Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

खाशोगी, सच और अमेरिका

NULL

08:18 AM Oct 20, 2018 IST | Desk Team

NULL

सऊदी अरब अमेरिका का करीबी सहयोगी रहा है लेकिन प्रख्यात पत्रकार जमाल खाशोगी की गुमशुदगी ने अमेरिका को दुविधा में डाल दिया है। माना जा रहा है कि पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या तुर्की के इस्तांबुल स्थित सऊदी दूतावास में हत्या कर दी गई है लेकिन सऊदी अरब लगातार इन आरोपों से इन्कार कर रहा है। इसी बीच ‘द ​वाशिंगटन पोस्ट’ ने लापता जमाल खाशोगी का अन्तिम कॉलम छाप दिया है। इस लेख में खाशोगी ने अरब जगत में प्रैस की आजादी की वकालत की है। उन्होंने उस आजादी की बात की थी, जिसके लिए शायद उन्होंने अपनी जान दे दी। सऊदी के क्राउन प्रिंस की आलोचना करने वाले खाशोगी ने कथित धमकियों के बाद पिछले साल सऊदी अरब छोड़ दिया था। सऊदी अरब के अधिकारी उन्हें क्राउन प्रिंस की नीतियों की आलोचना करने की वजह से धमका रहे थे। यद्यपि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खाशोगी की हत्या पर अपने गुस्से का इज़हार करते हुए कहा है कि यदि पत्रकार की हत्या में सऊदी अरब का हाथ साबित हुआ तो अमेरिका सख्त कार्रवाई करेगा।

ट्रंप ने कहा कि यकीनन ऐसा लगता है कि खाशोगी जीवित नहीं हैं, लेकिन तीन अलग-अलग जांचों का इंतजार कर रहे हैं और जल्द ही इस मामले में सच पता चल जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप इस मामले में दोहरा रवैया अपना रहे हैं। एक तरफ वह सऊदी अरब के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दे रहे हैं तो दूसरी तरफ कह रहे हैं कि अमेरिका सऊदी अरब को हथियार बेचना बन्द नहीं करेगा आैर भी बहुत सी बातें हैं जो वह कर सकते हैं। जमाल खाशोगी के लापता होने के बाद पूरी दुनिया में हंगामा मचा हुआ है। अपनी शुरूआती शिक्षा सऊदी अरब में पूरी करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए थे। 1983 में अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद खाशोगी ने पेशे के रूप में पत्रकारिता के क्षेत्र को चुना। वह पहली बार तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने अफगानिस्तान में सोवियत संघ की सेनाओं और मुजाहिदीनों के बीच हुए संघर्ष की रिपोर्टिंग की थी। उन्हें ऐसे पत्रकार के रूप में भी जाना जाता था जिसने उस समय अलकायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन का कई बार साक्षात्कार लिया था।

जब अमेरिका और उसके मित्र देश उसकी तलाश में थे। 2003 में जमाल खाशोगी को सऊदी अरब की सबसे चर्चित अखबार ‘अल वतन’ का सम्पादक चुना गया था लेकिन खाशोगी इस पद पर ज्यादा देर नहीं रह सके। सऊदी सरकार और वहां के धर्मगुरुओं के तौर-तरीकों की वह लगातार आलोचना करते थे। अन्ततः उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की न​ीतियों के मुखर आलोचक जमाल खाशोगी को सऊदी से निर्वा​िसत कर दिया गया आैर वह अमेरिका चले गए और वाशिंगटन पोस्ट में लगातार कॉलम लिख रहे थे। पिछले वर्ष बिन सलमान द्वारा राजकुमारों, मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों को जेल में डालने के पीछे की कहानी को दुनिया के सामने उजागर किया था। वह सऊदी अरब द्वारा यमन में छेड़े गए युद्ध और कतर पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ भी लिख रहे थे। उन्होंने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डालने और लेबनान के प्रधानमंत्री के अपहरण को लेकर भी बिन सलमान को कठघरे में खड़ा किया था। यही बात मोहम्मद बिन सलमान आैर उनके सिपहसालारों को काफी चुभती थी।

खाशोगी जानते थे कि उनके लेखन की वजह से उनकाे जान का खतरा है। जमाल खाशोगी तुर्की में रहने वाली अपनी मंगेतर हैनिस संगीज से शादी करना चाहते थे और इसी से जुड़े कुछ कागजात लेने वह सऊदी अरब के दूतावास में गए थे लेकिन वहां से लौटे नहीं। उनकी मंगेतर बाहर कई घण्टे इंतजार करती रही तब जाकर तुर्की पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। अमेरिका की कड़ी प्रतिक्रिया देखने के बाद सऊदी के क्राउन प्रिंस सलमान ने तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन से बात की और तुर्की के सऊदी दूतावास में जांच की अनुमति दी। तुर्की पुलिस ने दूतावास का गहराई से निरीक्षण किया तो दूतावास की दीवारों और फर्श पर जहरीला पदार्थ पाया जिस पर पेंट कर दिया गया था। जांचकर्ता जहरीले पदार्थ का पता लगा रहे हैं। इसी बीच सऊदी दूतावास के प्रमुख मोहम्मद अल ओतावी तुर्की छोड़कर चले गए। पत्रकार खाशोगी की हत्या के तार सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से जुड़ते दिख रहे हैं। पत्रकार बिरादरी मुहिम चला रही है कि अंतर्राष्ट्रीय अदालत में मुकद्दमा दर्ज कराया जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि सऊदी अरब दुनियाभर में आतंकवाद का पोषक है।

यमन में जंग शुरू करके उसने युद्ध अपराध किया हैै। सवाल उठ रहे हैं कि सऊदी वहां अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है। सऊदी प्रिंस सलमान पर बहुत से सवाल उठ रहे हैं। उनके कई फैसलों को अपरिपक्वता के तौर पर देखा जा रहा है। ट्रंप और सऊदी अरब में सहयोग तो बढ़ा है लेकिन सलमान में अनुभव की कमी है। सलमान ने सऊदी अरब की छवि बदलने के लिए बहुत धन खर्च किया लेकिन खाशोगी के स्तम्भ उनकी छवि को धूमिल कर रहे थे। खाशोगी की हत्या को लेकर उस पर दबाव बढ़ रहा है। तुर्की कह रहा है कि उसके पास ऐसे सबूत हैं कि खाशोगी को यातनाएं देकर मार डाला गया। अमेरिका की समस्या यह है कि अगर वह सऊदी से रिश्ते तोड़ना है तो वह रूस आैर चीन से हथियार खरीद सकता है। खाशोगी हत्याकांड का सच तो समाने आ ही जाएगा लेकिन क्या अमेरिका सऊदी को दण्डित कर सकेगा? सत्य लिखने वालों को अपनी शहादत देनी ही पड़ती है। खाशोगी भी उनमें से एक रहे। पत्रकारिता जगत उन्हें हमेशा याद रखेगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article