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गंगा को अविरल बहने दो...

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11:22 PM Jul 14, 2017 IST | Desk Team

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गंगा आये कहां से, गंगा जाये कहां रे,
आये कहां से, जाये कहां रे,
लहराये पानी में जैसे धूप-छांव रे,
रात कारी दिन उजियारा मिल गये दोनों साये,
लहराये पानी में जैसे धूप-छांव रे॥
गंगा अन्य नदियों की तरह एक भौगोलिक नदी मात्र नहीं है। वह सुरसरि है, भागीरथ के प्रयत्न की सफल अमृतधारा है। वह सतत् प्रवाहिनी और सदानीरा भी है और इन सबसे बढ़कर वह हर पीढ़ी की, हर एक की मां भी है। इसीलिए गंगा पवित्र है, पूज्य है। गंगा भारतीय संस्कृति का गौरव ही नहीं, आधार भी है। यह नदी-घाटी सभ्यता की जननी तो है ही, अपितु सभ्य समाज की पोषक भी है। वह भौतिक समृद्धि का प्राकृतिक संसाधन होने के साथ आध्यात्मिक उन्नति का भी साधन है। गंगा के पावन तट केवल श्रद्धालुओं की आस्थामयी डुबकियों से ही जीवंत रहे हैं। वे विभिन्न प्रकार के साधकों की साधनस्थली भी बने हैं। जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास ने कहा था-”रामभक्ति जहं सुरसरि धारा, सरसई ब्रह्म विचार प्रवाहा।” पर्वत राज हिमालय के अन्त:स्थल से निकली यह नदी भारत के कई राज्यों को संजीवनी प्रदान करती हुई बंगाल की खाड़ी में अन्तलीन हो जाती है। गंगा की तरलता ऊर्जादायी, निर्मलता, शांतिदायी और अविरलता वरदायी है। हम गंगा की पूजा करते हैं परन्तु यह हमने क्या कर दिया, हमने खुद ही इसे विषाक्त बना दिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल ही में इस्राइल गए थे। उन्होंने इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ समुद्र में उतर कर उसका फिल्टर किया पानी भी पीया था। उनका फोटो समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था। उस दिन मैं सोच रहा था कि काश! हम भी ऐसा कर सकते। गंगा का जल आचमन करने लायक नहीं बचा। गंगा इस समय दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है। इसमें रोजाना टनों सीवेज तथा औद्योगिक कचरा फैंका जाता है। बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों से बिल्कुल साफ जलस्रोत के रूप में शुरू होने वाली गंगा अलग-अलग भीड़ भरे औद्योगिक और गैर-औद्योगिक शहरों से गुजरती है। प्रदूषण और करोड़ों श्रद्धालुओं द्वारा जरूरत से ज्यादा प्रयोग के चलते गंगा विषाक्त कीचड़ में बदल चुकी है। इसमें रोजाना फैंके जाने वाले 480 करोड़ लीटर सीवेज में से एक चौथाई से भी कम का ट्रीटमेंट हो पाता है। औद्योगिक नगरी कानपुर में पुलों के नीचे बहती गंगा का रंग सलेटी हो चुका है।

जैव विविधता के कारण संकट गहरा हो चुका है। 7 जुलाई 2016 को केन्द्र सरकार ने फ्लैगशिप योजना नमामि गंगे को मंजूरी दी थी। इस पर 20 हजार करोड़ खर्च किए जाएंगे। इस योजना की शुरूआत हरिद्वार, वाराणसी में की जा चुकी है। देश की 40 फीसदी जनसंख्या गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयार्क के मेडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था ”अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अत: गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है।” नमामि गंगे परियोजना के तहत काम चल रहा है। सरकार 7 करोड़ से अधिक रुपए खर्च कर चुकी है लेकिन गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। इसी बीच राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने फैसला सुना दिया है और उसने गंगा नदी के किनारे 100 मीटर की दूरी तक ‘नो डेवलपमेंट जोन’ भी घोषित किया है।

अगर कोई कचरा डालेगा तो उसे 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। इतना ही नहीं अधिकरण ने हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा को निर्मल बनाने के लिए टेनरियो को स्थानांतरित करने के आदेश भी दिए हैं। एनजीटी ने उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश सरकारों को कहा है कि वह सुनिश्चित करें कि गंगा के किनारों खासकर घाटों पर स्वच्छता को लेकर तय किए गए नियमों का कड़ाई से पालन हो। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत स्वयं गंगा के उपासक हैं। गंगा की पवित्रता और अविरलता को बनाए रखने का दायित्व सरकारों पर है लेकिन ऐसा तब सम्भव होगा जब जनता इसमें भागीदार बने।

इस परियोजना की सफलता प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में तो निहित है, साथ ही जनता का भरपूर सहयोग भी जरूरी है। यदि गन्दे नाले में परिवर्तित लन्दन की टेम्स नदी शुद्ध बन सकती है तो फिर गंगा भी प्रदूषणमुक्त हो सकती है। करीब 58 साल पहले इस नदी को जैविक रूप से मृत घोषित कर दिया गया था लेकिन ब्रिटेन के राजकाज और समाज के प्रयासों से आज यह नदी पर्यावरणीय सफलता की कहानी कह रही है। कोई कारण नहीं कि हम गंगा को स्वच्छ नदी बना सकें। जरूरत है दृढ़संकल्प की। जिस दिन मानव नदियों से, प्रकृति से छेड़छाड़ करना बन्द कर देगा उसी दिन समस्या सुलझ जाएगी। आइए इसके लिए सामूहिक प्रयास करें। गंगा को अविरल बहने दो।

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