Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

जस्टिस चेलमेश्वर का जाना लेकिन सवाल बरकरार

NULL

12:02 AM May 20, 2018 IST | Desk Team

NULL

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर सेवानिवृत्त हो गये हैं। अंतिम दिन उन्होंने परम्पराओं के मुताबिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ बेंच सांझा किया और शीर्ष अदालत से विदाई ले ली। सेवानिवृत्ति का दिन हर किसी के लिये बहुत भावुक हाेता है। हर कोई नियमों के मुताबिक सेवानिवृत्त होता है लेकिन न्यायमूर्ति जस्टिस चेलमेश्वर को न्यायपालिका के इतिहास में हमेशा याद रखा जायेगा। उन्होंने शीर्ष अदालत में कार्यकाल के दौरान न्यायपा​िलका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के आदर्शों को बरकरार रखने के लिये जो भूमिका निभाई उसकी सराहना एवं आलोचना दोनों ही हुई हैं।

न्यायपालिका और कार्यपालिका में टकराव तो हमेशा ही होता रहा है लेकिन न्यायप​ालिका की आंतरिक व्यवस्था में सुधार करने के लिये आवाज उठाने वाले चार न्यायमूर्तियों में से वह एक रहे। विवादों का निस्तारण करने वाली शीर्ष न्यायिक संस्था उस समय स्वयं कठघरे में खड़ी हो गई थी जब अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों ने पत्रकार वार्ता के जरिए मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इन चार न्यायमूर्तियों में सर्वश्री जे. चेलमेश्वर, कुरियन जोसेफ, रंजन गोगोई और मदन लोकुर शामिल थे। इन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि देश की सबसे बड़ी संस्था में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। इससे पूर्व सन्…….. में इंदिरा गांधी शासनकाल के दौरान चार न्यायाधीशों ने केवल इस मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार में मुख्य न्यायाधीश के पद पर उनकी वरिष्ठता को नजरंदाज कर दिया था। इस मामले में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता अत्यंत प्रभावित हुई थी और विपक्ष ने इसका लाभ उठाते हुए जनता की अदालत में जाकर इंदिरा गांधी काे पदच्युत करवा दिया था।

अत: हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह के मतभेद लोकतंत्र की दीवार को अत्यंत मजबूत बनाते हैं। भारत 21वीं सदी का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसे विश्व ने भी माना है। चार न्यायमूर्तियाें ने कहा था कि पिछले कुछ समय से कार्य निस्तारण में सुनिश्चित नियमों की अवहेलना करके विभिन्न मुकद्दमों के निपटारे के लिये खास पीठों का चयन किया जा रहा है। स्वतंत्र भारत में पहली बार ऐसा अवसर आया था जब शीर्ष अदालत के अन्दरूनी कामकाज को लेकर इस प्रकार की शिकायतें सामने आईं। इस मामले को यूं ही दरकिनार नहीं किया जा सकता था। न्यायपालिका के मंदिर का प्रबन्ध पूर्ण रूप से पवित्र परिलक्षित रहा है, जिस पर किसी भी तरह का छींटा भविष्य के लिये हानिप्रद हो सकता है। यह अत्यंत विस्मयकारी रहा कि मुख्य न्यायाधीश की कार्यप्रणाली से कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों को लगा कि वह मुकद्दमों के निपटारे में भेदभाव कर रहे हैं ताकि मनचाहे फैसले आ सकें। पिछले कुछ समय से कई मामलों में ऐसे मतभेद सामने आते रहे हैं।

मेडिकल कालेज मामले में मनचाहा आदेश दिलाने के लिये रिश्वतखोरी के आरोप भी वरिष्ठतम न्यायमूर्ति पर लगे जिससे न्यायपालिका की छवि धूमिल हुई। जस्टिस चेलमेश्वर और तीन अन्य न्यायमूर्तियों की न्यायपालिका के आंतरिक मतभेदों को उजागर करने के लिये आलोचना भी हुई। न्यायपालिका को अपनी स्वायत्तता का सम्मान करते हुए पारस्परिक तालमेल से बंद कमरों में मतभेद सुलझाने के प्रयास करने चाहिये थे लेकिन सवाल केवल रोस्टर प्रणाली के उल्लंघन का ही नहीं था बल्कि न्यायपालिका में बढ़ी सरकारी दखलंदाजी का भी था। जस्टिस चेलमेश्वर ने इसके खिलाफ आवाज उठाकर कुछ भी गलत नहीं किया। उन्होंने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा था कि न्यायपालिका में सरकार की दखलंदाजी हो रही है। यह पत्र कर्नाटक के जिला जज कृष्ण भट्ट को हाईकोर्ट प्रोन्नत करने की कोलेजियम की सिफारिश को सरकार द्वारा दबाकर बैठ जाने और सरकार के सीधे कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के बारे में था। उन्होंने इस पत्र में क​हा था कि सरकार और न्यायपालिका की दोस्ती लोकतंत्र के लिये खतरनाक है।

कुछ न्यायाधीश मानते हैं कि जस्टिस चेलमेश्वर और तीन अन्य न्यायमूर्तियों ने प्रेस कान्फ्रेंस करके न्यायिक अनुशासन तोड़ा है लेकिन कुछ उनके आचरण को तर्कों से सही ठहराते हैं। जस्टिस चेलमेश्वर ने तो जस्टिस एम. जोसेफ का नाम पुन: सरकार को भेजने के लिये भी मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था। महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि न्यायपा​िलका का अंतर्विरोध सतह पर क्यों आया? इसके कुछ न कुछ तो कारण होंगे। जस्टिस चेलमेश्वर तो सेवानिवृत्त हो गए लेकिन उनके द्वारा उठाए गए सवाल अभी भी बने हुए हैं। जस्टिस एच.आर. खन्ना आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताने वाले एकमात्र न्यायाधीश रहे, उसी तरह न्यायपालिका की आंतरिक व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले जस्टिस चेलमेश्वर पहले न्यायाधीश हो गये। सवाल शीर्ष न्यायपालिका की गरिमा का है क्योंकि वह न्याय का ऐसा मंदिर है जहां नीर-क्षीर-विवेक की कल्पना साकार होती है। उस पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Next Article