पाकिस्तान से दोस्ताना निभाने वाले खालिस्तानी इतिहास पढ़ें
पाकिस्तान से दोस्ताना निभाने वाले खालिस्तानियों को शायद मुगल इतिहास की जानकारी…
पाकिस्तान से दोस्ताना निभाने वाले खालिस्तानियों को शायद मुगल इतिहास की जानकारी का आभाव है और अगर इतिहास जानने के बावजूद भी वह पाकिस्तान से दोस्ती करते हैं तो यह माना जा सकता है कि वह सही मायने में सिख ही नहीं हैं। इतिहास गवाह है, मुगल शासकों ने सिख गुरुओं के साथ अत्यंत क्रूरता और अमानवीयता का व्यवहार किया। ये अत्याचार इतने भयानक थे कि गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे बच्चों तक को नहीं बख्शा गया। बाबा बंदा सिंह बहादुर के चार वर्षीय पुत्र अजय सिंह का हृदय निकालकर जबरन बाबा जी के मुंह में डाल दिया गया। सूत्र बताते हैं कि पाकिस्तान ने खालिस्तान आंदोलन को जन्म देने और उसे बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है। उसने इस आंदोलन को संसाधनों और समर्थन के माध्यम से बढ़ावा दिया है जो भारत के प्रति उसकी दीर्घकालिक घृणा को दर्शाता है। यह दुश्मनी सिख गुरुओं के समय से चली आ रही है, विशेषकर जब मुग़ल सम्राट जहांगीर ने पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव जी को गर्म तवे पर बैठाकर और सिर पर गर्म रेत डालकर यातनाएं दीं।
नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगजेब ने सिर काटकर शहीद किया, क्योंकि वे कश्मीरी पंडितों के जबरन धर्म परिवर्तन के विरोध में खड़े हुए थे। उनकी शहादत सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जब सिख पंथ ने धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु सैन्य मार्ग अपनाया। उनके पुत्र, दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़े। उनके दो बड़े पुत्र चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए, जबकि दो छोटे पुत्रों को सरहिंद में दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया, क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल करने से इन्कार कर दिया था। हालांकि यह भी उल्लेखनीय है कि सभी मुसलमानों ने मुगलों का समर्थन नहीं किया था। मलेरकोटला के नवाब जो एक मुस्लिम शासक थे, उन्होंने इस क्रूरता का विरोध किया था और आज भी आम मुस्लिम इनके समर्थन में नहीं हैं। 1947 के विभाजन के दौरान भी पाकिस्तान में हजारों निर्दाेष हिंदू और सिख नागरिकों का बर्बरता से कत्ल किया गया। सूत्रों का कहना है कि 1980 के दशक में भारत में खालिस्तान आंदोलन को फिर से जीवित करने में पाकिस्तान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई पर इस आंदोलन को फंडिंग और बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं ताकि भारत को अस्थिर किया जा सके। इनकी बदौलत ही आज खालिस्तानी समर्थक कनाडा जैसे देशों में सक्रिय हैं।
पाकिस्तान को सबक सिखाना बेहद जरूरी : वैसे देखा जाए तो जंग किसी भी मसले का हल नहीं है, क्योंकि जब भी दो देशों के बीच जंग होती है तो नुक्सान दोनों ओर होता है भले किसी का कम तो किसी का ज्यादा। इतना ही नहीं जंग के दौरान मरने वाले सैनिक या आम जनता किसी न किसी परिवार के सदस्य होते हैं जिनके दुनिया से चले जाने का गम परिवार को हमेशा झेलना पड़ता है। इसलिए हमेशा ऐसी कोशिश की जानी चाहिए जिससे जंग की स्थिति पैदा न हो। शायद इसीलिए सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने 550 वर्ष पूर्व लोगों को संवाद का रास्ता दिखाया। मुगल बादशाह बाबर को जाबर कहने की हिम्मत उनमें थी मगर बाबर से संवाद कर उसका मार्ग दर्शन भी किया।
आज़ादी के बाद से ही पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान आतंकवाद की आड़ में भारत में नफरत फैलाता रहा है। उसने हमेशा भारत की पीठ में छुरा घोपा है, फिर चाहे बात 1965,1971 जंग की हो या कारगिल युद्ध की और आज भी वही हालात उसके द्वारा पैदा कर दिए गए हैं लेकिन हमेशा वह भारत के हाथों मात खाकर औंधे मुंह गिरा है। पहलगाम हमला करके धर्म की आड़ में पाकिस्तान ने जो तुच्छ साजिश करते हुए 26 बेकसूर हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा। इसी प्रकार कुछ वर्ष पूर्व 36 सिखों का चट्टीसिंह पुरा में आतंकियों के द्वारा कत्ल किया गया था मगर अब लगता है कि समय आ चुका है पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। देश की सरकार के द्वारा जिस प्रकार मिशन सिंदूर शुरू किया उससे पाकिस्तान की पनाह में पल रहे आतंकवादी कांप उठे। पाकिस्तान को लगता था कि भारत कभी सख्ती से पेश नहीं आयेगा लेकिन मिशन सिंदूर जिसका नेतृत्व कर्नल सोफिया कुरैशी द्वारा किया गया उसने पाकिस्तान की गलतफहमी दूर कर दी। पाकिस्तान ने जानबूझकर सिखों के धार्मिक स्थलों को टारगेट किया ताकि सिख समुदाय को भड़काकर अपने समर्थन में खड़ा किया जाए जिसके लिए उसने विदेशों में बैठे पन्नू जैसे खालिस्तानियों की मदद भी ली मगर संसारभर के सिख समुदाय के द्वारा एक ही सन्देश दिया गया कि सिख पूरी तरह से भारत के साथ खड़े हैं इससे पाकिस्तान के उन मन्सूबों पर भी पानी फिर गया।
पंजाब के गांवों में सिख प्रचार मुहिम का आगाज : श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गज जिन्हें हालांकि आज भी कई सिख संस्थाएं जत्थेदार के रूप में स्वीकार नहीं करती मगर उन्होंने कार्यभार संभालने के बाद से ही जिस प्रकार सिख मसलों को गंभीरता से हल करने में पहलकदमी दिखाई है। पंजाब में उन गांवों में जहां वाकय ही सिखी प्रचार की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि इन गांवों में सिखी पूर्णतः समाप्त होती जा रही है। सिख युवक नशे की लत के चलते या फिर फैशनप्रस्ती में फंसकर अपने केश कत्ल करवा चुके हैं वहां जाकर जत्थेदार गड़गज द्वारा विशेष तौर पर अभियान चलाया जा रहा है और अगर जत्थेदार साहिब के कार्यों में किसी प्रकार की दखलअंदाजी शिरोमिण कमेटी द्वारा न की गई तो आने वाले समय में इसके बेहतर परिणाम निकल कर आयेंगे। असल में देखा जाए तो जत्थेदार की पदवी पर ऐसी ही धार्मिक सोच वाले लोगों को बिठाया जाना चाहिए जिनका मकसद केवल सिख मर्यादा और परंपरा पर पहरा देते हुए सिखी प्रचार को बढ़ावा देने का हो अन्यथा पिछले कुछ समय से हालात ऐसे बन चुके हैं कि जो भी शख्स इस पदवी पर विराजमान होता है वह अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु सरकाराें पर, दरबाराें पर अपनी पकड़ मजबूत करने में ही अपना सारा समय व्यतीत करने लगता है, ऐसे में उनके द्वारा सिखी प्रचार प्रसार में बढ़ौतरी की उम्मीदें कैसे लगाई जा सकती हैं। आज देखा जाए तो पंजाब जिसे सिखी का केन्द्र माना जाता है वहां सबसे अधिक सिखी प्रचार की आवश्यकता है।
जत्थेदार अकाल तख्त साहिब को पंजाबी फिल्म इन्डस्ट्रीज और गायकों पर भी सख्ती से पेश आना होगा, क्यांेकि आमतौर पर देखा जाता है कि इन कलाकारों से सिख युवा प्रेरित होकर ही अपने केशों की बेदबी करते हैं। आज हालात ऐसे बन चुके हैं, खासकर पंजाबी फिल्मों में देखने को मिलता है कि केवल परिवार का मुखिया ही सिख दिखाया जाता है और वह भी दाड़ी कटा आगे उसके बेटे अर्थात हीरो को बिना सिखी स्वरूप के पेश किया जाता है। इस शृंखला को बंद करना बेहद जरूरी है, क्यांेकि युवा वर्ग इन्हें ही अपना रोल माडल बनाकर इनके जैसे दिखने का प्रयत्न करते हैं।
करतारपुर साहिब के दर्शनों के इन्तजार में सिख श्रद्धालु: संसारभर से हजारों श्रद्धालुओं के दिलों को जंग के माहौल से ठेस पहुंची है, क्यांेंकि कई सालों की अरदास के बाद करतारपुर साहिब के दर्शनों की मंजूरी भारत और पाकिस्तान की सरकारों के द्वारा दी गई थी जिसके चलते हर एक सिख की इच्छा होती है कि करतारपुर साहिब नतमस्तक हो सके। कई परिवारों के द्वारा इस साल बच्चों की छुट्टियों में दर्शनों का प्रोग्राम भी बना रखा था मगर जंग के ऐलान ने सब चौपट कर दिया। अकाली नेता बलदीप सिंह राजा का कहना दूसरी ओर दोनों सरकारों और करतारपुर साहिब गुरुद्वारा कमेटी के द्वारा ऐसे प्रबन्ध किए जा रहे थे कि जो भी श्रद्धालुगण वहां जाए वह एक रात वहां बिताकर अगले दिन वापस आ सकते हैं, मगर अब तो सभी के दिमाग में एक सवाल चल रहा है कि क्या सरकारों के द्वारा माहौल ठीक होने पर फिर से दर्शनों की मंजूरी दी जाएगी या नहीं। इसी के चलते एक बार फिर से सिख समुदाय के द्वारा पाकिस्तान स्थित अन्य गुरुद्वारों के साथ-साथ करतारपुर साहिब के दर्शनों के लिए भी अरदास की जाने लगी है।