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पहाड़ों का सीना चीरकर जिंदगी बाहर आई..

01:25 AM Dec 02, 2023 IST | Shera Rajput
पहाड़ों का सीना चीरकर जिंदगी बाहर आई

12 नवंबर दीपावली के दिन सुबह सूर्योदय से पहले ही जो समाचार मिला, पूरे देश के लिए चिंताजनक, हर सहृदय व्यक्ति के हृदय को छूने वाला। पूरे राष्ट्र के लिए एक चुनौती। उत्तर काशी से यमनोत्तरी के मध्य बन रही सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन होने से 41 श्रमिक फंस गए। पूरा देश दीपावली की खुशियां भूलकर इन श्रमिकों के लिए प्रार्थना करने लगा। भारत सरकार, उत्तराखंड सरकार सक्रिय हुई तथा देश की बीस एजेंसियों ने मिलकर इन श्रमिकों को बचाने के लिए अभियान शुरू किया। जैसे-जैसे एक-एक दिन बीतता, वैसे ही हम सबकी उत्सुकता बढ़ जाती और यह अहसास होने लगता कि हमारे श्रमिक किस प्रकार से वहां समय काट रहे हैं, पर ये श्रमिक भी भारत की खास मिट्टी के बने निकले। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ जब उन्होंने सुरंग से कोई निराशाजनक बात की हो और उनकी निराशा के बादल छांटने के लिए भारत सरकार सहित सभी वे लोग लगे रहे जो सुरंग से जिंदगी की जंग जीतने के लिए पूरे आत्मबल के साथ और विश्वास के साथ लगे थे। सुरंग में बात भी होने लगी, आक्सीजन भी पहुंचा दी।
धीरे-धीरे पीने का पानी, सूखे मेवे और कुछ खाने के लिए भी पहुंच गया और फिर श्रमिकों की आवश्यकता, बड़ी पाइप का सुरंग में पड़ जाना, डाक्टरों की सलाह के साथ भोजन भी पहुंचा। खेलने के लिए लूडो, ताश, शतरंज आदि का प्रबंध भी सुरंग में हो गया। करिश्मा तो तब हो गया जब टेलीफोन की लैंडलाइन भी अंदर पहुंची और अंदर फंसे श्रमिक जिंदगी से बात करने लगे। जहां इन श्रमिकों का आत्मबल अद्भुत रहा वहीं उनके परिवारों ने ईश्वर की प्रार्थना और आस्था के बल पर कभी निराशा की बात नहीं की। एनडीआरएफ, डीआरडीओ, आईआईटी रुड़की, आईटीबीपी, स्वास्थ्य विभाग वाडिया हिमाचल भूविज्ञान व संस्थान, कौल इंडिया और बीएसएनएल का योगदान भी इस सारे काम में सराहनीय रहा।
भारत सरकार ने जिंदगी को सुरक्षित रखने के लिए अभूतपूर्व काम किया। विदेशों से भी टनल अर्थात सुरंग विज्ञान के विशेषज्ञ बुलाए गए। मशीनरी भी देश विदेश से वहां इकट्ठी हुई और देश का एक भी सुरंग विषय का विशेषज्ञ ऐसा न रहा जो वहां न पहुंचा। बढ़िया बात यह रही कि स्थानीय जनता की अपने देवता बौखनाग के प्रति अटूट आस्था ने भी कमाल कर दिया। जैसे ही मौसम विभाग ने वर्षा की संभावना व्यक्त की, हम सब चिंता में थे। वहां कार्य कर रहे इंजीनियर, मजदूर भी आशंकित हो गए, पर प्रकृति का अद्भुत चमत्कार देखिए हल्की सी वर्षा के बाद एक तरफ चट्टान से जैसे ही मिट्टी खिसक गई वहां से भगवान शंकर की आकृति के दर्शन हुए। नाग देवता प्रकट हुए और एक बाबा जी जो वहां पूजा कर रहे थे उन्होंने तो मानो चमत्कारिक घोषणा कर दी कि अब कोई भी श्रमिकों के जीवन को हानि नहीं पहुंचा सकता। सब सुरक्षित रहेंगे।
मेरे जैसे असंख्य लोग ऐसे हैं जिन्होंने कभी रैट माइनर्स का नाम ही नहीं सुना था जब ड्रिलिंग मशीन के ब्लेड टूट गए और मशीन काम न कर सकी तब भारत के ये बेटे रैट माइनर्स वहां पहुंचे और इन्होंने हाथों से साधारण औजारों के साथ सारा काम पूरा कर दिया। यह सब लिखने का एक विशेष उद्देश्य है। यह कमाल इसलिए हो सका क्योंकि पूरा भारत एक होकर इन श्रमिकों का जीवन बचाने में लग गया और यह भी तभी हो सका क्योंकि हमारा देश स्वतंत्र है। स्वतंत्र भारत में एक-एक जीवन का महत्व है। जरा तुलना करके देखिए अंग्रेजी राज में अर्थात जब हम गुलाम थे तो भारतीयों की जिंदगी का क्या मूल्य था। बंगाल का अकाल कितना भयानक था। पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लगभग तीस लाख लोगों ने तड़प तड़प कर जान दे दी। यह द्वितीय विश्व युद्ध का समय था। अंग्रेजी सरकार ने तो यह कह दिया कि युद्ध के कारण अनाज का उत्पादन घटा है। वास्तविकता यह रही कि बंगाल से सरकार अनाज का निर्यात कर रही थी।
इसी तरह अंग्रेजी राज्य में ही भारत में हैजा फैला, प्लेग फैला। किसी का भी जीवन बचाने के लिए अंग्रेजों ने कोई सार्थक प्रयास नहीं किया। वैसे भारत में प्लेग के संबंध में यह कहावत थी कि प्लेग सिंधू नदी नहीं पार कर सकता, पर 19वीं शताब्दी में प्लेग ने भारत पर आक्रमण किया। गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ से लेकर हैदराबाद, सिंध, अहमदाबाद पर पूरी तरह प्लेग का आक्रमण हो गया। दक्षिण की ओर भी प्लेग फैला, पर किसी सरकार के कान तक जूं नहीं रेंगी। कोटा का भूकंप कौन भूल सकता है। यद्यपि यह स्थान अब पाकिस्तान में है पर तब तो हिंदुस्तान था। शासक वही साम्राज्यवादी, जिन्हें हिंदुस्तान से केवल दौलत लूटनी थी और राज करना था। जब इससे तुलना करें तो स्वतंत्र भारत में जब कोरोना फैला तो हमारे प्रधानमंत्री स्वयं देशवासियों से बात करते रहे। ऐसी वैक्सीन बनाई जिसने देश के साथ दुनिया को राहत दी।
कोरोना के कारण लोग बेकार हुए। आज तक गरीब लोगों को भारत सरकार राशन दे रही है। अस्सी करोड़ लोगों को राशन देना अपनी ही सरकार का काम है। कहीं भूकंप आ जाए, बाढ़ आ जाए, सूखा पड़ जाए तो प्रदेश सरकार के साथ ही केंद्र सरकार सक्रिय होती है। देश के किसी एक कोने में आतंकवाद का कहर पड़े तब भी भारत सरकार ही चिंता करती है। आतंकवाद के दिनों में जब पंजाब आतंकवाद की आग में जल रहा था तब भी सेना समेत केंद्रीय बलों को भेजकर पंजाब की चिंता भारत सरकार ने की और आतंकवाद पर विजय पाई गई।
अब ताजा उदाहरण उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग का है। ऐसा प्रबंध किया, अविश्वसनीय था, पर अपनी आंखों से देखकर स्वतंत्र भारत ही स्वतंत्रता पर गौरव होता है। देश के वैज्ञानिक, इंजीनियर, टनल विशेषज्ञ, देशी विदेशी टनल साइंस के विद्वान, जनरल वीके सिंह सभी वहां उपस्थित रहे। डाक्टर भी रहे, इंजीनियर भी रहे, मनोवैज्ञानिकों ने भी श्रमिकों का साहस मानसिक बल बढ़ाकर रखा। सबसे बड़ी बात स्वयं प्रधानमंत्री सारे बचाव कार्य की स्वयं देखरेख और समीक्षा करते रहे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी वहां डेरा डालकर बैठे। एंबुलेंस, एयर एंबुलेंस, डाक्टर, सुरंग में कैंप अस्पताल अपने लोगों की जिंदगी बचाने के लिए यह वही देश कर सकता है जो स्वतंत्रता की कीमत जानता है। अपने एक एक नागरिक के जीवन को महत्व देता है। इस सारे दृश्य को टीवी से देखने वाले जितने भी लोग रहे कोई ही आंख ऐसी रही होगी जहां आंसू नहीं। जिन हाथों ने ताली नहीं बजाई और प्रधानमंत्री की भावुकता भी महसूस करने की चीज है, शब्दों की नहीं।
मुझे एक दुखद आश्चर्य यह भी है कि क्रिकेट मैच जीतने के बाद सड़कों पर जितनी धूमधाम या ढोल की आवाज अथवा पटाखे चलते हैं उसके लिए हम लोग तरसते रहे। न कोई ढोल, न पटाखे और सड़कों पर कोई नौजवानों के नाचते हुए जुलूस, इसे क्या कहा जाए? यह विचारणीय है।

– लक्ष्मी कांता चावला

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