समावेशी कार्यबल के लिए श्रम संहिता सुधार
भारत एक ऐतिहासिक युग की शुरुआत में खड़ा है, यह राष्ट्रीय आत्मविश्वास का क्षण है, क्योंकि देश श्रम संहिताओं को लागू कर रहा है, जिन्हें व्यापक रूप से आज़ादी के बाद से अब तक के सबसे बड़े और दूरदर्शी सुधारों में माना जाता है। इन संहिताओं के लागू होने से पुराने, जटिल और औपनिवेशिक दौर के श्रम कानूनों की जगह एक आधुनिक और सरल श्रम व्यवस्था ले रही है, जो आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत 2047 की दिशा में देश के लक्ष्यों के अनुरूप है। ये सुधार श्रमिकों को अधिक सुरक्षा, सुविधाएं और अधिकार देते हैं, और साथ ही सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को मजबूत बनाते हैं, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं और वंचित वर्ग काम करते हैं।
सुरक्षा से सशक्तिकरण तक श्रम संहिताएं एक ऐसे नए दौर की शुरुआत करती हैं, जहां श्रमिकों विशेषकर महिलाओं को गरिमा, न्याय और जरूरी सुरक्षा की व्यापक पहुंच देकर उन्हें सच में सशक्त किया जा रहा है। वेतन संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता यह तय करती हैं कि सभी को समान काम के लिए समान वेतन मिले, और हर श्रमिक तक सामाजिक सुरक्षा पहुंच सके। इससे ऐसा वातावरण बनता है जो महिलाओं की सुरक्षित और पूर्ण भागीदारी को बढ़ावा देता है।
कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के कवरेज के विस्तार से स्वास्थ्य, मातृत्व और आय सुरक्षा और मजबूत होती है। इसका लाभ ग्रामीण इकाइयों से लेकर बड़े एमएसएमई क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं तक सभी को मिलता है। परिवार की परिभाषा को बढ़ाकर उसमें अब महिला के ससुर-सास को भी शामिल किया गया है। यह बदलाव इस बात को समझता है कि परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारियां महिलाओं पर अधिक होती हैं, और इसलिए ऐसा प्रावधान महिलाओं के रोजगार में भाग लेने के लिए एक मजबूत सामाजिक आधार तैयार करता है। इन सभी प्रावधानों को मिलाकर देखा जाए तो यह एक नए सामाजिक अनुबंध का निर्माण करते हैं, जिसमें भारत की बदलती श्रम व्यवस्था के केंद्र में महिलाओं को रखा गया है।
स्वास्थ्यप्रद और सुरक्षित कार्यस्थल ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन्स कोड भारत में कार्यस्थलों पर कल्याण और सुरक्षा के लिए एक आधुनिक मानक तैयार करता है। इसमें क्रेच, शौचालय, पीने का पानी, कैंटीन और आराम करने की जगह जैसी सुविधाएँ अनिवार्य की गई हैं, ताकि एमएसएमई कार्यस्थल सुरक्षित, सम्मानजनक और उत्पादकता बढ़ाने वाले बन सकें। मानक कार्य घंटों का निर्धारण, उपयुक्त परिस्थितियों में वर्क-फ्रॉम-होम जैसी लचीली व्यवस्थाएं, और 180 दिन पूरे होने पर पेड लीव का अधिकार। ये सभी प्रावधान काम और निजी जीवन में बेहतर संतुलन बनाते हैं। इससे भारत की श्रम व्यवस्था आधुनिक अपेक्षाओं और श्रमिक कल्याण के वैश्विक मानकों के अनुरूप होती जा रही है।
40 वर्ष और उससे अधिक उम्र के कर्मचारियों के लिए हर साल मुफ्त स्वास्थ्य जांच अनिवार्य की गई है। इससे बीमारियों को पहले ही पहचानने, रोकथाम पर ध्यान देने और लंबे समय तक अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलती है। ऐसे कदम दिखाते हैं कि भारत लगातार उस दिशा में बढ़ रहा है, जहां श्रमिक कल्याण और आर्थिक दक्षता एक-दूसरे को मजबूत बनाते हुए साथ-साथ आगे बढ़ते हैं।
कार्यबल का औपचारीकरण और आर्थिक स्वायत्तता श्रम संहिताएं औपचारिक रोजगार को आत्मनिर्भर भारत की प्रमुख ताकत मानती हैं। नियुक्ति पत्र देना, समय पर वेतन भुगतान करना और श्रमिक तथा कर्मचारी की स्पष्ट कानूनी परिभाषा तय करना। ये सब रोजगार संबंधों में पारदर्शिता, स्थिरता और जिम्मेदारी को मजबूत बनाते हैं। काम पर आते-जाते समय होने वाली दुर्घटनाओं को भी अब औपचारिक रूप से सुरक्षा दायरे में शामिल किया गया है।
यह भारत के श्रमिकों की बदलती गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए कल्याण कवरेज को काफी बढ़ाता है। इन प्रावधानों से औपचारिक श्रम बाज़ार मजबूत होता है और लाखों श्रमिकों को दस्तावेज, सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है। यह भारत के व्यापक लक्ष्य-समावेशी और टिकाऊ आर्थिक विकास की दिशा में एक बड़ा योगदान है। कौशल, पुनः कौशलीकरण और आवाज वर्कर री-स्किलिंग फंड एक दूरदर्शी कदम है, जो बदलते हुए श्रम बाज़ार में श्रमिकों को नए हालात के अनुसार खुद को ढालने में मदद करता है। यह फंड श्रमिकों को नए कौशल सीखने(री-स्किलिंग) और बेहतर कौशल विकसित( अप-स्किलिंग) करने में सक्षम बनाता है, ताकि वे नवीकरणीय ऊर्जा, आधुनिक विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और डिजिटल सेवाओं जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए तैयार हो सकें। सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक बनाकर, परिभाषाओं को आधुनिक बनाकर और नियमों को सरल करके, नई श्रम संहिताएं भारत को आधुनिक श्रम शासन के क्षेत्र में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करती हैं।
अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं-जैसे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन , अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक भी इन सुधारों के महत्व को मान चुकी हैं। इन संहिताओं से महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ती है, जिससे देश की आर्थिक क्षमता का बड़ा हिस्सा खुलता है। श्रम संहिताओं का लागू होना भारत की विकास यात्रा के एक नए चरण की शुरुआत है। ये सुधार श्रम की गरिमा को बढ़ाते हैं, एमएसएमई शक्ति को मज़बूत करते हैं, महिलाओं को सशक्त बनाते हैं, प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करते हैं और कल्याण-उन्मुख श्रम ढांचे को सुदृढ़ करते हैं। ये सुधार आत्मनिर्भर भारत की सोच को दर्शाते हैं, विकसित भारत 2047 की ओर प्रगति को तेज करते हैं और ऐसा श्रम तंत्र बनाते हैं जो मजबूती, समानता और अवसरों पर आधारित हो।
(लेखक, नेशनल फ्रंट ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। )

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