Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

साहिबजादों और माता गुजरी जी की लासानी शहादत

शायद ही कोई माता-पिता होंगे जो अपने बच्चों को देश और धर्म के नाम पर कुर्बान कर दें।

11:30 AM Dec 25, 2024 IST | Sudeep Singh

शायद ही कोई माता-पिता होंगे जो अपने बच्चों को देश और धर्म के नाम पर कुर्बान कर दें।

इस संसार में शायद ही कोई ऐसे माता-पिता होंगे जो अपने बच्चों को देश और धर्म के नाम पर कुर्बान कर दें। गुरु साहिब ने दो बड़े पुत्र बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह को चमकोर की जंग में दुश्मनों से लड़ने के लिए स्वयं तैयार करके भेजा ताकि कोई यह ना कह सके कि गुरु जी ने सिखों के बच्चों को तो मरवा दिया पर अपने बच्चों पर आंच नहीं आने दी। दोनों साहिबजादों ने जंग के मैदान में लड़ते-लड़ते शहादत हासिल की। अकेले बाबा अजीत सिंह जी को 376 तीर लगे। छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह जिनकी उम्र 9 और 7 साल की थी उन्हें जालिमों ने सरहिन्द की दीवार में जिन्दा चिनवा दिया। सरहिन्द की दीवारें आज भी उन पलों की गवाही भरती हैं जब माता गुजरी जी और साहिबजादों को कड़ाके की सर्दी में ठण्डे बुर्ज में कैद करके रखा गया। साहिबजादों को तरह-तरह के लोभ लालच दिये गये, पर वह अपने निश्चय पर अडिग रहे और अन्त में शहादत का जाम पी गये। भाजपा पश्चिमी जिले के नेता रविन्दर सिंह रेहन्सी की माने तो देशवासियों को क्रिसमस तो याद रहता है, पर साहिबजादों की शहादत के इतिहास से देशवासी अन्जान ही रहे मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से आज देश का बच्चा-बच्चा भले ही किसी भी धर्म से सम्बन्ध क्यों ना रखता हो उसे गुरु गोबिन्द सिंह, साहिबजादें और माता गुजरी जी की शहादत की जानकारी मिली है, अभी भी इस पर और कार्य करना बाकी है जिसके चलते सिख संस्थाओं और बुद्धिजीवियों को चाहिए कि सरकार के साथ मिलकर इस मुहिम को आगे बढ़ाया जाये और हर साल शहीदी दिनों में देशभर में कार्यक्रम किये जायें मगर साथ ही इस बात का ध्यान भी रखा जाए कि सिख धर्म में किसी भी व्यक्ति को साहिबजादों का रूप नहीं दिया जा सकता केवल उनके चित्र ही दिखाए जा सकते हैं।

हरियाणा गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के चुनाव हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी जो कि 2014 में विस्तार में आई थी। इससे पहले हरियाणा के गुरुद्वारों का प्रबन्ध शिरोम​णि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अधीन ही आता था मगर हरियाणा के सिखों की मांग पर इसका गठन किया गया तब से लेकर समिति का संचालन सरकार द्वारा मनोनीत सदस्यों द्वारा किया जाता रहा। 19 जनवरी को चुनावों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक क्षेत्रों में गतिविधियां तेज हो गई हैं। संत बाबा बलजीत सिंह दादूवाल जो कि पहले भी सरकार की ओर से मनोनीत होकर कमेटी के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल चुके हैं उनके द्वारा शिरोम​णि अकाली दल आजाद के नाम से नई पार्टी बनाकर सभी 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की गई है। देखा जाए तो धार्मिक कमेटियों का प्रबन्ध धार्मिक शख्सीयतों को ही संभालना चाहिए। संत बाबा बलजीत सिंह दादूवाल ने साफ किया है कि उनकी पार्टी केवल अमृतधारी सिखों को ही टिकट देगी और भविष्य में किसी भी तरह का राजनीतिक चुनाव उनकी पार्टी के द्वारा नहीं लड़ा जाएगा।

मगर दूसरी ओर चुनाव आयुक्त सेवानिवृत एच. एस. भल्ला ने उनकी पार्टी को पंजीकृत करने से इन्कार कर दिया जिसके चलते उन्हें माननीय हाईकोर्ट का सहारा लेना पड़ा है। चुनाव आयुक्त का यह निर्णय हालांकि प्रशंसनीय है कि धार्मिक पार्टी ही धार्मिक चुनाव लड़े मगर इस आधार पर पार्टी को पंजीकृत ना करना कि उसके साथ शिरोम​णि या अकाली लगा है यह किसी भी आधार से सही नहीं माना जा सकता। इसी के विरुद्ध दादूवाल की पार्टी ने आवाज उठाते हुए इसका डटकर विरोध किया जबकि सूत्रों की मानें तो बादल अकाली दल सहित अन्य ने तो सरकार के घुटने टेकते हुए नई धार्मिक पार्टियां बनाकर मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया है। इससे साफ हो जाता है कि लम्बे समय तक कौम की पंथक पार्टी के तौर पर नुमाईंदगी करने वाला अकाली दल आज पूरी तरह से अपनी पंथक सोच की तिलांजलि दे चुका है। इसी के चलते हरियाणा के सिखों को दादूवाल की पार्टी से काफी उम्मीदें लग रही हैं। गुड़गांव सीट से परमजीत सिंह चंडोक के सुपुत्र प्रभजोत सिंह चंडोक चुनाव लड़ने जा रहे हैं उनका मानना है अगर उनकी पार्टी को सरकार से मान्यता मिलती है फिर तो एक ही सिम्बल पर चुनाव लड़ा जाएगा अन्यथा हर सीट पर अलग सिम्बल पर आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ना पड़ सकता है।

आखिरकार इन्दौर सिंह सभा की कमेटी ने संभाला चार्ज इन्दौर में 3 ऐतिहासिक गुरुद्वारों के अलावा 33 अन्य गुरुद्वारा साहिब भी हैं जिसकी देखरेख सिंह सभा इन्दौर के द्वारा की जाती है मगर पिछले कुछ समय से यहां जो कमेटी काबिज थी उसके द्वारा पूरी कोशिश की गई कि चुनाव हो ही नहीं। हाईकोर्ट में 6 बार केस किया गया जिसमें हर बार मौजूदा कमेटी को निराशा ही हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट में भी 2 बार सुनवाई के बाद आखिरकार चुनाव करवाने का निर्देश जारी हुआ जिसके बाद चुनावों में हरपाल सिंह मोनू भाटिया की समूची टीम ने विजय हासिल की। हालांकि श्री अकाल तख्त साहिब के द्वारा भी बीते दिनों इस सम्बन्ध में आदेश जारी किया गया था, पर उसकी भी पूरी तरह से अनदेखी कर दी गई। चुनाव टालने के लिए मौजूदा कमेटी की क्या मंशा हो सकती है कहा नहीं जा सकता मगर धार्मिक कमे​टियों में चुनाव टलवाने के लिए गुरु की गोलक के पैसों की बर्बादी करते हुए कोर्ट कचहरियों का सहारा लेना किसी भी तरह से जायज नहीं है इस पैसे से जरूरतमंदों की भलाई के कार्य किये जा सकते हैं। नवनियुक्त कमेटी के मुखिया हरपाल सिंह मोनू भाटिया जिनके पीछे युवाओं की एक जबरदस्त टीम कार्यरत है।

इतना ही नहीं खालसा कालेज मुम्बई, फतेहगढ़ साहिब यूनिवर्सिटी, चीफ खालसा दीवान, सचखण्ड हजूर साहिब, केन्द्रीय गुरु सिंह सभा मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ सहित अनेक धार्मिक संस्थाओं में सेवा निभाने के साथ-साथ तख्त पटना साहिब में एसोसिएट सदस्य के तौर पर सेवा निभा चुके हैं। इन्दौर के मशहूर दिल्ली कालेज की गवर्निंग बॉडी में सेवा निभाते हुए उन्होंने काफी तर्जुबा हासिल किया और उसके आधार पर एजुकेशन सिस्टम में सुधार लाने हेतु अनेक कार्य होने की संभावना है। कार्यभार संभालते ही उनके द्वारा सेवादारों की तनख्वाह में 30 प्रतिशत की बढ़ौतरी कर दी गई है और उनके बच्चों सहित इन्दौर के जरूरतमंद सिख परिवारों के बच्चों को मुफ्त एजुकेशन देने को भी मंजूरी दी गई है। उनके अपने पारिवारिक फण्ड से हर वर्ष 5 बच्चों को सिविल सर्विसिज की पढ़ाई करवाई जाती है ताकि ज्यादा से ज्यादा सिख बच्चों को उच्च पदों पर बिठाया जा सके। वास्तव में अगर सभी धार्मिक संस्थाओं में प्रबन्धक ऐसी सोच वाले हो जाएं तो निश्चित तौर पर कौम तरक्की की राह पर अग्रसर हो सकती है। अकालियों को आखिर भाजपा से एलर्जी क्यों होने लगी शिरोम​णि अकाली दल ने भाजपा के साथ लम्बे समय तक एक साथ रहते हुए पंजाब और पंजाब से बाहर ना सिर्फ कई चुनाव लड़े बल्कि पंजाब की सत्ता भी अकालियों को सफलता भाजपा की बदौलत ही मिलती रही क्योंकि जहां सिख वोटरों पर अकाली दल की पकड़ थी तो वहीं शहरों में बसते हिन्दू वोटर भापजा के सम्पर्क में रहते।

केन्द्र में भाजपा के सत्ता में आने पर अकालियों ने मं​त्रिमण्डल में भी खूब मौज ली। फिर अचानक भाजपा से ऐसा मोह भंग हुआ कि आज भाजपा का नाम भी अकाली सुनने को तैयार नहीं हैं। श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह पर की गई कार्यवाई के पीछे भी अकालियों की यही सोच काम कर रही है क्याोंकि ज्ञानी हरप्रीत सिंह जो कि शायद सभी पांचों जत्थेदारों में से सबसे अधिक सूझवान माने जाते हैं और उन्हें जत्थेदारी का तर्जुबा भी काफी अधिक है। उन्होंने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के पद पर रहते कौम के अनेक मसलों का निवारण गंभीरतापूर्वक किया और सुखबीर सिंह बादल पर की गई कार्यवाई में भी उनका अहम रोल माना जाता है जो कि अकालियों को रास नहीं आया और इसी के चलते उनकी सेवाएं वापिस ली गई। मगर वहीं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी सहित अनेक धार्मिक संस्थाओं और आम सिख संगत ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह के समर्थन में आकर शिरोम​णि कमेटी अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी और अकालियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। आने वाले दिनों में अगर ज्ञानी हरप्रीत सिंह को पूरी तरह से जत्थेदारी के पद से हटाया जाता है तो पहले से ही संगत के रोष का सामना करने वाले अकाली दल को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

Advertisement
Advertisement
Next Article