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कोरोना को पराजित करने का केरल मॉडल

यद्यपि कोरोना वायरस से युद्ध लड़ने के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा मॉडल की सराहना हो रही है। उत्तर प्रदेश के आगरा माडल की भी चर्चा हो रही थी लेकिन भारी संख्या में नए मरीज मिलने पर इस पर सवाल उठने लगे हैं।

03:17 AM Apr 14, 2020 IST | Aditya Chopra

यद्यपि कोरोना वायरस से युद्ध लड़ने के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा मॉडल की सराहना हो रही है। उत्तर प्रदेश के आगरा माडल की भी चर्चा हो रही थी लेकिन भारी संख्या में नए मरीज मिलने पर इस पर सवाल उठने लगे हैं।

कोरोना को पराजित करने का केरल मॉडल
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यद्यपि कोरोना वायरस से युद्ध लड़ने के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा मॉडल की सराहना हो रही है। उत्तर प्रदेश के आगरा माडल की भी चर्चा हो रही थी लेकिन भारी संख्या में नए मरीज मिलने पर इस पर सवाल उठने लगे हैं। इसी बीच महामारी को पराजित करने के लिए केरल मॉडल भी अन्य राज्य सरकारों के सामने आ चुका है। जब कोरोना वायरस के फैलने की बात भारत में चली तो केरल को लेकर काफी चिन्ताएं व्याप्त हो गई थी।
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केरल के कासरगौड जिला को महामारी का एपिक सैंटर करार दे दिया गया था। राज्य के अन्य जिलों में भी कोरोना वायरस के फैलने की खबरें मिल रही हैं। केरल में रविवार को केवल दो पॉजिटिव केस सामने आए जबकि देश के अन्य राज्यों में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले दस दिनों में केरल, जहां कई हॉटस्पॉट हैं, में संक्रमित मरीजों की संख्या में केवल एक ही वृद्धि हुई है।
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अन्य राज्यों और राष्ट्रीय औसत की तुलना में भी पाजिटिव केसों के ठीक होने की दर बढ़ी है। रविवार तक 36 संक्रमित मरीज ठीक होकर घरों को लौट चुके हैं। इसके साथ ही स्वस्थ होने वाले मरीजों की संख्या 179 तक पहुंच गई है जो कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 375 का 48 फीसदी है। राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कुल संक्रमित मरीजों में से केवल 765 के स्वस्थ होने की बात कही है, यह आंकड़ा भी केवल 9 फी​सदी ही बैठता है।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और दिल्ली में संक्रमित मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ौतरी चिन्ता पैदा करने वाली है। 26 मार्च तक केरल में मरीजों की संख्या महाराष्ट्र के बाद दूसरे नम्बर पर थी लेकिन अब कोविड-19 वायरस दूसरे राज्यों में फैल गया है। केरल ने महामारी पर तेजी से काबू पाया, यह भी अपने आप में एक उदाहरण है।
विशेषज्ञों का कहना है कि केरल सरकार ने कोरोना आने से पहले ही 26 जनवरी को कोरोना से निपटने के लिए नियंत्रण कक्ष स्थापित कर लिया था। क्वारंटाइन से लेकर आईसोलेशन और सम्पर्क खोजने के काम के लिए 18 समितियों का गठन कर लिया गया था। देश में पहला मामला 30 जनवरी को केरल में सामने आया था और एक-एक करके कुल तीन मामले सामने आ गए थे। ये तीनों ही फरवरी में स्वस्थ होकर घरों को लौट गए थे। इसके बावजूद केरल सरकार ने सतर्कता में कोई कमी नहीं आने दी।
जांच में भी केरल आगे रहा। पूरे देश में जब केवल 66 हजार की जांच की गई तो केरल में अकेले दस हजार लोगों की जांच की जा चुकी थी। वहीं केरल पुणे की एक प्राइवेट लैब से रैपिड पीसीआर किट खरीदने वाला पहला राज्य है। केरल सरकार ने सभी हवाई अड्डों को सीधे अस्पताल से जोड़ा और किसी भी यात्री को बुखार या कोरोना के लक्षण दिखने पर उसे सीधे हवाई अड्डे से अस्पताल भेजा गया।
ब्लड बैंक में वायरस से संक्रमण को रोकने के लिए रक्तदान करने वालों की कई बार स्क्रीनिंग की गई और सभी विदेश से लौटे लोगों या रक्तदान करने पर रोक लगा दी गई। सड़क मार्ग से राज्य में आने वाले लोगों की जांच के लिए डाक्टराें की नियुक्ति की गई। यात्रियों के शरीर का तापमान जांचने और उन्हें महामारी से बचने के उपायों के प्रति जागरूक किया गया। इस दौरान केरल में मिड-डे-मील बच्चों तक पहुंचाने की मुहिम 15 मार्च से शुरू की।
ब्राडबैंड इंटरनेट सेवा की 30 से 40 फीसदी गति बढ़ाने का नियम लागू ​कराया। एक लाख 70 हजार से अधिक लोगों को क्वारंटाइन करके रखा गया। केरल में कुल 375 मरीजों  में से लगभग 233 की ट्रैवल हिस्ट्री थी। दिल्ली के निजामुद्दीन के मरकज में तबलीगी जमात में शामिल हुए लोगों और उनके सम्पर्कों को तेजी से ढूंढा गया। तिरुअनन्तपुरम जिला में जहां 68 वर्षीय व्यक्ति की 31 मार्च को मृत्यु हुई थी, वहां भी कम्युनिटी ट्रांसमिशन के कोई प्रमाण नहीं मिले। कासरगौड और कन्नूर से अच्छी खबरें मिल रही हैं, वहां 71 में से 36 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं।
केरल पूरी तरह से साक्षर राज्य है और यहां के काफी लोग खाड़ी देशों के अलावा अन्य देशों में रोजगार के लिए जाते हैं और उनका आना-जाना लगा रहता है। प्रभावशाली लॉकडाउन, कुशल मैडिकल टीमों, क्वारंटाइन प्रबन्धन और व्यापक जन सहयाेग से केरल मॉडल की प्रशंसा की जा रही है। आज की युवा पीढ़ी के लिए लॉकडाउन या क्वारंटाइन नई चीज हो या उत्सुकता का विषय हो लेकिन  क्वारंटाइन या संगरोध दुनिया के लिए नई बात नहीं है। जब भी दुनिया में संक्रामक रोगों का हमला होता था उसके बाद क्वारंटाइन प्रयोग किया जाता था। उस समय न चिकित्सक थे न दवाइयां।
संक्रामक रोगों के बचाव के लिए भी कई कदम उठाए जाते थे। 20वीं सदी के मध्य तक आवागमन के लिए पानी के जहाज ही साधन थे। जब प्लेग फैला तो समुद्री जहाजों को जलसीमाओं पर 40 दिन तक खड़े रहना पड़ा था, इन 40 दिनों को ही क्वारंटाइन कहा जाता है। बेहतर यही होगा कि लोग लॉकडाउन का पालन करें। जागरूक और सतर्क रह कर ही इस महामारी पर काबू पा सकते हैं। कुशल प्रबन्धन और जनसहयोग से ही इस वायरस से मुक्ति पा सकेंगे। इस समय शासन-प्रशासन को सहयोग देना बहुत जरूरी है।
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