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दादा-दादी की पाती पोते-पोती के नाम

मेरे प्यारे बच्चों, बहुत दिनों से तुम सबको एक पत्र लिखने …

11:10 AM Dec 10, 2024 IST | Vijay Maru

मेरे प्यारे बच्चों, बहुत दिनों से तुम सबको एक पत्र लिखने …

दादा दादी की पाती पोते पोती के नाम

मेरे प्यारे बच्चों, बहुत दिनों से तुम सबको एक पत्र लिखने की सोच रहा था। और कार्यों में व्यस्त होने के कारण कुछ देर हो गई। तुम सोच रहे होंगे कि दादाजी को इतनी व्यस्तता क्या आ पड़ी कि एक पत्र लिखने में इतना समय लगा दिए। तुम्हें जानकर खुशी होगी कि मैं इस आयु में भी अपने आप को खूब बिजी रखता हूं। मैंने तो एक अभियान आरंभ किया है – नेवर से रिटायर्ड। हम बुजुर्गों को भी कभी रिटायर होना ही नहीं चाहिए, कुछ न कुछ कार्य में लगे रहना चाहिए तभी हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहेंगे। अच्छा स्वास्थय ही सफलता की सही कुंजी है।

अच्छा चलो, तुम लोगों का सब कुछ कैसा चल रहा है। मम्मी तो तुम्हारी पढ़ाई के पीछे ही पड़ी होगी कि कैसे तुम अपनी क्लास में टॉप थ्री में आओ। और मैं भी यही चाहता हूं कि अच्छा परफॉर्मेंस तुम्हारा होना चाहिए। हां, पढ़ाई के साथ-साथ लाइफ स्किल्स भी जरूर सीखते रहो, आगे बहुत काम आएंगे। एक बात और, अच्छी कम्यूनिकेशन की कला सीखने पर भी विशेष ध्यान देना। जब हम बड़े हो गए और काम करने लगे तब हमें कोई यह नहीं पूछता था कि हम कितने नंबर स्कूल फाइनल में लाये थे- सामने वाला व्यक्ति तो हमारे ज्ञान की परख लेता है और साथ में अगर हमें अपनी बात को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना आ गया तो जीवन में सफलता जरूर मिलेगी।

आज तुम्हें तो घर पर तुम्हारी मम्मी पढ़ाई करवा देती है। हमारे समय में तो हमारे पेरेंट्स कम ही पढ़े-लिखे होते थे। स्कूल की पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ पढ़ाई करने के लिए हमें स्कूल के या पड़ोस में रह रहे मास्टरजी के पास ट्यूशन के लिए भेज दिया जाता था। उनसे हमें घरेलू काम और अच्छे संस्कारों की भी शिक्षा मिलती थी। कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए भी बड़े भाई या पड़ोस के परिवार के भैय्या लोगों से सहयोग लेते थे। हममें से कम ही लोग होते थे जो ग्रेजुएशन करने के बाद बहुत ज्यादा पढ़ पाते थे, कारण जीविकोपार्जन करने में लग जाना जरूरी हो जाता था। इस कारण छोटी आयु में ही पिता जी के साथ दुकान जाना या ऑफिस की शिक्षा दी जाती थी। लेकिन आज, बच्चों तुम्हारे पास बहुत ऑप्शन्स हैं। बहुत सोच समझकर अपने केरियर के विषय में आज से ही विचार करना आरंभ कर देना।

हम लोगों के पास आज जैसी सहुलियत उपलब्ध नहीं होती थी। गाडिय़ां भी बहुत कम परिवार में होती थी। स्कूल हम लोग पैदल जाते थे या साइकिल पर बड़े छोड़ आते थे। ट्रेफिक न के बराबर होने के कारण पैदल जाना भी काफी सुरक्षित होता था और पॉल्यूशन भी परेशान नहीं करता था। तुम सबके लिए तो स्कूल बस आ जाती हैं और कुछ बच्चों को तो उनकी गाड़ी छोडऩे आती है।

तुम सब इतने समझदार हो कि इस पॉल्यूशन से छुटकारा पाने का हल तुम्हें स्वयं ही ढूंढऩा होगा। इसका दुष्प्रभाव जो सेहत पर पड़ रहा हैं उससे तुम भली-भांति परिचित हो। पिछले सप्ताह ही मैं भारत की राजधानी दिल्ली के विषय में एक समाचार पढ़ रहा था कि वहां की हवा इतनी प्रदूषित है जैसे कि एक व्यक्ति कोई चालीस सिगरेट रोज पी रहा हो। स्कूल तो बंद तक करने पड़ गए हैं। तुम सबको बहुत गहराई से इस समस्या का समाधान ढूंढऩा होगा। सेहत ठीक रहेगी तभी तो काम कर सकोगे, मस्ती कर सकोगे।

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Vijay Maru

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