For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

सुखद नहीं रहा बीता सप्ताह

12:57 AM Nov 20, 2023 IST | Dr. Chander Trikha
सुखद नहीं रहा बीता सप्ताह

वैसे बीता सप्ताह राष्ट्रीय स्तर पर दुखद घटनाओं और कुछ अति चर्चित शख्सियतों की विदायगी का सप्ताह रहा, मगर इनमें सबसे बड़ी क्षति कला के क्षेत्र में अनूठी इबारत लिखते रहने वाले डॉ. बीएन गोस्वामी के निधन से जुड़ी थीं। पूरे विश्व में चित्रकला व कला के अलावा उर्दू अदब पर कलात्मक टिप्पणियां करने वाले डॉ. बीएन गोस्वामी ने 90 वर्ष की उम्र में चंडीगढ़ के पीजीआई में अंतिम सांस ली। पद्मभूषण से सम्मानित डॉ. गोस्वामी ने कला-विषय पर 26 पुस्तकें लिखीं और उनके हर निष्कर्ष को कलाकारों ने सदा ब्रह्मवाक्य माना। उनके मुख से यदि किसी भी कलाकार को प्रशंसा के दो शब्द सुनने या भूमिका के रूप में मिल जाते थे तो कलाकार उसे भी एक विशिष्ट उपलब्धि मानते थे।
यद्यपि 1956 में वह आईएएस में चले गए थे मगर दो वर्ष बाद ही कला की दुनिया में लौट आए। पंजाब विश्वविद्यालय में कला विभाग की स्थापना व संवर्द्धन का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। वह इस विभाग के ‘एमायरेट्स प्रोफेसर’ रहे और हर सप्ताह नियमित रूप से कला का एक स्तम्भ दैनिक समाचार-पत्रों में देते थे। वह संस्कृत, फारसी, उर्दू, जर्मन, अंग्रेजी व हिंदी के मर्मज्ञ विद्वान थे और इन सभी भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी। शायद भारतीय कला के इतिहास में उनका निधन लम्बे समय तक अपूरणीय क्षति बना रहेगा। ‘मिनिएचर आर्ट’ व पहाड़ी चित्रकला के शायद सबसे बड़े मर्मज्ञ थे डॉ. गोस्वामी।
इसी सप्ताह में कुछ अन्य चर्चित शख्सियतों ने भी इस संसार को अलविदा कहा। इनमें ओबेराय ग्रुप के विक्की ओबराय, सहारा ग्रुप के सुब्रत राय भी अपने-अपने कारणों से चर्चा में रहे। विक्की ओबराय की चर्चा उनकी समृद्ध विरासत से जुड़ी रही जबकि सुब्रत राय को उनके संस्थान की विविधताओं, उनकी कुछ अनूठी उपलब्धियों एवं कतिपय विवादों के संदर्भ में याद किया गया। मगर विकास एवं प्रगति का इतिहास इन दोनों के साथ भी चर्चा में बना रहा। विशाल ओबराय-ग्रुप के संस्थापक एमएस ओबेराय ने भी अपनी जिन्दगी की शुरुआत 50 रुपए मासिक की नौकरी से की थी। मगर उनकी प्रगति ‘डीप ‘फेक’ का सोपान कड़े श्रम, लग्न व साफ-सुथरी छवि वाला ही रहा।
इन तीनों शख्सियतों के अलावा जिस विषय पर सर्वाधिक चर्चा हुई, वह था ‘डीप फेक’ और ‘एआई (आर्टफिशियल इंटेलिजेंस)’ से उत्पन्न सोशल मीडिया के नए खतरनाक स्वरूप के बारे। चाहे कितनी भी आप नेकी कर लें, आपको ‘हीरो से ज़ीरो’ बनाने में ‘डीप फेक’ विशेषज्ञों को ज्यादा समय नहीं लगेगा। चलिए जाने वाली शख्सियत की विरासत व अतीत में झांक लें।
यह वर्ष 1922 की बात है। शिमला में तब एक बहुचर्चित होटल था ‘सेसिल’ (सीसिल भी कहा जाता है)। इसी होटल में पहली बार एमएस ओबराय को 50 रुपए प्रति माह की नौकरी मिली थी। एमएस यानी मोहन सिंह ओबराय की ईमानदारी, काम के प्रति निष्ठा, संस्थान के प्रति समर्पण भाव से होटल-मालिक अर्नेस्ट क्लार्क और उनकी पत्नी बेहद प्रभावित थे। बाद में इसी होटल का नाम पहले होटल कार्लटन और फिर ‘क्लार्क होटल’ हो गया। यही क्लार्क होटल मोहन सिंह ओबेराय की ‘होटल’ जि़ंदगी का प्रशिक्षण केंद्र बना और अपनी लग्न व योग्यता से मोहन सिंह इसी होटल की ‘बुकिंग’ (जिसे होटल भाषा में ‘आक्यूपैंसी’ भी कहा जाता है) को 80 प्रतिशत तक ले गए।
इसी मध्य भारत में स्वाधीनता-संग्राम से उत्पन्न स्थितियों के दृष्टिगत क्लार्क दम्प​ित ने ब्रिटेन लौटने का निर्णय लिया और उन्होंने होटल का पूरा प्रबंधन अपने विश्वस्त मोहन सिंह ओबराय को कुछ निश्चित राशि नियमित रूप से भेजने की शर्त के साथ सौंप दिया। धीरे-धीरे पूरा स्वामित्व भी दे दिया गया और अपनी दूरदर्शिता, सूझबूझ व कड़ी मेहनत से मोहन सिंह शीघ्र ही भारतीय होटल उद्योग का एक चर्चित चेहरा बन गए।
इन्हीं दिनों ‘एमएस’ ने राजनीति में भी रुचि लेना आरंभ कर दिया। अप्रैल 1968 से वह झारखंड पार्टी के टिकट पर हज़ारीबाग लोकसभा क्षेत्र से चुनावी संग्राम में कूदे और भारी बहुमत से निर्वाचित भी हो गए। वह दिसम्बर 1972 तक सांसद रहे हालांकि इससे पहले भी अप्रैल 1962 से 1968 तक और 1972 से 1978 तक वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे।
इस भरे पूरे परिवार के वंशज पृथ्वीराज सिंह ओबराय उर्फ विक्की ओबराय के हाल ही में निधन के समय सभी पुराने प्रसंग चर्चा में आ गए। साथ ही स्मरण हो आया, बहुचर्चित सांसद पीलू मोही का, जो राजनीति में सक्रियता के साथ-साथ एक बेजोड़ ‘आर्किटेक्ट’ भी माने जाते थे। ओबेराय शृंखला का नई दिल्ली वाला होटल व कुछ अन्य संस्थानों के आर्किटेक्चर भी पीलू मोही ही थे। पीलू स्वतंत्र पार्टी के भी एक प्रमुख नेता थे और संस्थापकों में से एक थे। बाद में पाक प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो पर लिखित उनकी पुस्तक ‘जुल्फी माई फ्रैंड’ भी अपने समय की ‘बेस्टसेलर’ मानी जाती थी।
पीलू मोदी, भुट्टो की भारत-विरोधी नीतियों के मुखर आलोचक भी थे मगर निजी संबंधों में वह राजनैतिक दखल के पक्षधर भी नहीं थे। इसी मध्य ओबराय परिवार से उनकी नज़दीकियां बढ़तीं गईं लेकिन पीलू व ओबराय अलग-अलग दलों में रहते हुए भी निजी संबंधों और व्यावसायिक कामकाज को कभी गडमड नहीं करते थे। आपातकाल के दिनों में पीलू को गिरफ्तार कर लिया गया था मगर उनके स्वास्थ्य व खानपान की व्यवस्था से ओबराय परिवार जुड़ा रहा था। इससे पहले पीलू 1967 व 1971 और 1977 तक लोकसभा के लिए निर्वाचित होते रहे। आज भी कटक (उड़ीसा) में ‘पीलू मोदी कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर’ स्थापित हैं। यहां यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि पीलू एक वरिष्ठ आर्किटेक्ट के रूप में चंडीगढ़ के ‘कैपीटल प्रोजेक्ट’ से भी जुड़े रहे थे।
उधर, ओबराय का प्रगतिकाल भी निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर रहा। अब इस परिवार की होटल शृंखला में लगभग 30 होटल हैं और पांच ‘लक्जरी-क्रूज़र’ का प्रबंधन व स्वामित्व भी है। इस उद्योग समूह में लगभग 14 हजार कर्मचारी एवं अधिकारी कार्यरत हैं। इतने विशाल साम्राज्य के बावजूद ओबराय परिवार गुरुद्वारों की सेवा में भी एक विनम्र श्रद्धालु के रूप में जुड़ा रहा है।

डॉ. चंद्र त्रिखा
chandertrikha@gmail.com

Advertisement
Advertisement
Author Image

Dr. Chander Trikha

View all posts

Advertisement
×