के रमेश यादव, आगरा के कौशल रावत, कन्नौज के प्रदीप सिंह, कानपुर के श्याम बाबू और उन्नाव के अजीत आजाद जैसे कितने ही सैनिक हैं जो शहीद हो गए और उनके परिजनों काे यद्यपि योगी सरकार ने 25-25 लाख रु. देने का ऐलान किया है, परन्तु फिर भी सच यही है कि किसी का पिता उठ गया, किसी की मांग सूनी हो गई, किसी बहन का भाई उसे छोड़ गया परन्तु कितनी ऐसी मातायें हैं जो बरसों से अपने बेटों की कुर्बानी देती आई हैं, उनके दर्द को भी हमें समझना होगा। सबसे बड़ा सम्मान मेरी नज़र में यह हो सकता है कि इन शहीदों के परिवार वालों को हम समाज में ज्यादा से ज्यादा सम्मान की नज़र से देखते हुए हर काम में उनकी मदद करें ताकि उन्हें अपने घर हुए शहीद के न होने का गम न सताए। पीड़ा बांटने से दुःख कम हो जाता है।

जबलपुर के 20 वर्षीय अश्विनी कुमार कांची की शहादत की खबर उसके पिता को जब आधी रात को दी गई तो वह बेचारे सन्न रह गए। भागलपुर के रतन ठाकुर की शहादत इतनी महान है कि उसके पिता ने जूस बेचकर अपने बेटे को पाला-पोसा और मजदूरी की परन्तु अब वह कहते हैं कि अब बेटा ही चला गया तो जीने का क्या फायदा। मेरा कहने का मतलब है कि ऐसे पिताओं का दर्द ये समाज उन्हें अपने साथ जोड़कर जरूर कम कर सकता है। आंखें नम हैं, घरों में गम है तो पंजाब में तरनतारण के सुखजिन्दर और मोगा के जैमल सिंह के अलावा गुरदासपुर के मनिन्दर सिंह शहीद हुए हैं। सुखजिन्दर का अभी बेटा 7 महीने का है और उसकी पत्नी को यह भी नहीं बताया गया कि उसका सुहाग उजड़ चुका है। वहीं 26 वर्षीय कुलविन्दर सिंह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। हिमाचल में कांगड़ा के शहीद तिलक राज की शहादत से पूरा हिमाचल सन्न है और उनके गांव ज्वाली में मातम पसरा हुआ है।

हर शहीद के माता-पिता, भाई-बहन और बच्चे टूट चुके हैं। मैं इन सब के दुःखों में पूरे पंजाब केसरी की ओर से और पूरे स्टाफ की ओर से जुड़ी हुई हूं। इन शहीदों के परिवारों का सम्मान हम सबका दायित्व है। आतंकवादियों के खूनी मंजर को पूरे देश ने देखा और झेला है। मैं तो केवल इतना कहती हूं और इतना चाहती हूं कि शहीदों के परिजनों के लिए मोदी सरकार और राज्य सरकारें बहुत-कुछ कर रही हैं परन्तु फिर भी व्यक्तिगत यही चाहती हूं कि इन परिवारों के सम्मान की खातिर समाज को बहुत कुछ करना है। इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा और कुछ करना होगा।

शहीदों के परिजनों पर दुःख का पहाड़ टूट चुका है। आओ हम सब इन परिवारों की ​िजम्मेवारी लें। इन्हें अहसास कराएं कि कोई भी काम पड़ने पर हमें याद करें। यही सच्ची इंसानियत होगी, यही सच्चा धर्म होगा, यही सच्ची भारतीयता होगी। क्योंकि जवानों ने देश की रक्षा में अपने प्राण देकर जब अपना धर्म हमारी जान बचाने के लिए निभाया है तो आओ हम भी इन जवानों के परिवारों की सुरक्षा और सम्मान के ​लिए अपना धर्म निभाएं।

ये जवान तो ‘‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियो, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’’ कहकर अपनी शहादत देश के नाम कर ही चुके हैं। सभी शहीदों को फिर से कोटि कोटि नमन!

Advertisement
Advertisement
Next Article