For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

कश्मीरी पंडित फिर निशाने पर

आजादी के अमृत महोत्सव पर जम्मू-कश्मीर में तिरंगे ही तिरंगे नजर आए। कुछ वर्ष पहले श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराना चुनौती भरा होता था, वहां 15 अगस्त को तिरंगे फहराये गए।

02:29 AM Aug 18, 2022 IST | Aditya Chopra

आजादी के अमृत महोत्सव पर जम्मू-कश्मीर में तिरंगे ही तिरंगे नजर आए। कुछ वर्ष पहले श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराना चुनौती भरा होता था, वहां 15 अगस्त को तिरंगे फहराये गए।

कश्मीरी पंडित फिर निशाने पर
आजादी के अमृत महोत्सव पर जम्मू-कश्मीर में तिरंगे ही तिरंगे नजर आए। कुछ वर्ष पहले श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहराना चुनौती भरा होता था, वहां 15 अगस्त को तिरंगे फहराये गए। आतंकियों की धमकियों के बावजूद 1992 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने तिरंगा फहराया था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी राष्ट्रीय एकता यात्रा के संयोजक थे। आज स्थितियां बदल चुकी हैं। पिछले माह श्रीनगर के लालचौक पर भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बेंगलुरु के सांसद तेजस्वी सूर्या ने तिरंगा यात्रा निकाली थी। स्वतंत्रता दिवस पर भी भव्य आयोजन किये गए। इसे देखकर हर कोई गर्व कर रहा था। इस सबसे चिढ़े आतंकवादियों ने एक बार फिर कश्मीरी पंडित को निशाना बनाया। शोपियां के एक गांव में सेब के बाग में काम कर रहे लोगों से पहले उनका नाम पूछा गया फिर दो हिंदू भाइयों पर फायरिंग कर दी गई, जिसमें से एक की मौत हो गई। शोपियां में अलर्ट के बावजूद आतंकियों ने दुस्साहस दिखाते हुए मनिहेल बाटापोरा में सीआरपीएफ बंकर पर हैंड ग्रेनेड फेंका।
Advertisement
स्वतंत्रता दिवस वाले दिन ही आतंकियों ने श्रीनगर और बड़गाम में हथगोले फेंके थे। घाटी में जिस तरह से कश्मीरी पंडितों, प्रवासी मजदूरों और सिखों की हत्यायें की जा रही हैं, यह अत्यंत चिंता की बात है। यदि इस तरह की घटनाएं थमी नहीं तो कश्मीरी पंडितों को फिर से घाटी में बसाने का लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद नहीं है। यह सही है कि इस तरह की घटनाएं अंतराल के बाद होती हैं  लेकिन सवाल यह है ​कि इससे कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा को लेकर भरोसा खोते जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा की चिंता से मुक्त कैसे हों?
इस बात की अनदेखी नहीं की जा सती है कि आतंकवादी लगातार गैर कश्मीरियों को चुन-चुनकर निशाना बना रहे हैं। पिछले हफ्ते ही आतंकवादियों ने 19 वर्षीय बिहारी मजदूर की गोली मारकर हत्या कर दी थी।  पुलिस और सुरक्षाबलों के जवान भी आतंकियों के निशाने पर हैं। यद्यपि सुरक्षाबल घाटी में गिने-चुने आतंकवादियों के बचे होने का दावा करते हैं लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सीमापार से साजिशें लगातार जारी हैं और कश्मीरी युवाओं के दिमाग में जहर भरकर आतंकवादियों के रूप में उनकी भर्ती जारी है। तमाम सख्ती के बावजूद पाकिस्तान से घुसपैठ भी जारी है क्योंकि पिछले दिनों मुठभेड़ों में मारे गए आतंकियों में कई पाकिस्तानी भी शामिल थे। देशभर में आतंकी माड्यूल पकड़े गए हैं। उनसे एक बात स्पष्ट है कि पाकिस्तान आज भी भारत के युवाओं को अपने यहां बुलाकर उन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने में समर्थ है। इस समय घाटी में ओवर ग्राउंड वर्कर्स आतंकियों की मदद करने के लिए काफी सक्रिय हैं। पाक स्थित आतंकवादी संगठन और पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई युवाओं के दिमाग में जिहादी मानसिकता का विष घोलकर उन्हें आतंकवादी बना रही है। सबसे अहम सवाल यही है कि घाटी में जिहादी मानसिकता का मुकाबला कैसे किया जाए। कश्मीरी आवाम को भी यह बात खुद समझनी होगी कि उनके बच्चे कब तक मारे जाते रहेंगे। जहां तक सुरक्षा बलों का सवाल है तो उनकी नजर में हर शख्स आतंकवादी है, जो बंदूक हाथ में पकड़ कर निर्दोष लोगों को निशाना बनाते हैं।  घाटी में आतंकवादी सरगनाओं की आयु अब बहुत कम रह गई है। बुरहान वानी ब्रिगेड के खात्मे के बाद घाटी में लगातार सक्रिय आतंकी कमांडर मारे जा रहे हैं।
आतंकवादी हिंदुओं और गैर कश्मीरियों को भयभीत करके घाटी छोड़ने पर मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं। अब उन्होंने अपनी रणनीति भी बदल दी है। टारगेट किलिंग का सिलसिला थम नहीं रहा। अब जबकि जम्मू-कश्मीर में परिसीम का काम पूरा हो चुका है और  राज्य में चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है। ऐसी स्थिति में आतंकवादी चाहेंगे कि चुनावों से पहले घाटी की फिजा में जहर घोल दिया जाए। वे नहीं चाहते कि राज्य में कश्मीरी पंडितों को प्रतिनिधित्व दिया जाए। वे घाटी की सियासत में किसी तरह का बदलाव नहीं चाहते। इन हालातों को देखते हुए सुरक्षाबलों को अपनी नई रणनीति बनानी होगी। इसमें कोई शक नहीं कि घाटी में आतंकी संगठनों की कमर टूट चुकी है। उनकी पैसे से मदद करने वाले लोग भी सलाखों के पीछे बंद हैं लेकिन इसके बावजूद कश्मीरी युवाओं को जेहादी मानसिकता से प्रभावित कौन और  कैसे कर रहा है। इन सभी कारणों की तलाश करनी होगी। चुनाव आयोग इस साल हिमाचल और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ जम्मू-कश्मीर के चुनाव कराने की संभावनाएं तलाश रहा है लेकिन यह तभी संभव है जब राज्य में शांति बहाल हो।
Advertisement
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×