W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

अपने गिरेबां में भी झांकिये जनाब !

05:00 AM Sep 23, 2025 IST | विजय दर्डा
अपने गिरेबां में भी झांकिये जनाब
Advertisement

पिछले सप्ताह कई सारे विषय मेरे जेहन को मथते रहे। मैं बड़ी गंभीरता के साथ इन सारे मसलों पर विश्लेषण करता रहा और कई चिंताएं मेरे मन में उभरती रहीं। टैरिफ का हमला तो था ही, अब भारत को उन देशों की सूची में डाल दिया गया है जिन पर ड्रग्स बनाने, बेचने और व्यापार मार्ग के रूप में जिनकी धरती का उपयोग होता है। इधर यह खबर भी जोर पकड़ रही है कि करीब 120 सैनिक गुपचुप रूप से बंगलादेश पहुंचे, क्या बंगलादेश मार्टिन द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने में वाकई कामयाब हो जाएगा? चिंता यह भी है कि जिस सऊदी अरब को हम मित्र मानते हैं, उसने पाकिस्तान के साथ बड़ा डिफेंस करार क्यों कर लिया? तो मैंने सोचा कि इस कॉलम में मैं इन सभी विषयों की चर्चा करूं और सबसे अंत में बात करेंगे क्रिकेट की।

सबसे पहले बात ड्रग्स की, अमेरिका के व्हाइट हाउस ने 23 देशों की एक सूची तैयार की है और इसे अमेरिकी संसद को भेजा है। इन देशों पर आरोप है कि ड्रग्स कारोबार में किसी न किसी रूप में उनकी भूमिका है, सूची में पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान के साथ भारत का भी नाम है। सवाल यह है कि भारत जब खुद अंतर्राष्ट्रीय ड्रग कार्टेल से जूझ रहा है, चारों ओर से ड्रग्स भारत में भेजे जा रहे हैं तो फिर ड्रग्स कारोबार में हमारी कोई भूमिका कैसे हो सकती है? व्हाइट हाउस ने सूची में भारत का नाम ड्रग्स ट्रांजिट देश के रूप में जोड़ते हुए एक बड़ी चालाकी भी बरती है। ड्रग्स के खिलाफ भारत की सख्ती की सराहना भी कर दी गई है, तो सवाल पैदा होता है कि भारत की सख्ती को आप स्वीकार करते हैं तो फिर सूची में भारत का नाम क्यों जोड़ा?

आपको बता दें कि इस तरह की रिपोर्ट तब जारी की जाती है जब अमेरिकी राष्ट्रपति को किसी खास कानून के तहत कोई कार्रवाई करनी होती है। नाम जोड़ने का मतलब है कि कोई बड़ा षड्यंत्र भारत के खिलाफ रचा जा रहा है। अचरज की बात है कि अमेरिका अपने गिरेबां में झांक ही नहीं रहा है, न्यूयॉर्क जैसे शहर में ड्रग्स खुलेआम बिकता है। अमेरिका के 22 राज्यों में मारिजुआना की बिक्री और सेवन दोनों ही वैध है। कनाडा और मैक्सिको की बात तो छोड़ ही दीजिए जहां ड्रग्स कारोबार फलफूल रहा है। अमेरिका से ही जुड़ा हुआ एक और मसला है, अमेरिका के 120 सैनिक अचानक बंगलादेश पहुंच गए और गोपनीय रूप से चटगांव के एक होटल में बसेरा बना लिया, यह इतना गोपनीय था कि होटल के रजिस्टर में कुछ दर्ज ही नहीं था मगर भला हो उन जासूसों का जिन्होंने खबर दुनिया तक पहुंचा दी। इसके बाद अमेरिका और बंगलादेश ने कहा कि अमेरिकी सैनिक संयुक्त सैन्य अभ्यास और बंगलादेश की सेना को ट्रेनिंग देने के लिए आए हैं। यदि ऐसा ही था तो इतनी गोपनीयता क्यों बरती गई? अब आप एक के बाद एक कड़ी जोड़ते जाएंगे तो आपको षड्यंत्र समझ में आ जाएगा। बहुत दिनों से अमेरिका बंगलादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर अपना सैन्य अड्डा बनाना चाह रहा है, सेंट मार्टिन द्वीप को नारिकेल जिंजीरा यानी नारियल द्वीप और दारुचिनी द्वीप यानी दालचीनी द्वीप के नाम से भी जाना जाता है।

आप मानचित्र देखें तो समझ में आ जाएगा कि ये द्वीप ऐसी जगह पर है जहां से भारत, म्यांमार और चीन पर नजर रखने में अमेरिका को सहूलियत हो जाएगी। अमेरिका ने इसके लिए शेख हसीना सरकार पर भी काफी दबाव बना रखा था लेकिन वो नहीं मानीं और माना जाता है कि उनकी सरकार के तख्तापलट के पीछे यह भी एक कारण था। मो. यूनुस अमेरिका की गोद में खेल रहे हैं, पाक साथ में है ही। यानी खतरनाक तिकड़ी बन गई है तो गुपचुप रूप से यह कोशिश हो रही है कि मार्टिन द्वीप अमेरिका को मिल जाए। यदि ऐसा हो गया तो वह स्थिति अत्यंत गंभीर होगी। अमेरिका हमारे सीने पर आकर बैठ जाएगा। हमारी सरकार को सब पता है। इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग इस षड्यंत्र का खुलासा कर चुका है।

अब जरा इस खबर पर आएं कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच क्या खिचड़ी पक रही है? दोनों देशों के बीच एक डिफेंस करार हुआ है जिसे सरल शब्दों में इस तरह समझिए कि यदि एक देश पर हमला होता है तो उस हमले को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। सवाल यह उठ रहा है कि सऊदी अरब के साथ भारत के इतने गहरे रिश्ते हैं तो पाकिस्तान के साथ क्यों चला गया? यदि कभी भारत-पाकिस्तान के बीच जंग हो जाए तो सऊदी अरब क्या भारत के खिलाफ खड़ा होगा? मुझे नहीं लगता है कि कभी ऐसा होगा। पाक और सऊदी के बीच बहुत पुराना सामरिक रिश्ता है, 1998 में जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था तब सऊदी अरब के तत्कालीन रक्षा मंत्री सुल्तान बिन अब्दुल अजीज अल साऊद पाकिस्तान गए थे और उन्हें परमाणु परीक्षण स्थल से लेकर परमाणु और मिसाइल ठिकानों पर भी ले जाया गया था। अमूमन कोई भी देश किसी विदेशी को अपने परमाणु ठिकाने नहीं दिखाता है। इसीलिए तब सवाल पैदा हुआ था कि क्या परमाणु परीक्षण के लिए सऊदी अरब ने पैसा दिया था?

अब जो करार हुआ है उससे निश्चय ही पाकिस्तानी सेना को सऊदी से खूब धन मिलेगा और उसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ हो सकता है। मगर मेरा मानना है कि करार की असली वजह अमेरिका है, जिसकी बढ़ती अविश्वसनीयता के कारण अन्य खाड़ी देशों के साथ सऊदी को भी लग रहा होगा कि वक्त आने पर पता नहीं अमेरिका साथ दे या नहीं, यह करार वास्तव में विकल्प की तलाश है। यह मामला चीन की तरफ झुक सकता है। और सबसे अंत में बात क्रिकेट की, मेरे कई पाकिस्तानी मित्रों ने कहा कि भारतीय खिलाड़ियों ने हाथ नहीं मिलाकर क्रिकेट के सम्मान को बट्टा लगाया है। मैंने उन्हें बस इतना कहा कि जनाब, जब दिल ही नहीं मिल रहे हैं तो हाथ मिलाने या न मिलाने की चर्चा ही क्यों करें...? हम नियमों से बंधे थे इसलिए आपके साथ खेले...वर्ना खेलने की जरूरत ही क्या थी?

Advertisement
Advertisement
Author Image

विजय दर्डा

View all posts

Advertisement
×