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अंधेरे में इक दीपक तो जलाएं

अंधेरे और उजाले का संघर्ष सदियों पुराना है। अंधेरा यदि अज्ञान और समाज के एक हिस्से की काली करतूतों का आश्रयदाता मान लिया गया है तो उजाला इससे मुक्ति का मार्ग है।

02:00 AM Apr 05, 2020 IST | Aditya Chopra

अंधेरे और उजाले का संघर्ष सदियों पुराना है। अंधेरा यदि अज्ञान और समाज के एक हिस्से की काली करतूतों का आश्रयदाता मान लिया गया है तो उजाला इससे मुक्ति का मार्ग है।

अंधेरे में इक दीपक तो जलाएं
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अंधेरे और उजाले का संघर्ष सदियों पुराना है। अंधेरा यदि अज्ञान और समाज के एक हिस्से की काली करतूतों का आश्रयदाता मान लिया गया है तो उजाला इससे मुक्ति का मार्ग है। अंधेरे से उजाले की ओर हमारी यात्रा अनवरत जारी है, परन्तु अंधेरा इतना सबल है कि यह मिटता ही नहीं है। हमारे यहां ‘अप्प दीपो भवः’ की कामना की गई है यानी स्वयं अपना दीपक बनो। आज मुझे मुक्ति बोध की कविता याद आ रही है : –
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‘‘मेरे पथ के दीपक पावन मेरा अंतर आलौकित कर, 
यदि तू जलता बाहर उन्मन, अधिक जल मेरे अन्दर।’’
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दीपक की एक काया है, बात्ती है, तेल है और प्रकाश अग्नि है। दीपक अंधकार से लड़ता है। हर मंगल मुहूर्त में दीप प्रज्ज्वलन की परम्परा है। तमस हो तो आंखें काम नहीं करतीं, तब प्रकाश जरूरी हो जाता है।
कोरोना वायरस से उत्पन्न विषम परिस्थितियों ने मनुष्य को अंधकार में धकेल दिया है। धर्म में आस्था रखने वाले धर्मांध लोगों ने अपनी अवैज्ञानिक सोच के चलते पूरे देशवासियों को महामारी के मुंह में धकेल दिया है। कट्टरपंथी लोगों ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए लॉकडाउन के दौरान सरकारी निर्देशों  का पालन नहीं करने के लिए अपने समाज के लोगों को उकसाया और भीड़ इकट्ठी न होने देने के सरकारी आदेशों को अपने धर्म के खिलाफ साजिश करार दिया। धर्म प्रचार का हक भारतीय संविधान ने उन्हें दिया है लेकिन जेहादी मानसिकता के लोग इस बात को समझ ही नहीं रहे ​हैं कि इस समय उन्हें डाक्टरों, नर्सों और हैल्थ कर्मचारियों की जरूरत है, उन्हें देवदूतों की जरूरत है न कि जेहादी विचारधारा की। उन्होंने खुद को तो खतरे में डाला ही बल्कि दूसरों की जिंदगी भी खतरे में डाल दी। लॉकडाउन  के दौरान लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जिन्दगी घर की चारदीवारी में आकर ठहर गई है। दिहाड़ीदार मजदूर परेशानी में हैं, दूसरों के लिए इमारतें खड़ी करने वाले श्रमिक लोगों की मदद पर आश्रित हैं। जीवन में ठहराव आ चुका है, जीवन अगर गतिमान न हो तो मनुष्य स्वयं अवसाद से घिर जाता है। समाज का एक वर्ग ऐसा है जो लॉकडाउन के हर नियम को मान रहा है और  कोरोना वायरस से जंग में एकजुटता का प्रदर्शन कर रहा है, एक वर्ग ऐसा है जो लॉकडाउन के प्रति लापरवाह है। लोगों का रवैया भी किसी वायरस से कम नहीं। डाक्टरों और पुलिस पर हमले, नर्सों से छेड़छाड़ और अशोभनीय हरकतें बताती हैं कि कोरोना वायरस से लड़ने के साथ-साथ हमें समाज में अराजकता फैला रहे वायरसों से भी लड़ना है। हमें उस विचारधारा से जंग लड़नी है जिसके चलते लोग ऐसी हरकतें कर रहे हैं। डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ने लगी है। लोग स्क्रीनिंग सर्वे करने वाले लोगों को संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं। मानो वे ही कोराेना को धरती पर ले आए हों। उनसे बदसलूकी की जा रही है।
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शहरों की मुख्य सड़कों पर तो सन्नाटा दिखाई देता है लेकिन गलियों, बाहरी इलाकों और ग्रामीण क्षेत्रों में जुटने वाली भीड़ पर इस मुश्किल वक्त में भी कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। शहरीकृत गांवों में जरूर लोग गांवों को जाने वाले मार्गों की चौकसी कर रहे हैं ताकि कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश न कर सके। पुलिस की गाड़ी आते ही लोग घरों में चले जाते हैं और गाड़ी जाते ही हालात जस के तस हो जाते हैं। युवा वर्ग तो मौका मिलते ही बाइक लेकर निकल पड़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार सख्ती कर रही है लेकिन इतनी बड़ी आबादी को घरों में बंद रखना भी कोई आसान नहीं है।
अहम सवाल यह है कि ऐसी स्थिति में महामारी का सामना कैसे किया जाए। चुनौती बहुत बड़ी है, इसलिए समाज का सकारात्मक सोच से आगे बढ़ना बहुत जरूरी है। जीवन में आए ठहराव को हमें सामूहिक एकता दिखाकर पराजित करना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समाज में सकारात्मकता पैदा करने के ​लिए ही रविवार 5 अप्रैल को रात्रि 9 बजे 9 मिनट के लिए लोगों से अपने-अपने घरों में रोशनियां बुझाकर दिये, मोमबत्ती और मोबाइल की फ्लैश  लाइट जलाने का आह्वान किया है। प्रधानमंत्री की सोच के पीछे वैज्ञानिकता भी है और मनोवैज्ञान भी है। रामचरित मानस के उत्तरकांड में लिखा गया है-
‘‘सोहमस्मि इति वृत्ति अखंडा,
दीप​शिखा सोई परम प्रचंडा।’’
अर्थात दीपशिखा के प्रकाश में जीव ब्रह्म हो जाता है।
प्रधानमंत्री की सोच में योग के सिद्धांत भी हैं। इस सिद्धांत का उल्लेख योग वरिष्ठ के छठे अध्याय में भी मिलता है। कोई भी काम अगर सामूहिक रूप से किया जाए तो लक्ष्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। अगर हम तनाव को कुछ मिनट दूर रखकर दीपक, मोमबत्ती जलाएंगे तो इससे नीरसता टूटेगी और सकारात्मक ऊर्जा पैदा होगी। यही सकारात्मक ऊर्जा हमें एकजुट करेगी और बोलेगी कि संकट की घड़ी में हम एक हैं। मन के जीते जीत है और मन के हारे हार। प्रधानमंत्री के कहे अनुसार देशवासियों ने पहले भी थाली और ताली बजाकर देवदूतों के प्रति आभार व्यक्त किया था, अब देशवासी एक दिया जलाकर नई ऊर्जा का संचार करेंगे। इससे जनता का मनोबल बढ़ेगा और उम्मीद बंधेेगी कि हम एक दिन कोरोना वायरस को हरा देंगे।
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