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भगवान बिरसा मुंडाः जनजातीय अस्मिता के प्रतीक

04:15 AM Nov 16, 2025 IST | Editorial
भगवान बिरसा मुंडाः जनजातीय अस्मिता के प्रतीक
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भारत का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली और समृद्ध रहा है। भारतीय इतिहास ने अपनी प्रबुद्ध चेतना से न सिर्फ राष्ट्र बल्कि संपूर्ण विश्व को आलोकित किया है। यह थरा क्रांति और शांति की जननी रही है। यह राष्ट्र सदेव ही अपनी सांस्कृतिक अस्मिता, राष्ट्रवादी चेतना तथा सामाजिक मूल्यों पर सब कुछ होम कर देने वाले लोगों से समृद्ध रहा है, जिनकी एक लंबी फेहरिस्त है। ऐसे ही महान क्रांतिवीर हुए भगवान बिरसा मुंडा जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से भारत की भावना को अभिव्यक्ति दी। भारत के क्रांतिकारी इतिहास में उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है।
उनका जन्म 15 नवम्बर, 1875 को झारखंड राज्य के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में हुआ था। एक आदिवासी समुदाय में पैदा होने के नाते जल-जंगल-जमीन से इनका गहरा नाता रहा। अपने हक और अधिकारों के लिए इन्होंने जमीदारों से तथा तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष किया और अपने समुदाय को संगठित कर उन्हें जागृत किया।
धरती आबा के उपनाम से शोभित भगवान बिरसा मुंडा ने 1890 के दशक के अंत में उलगुलान (एक विशेष प्रकार का आंदोलन) प्रारंभ किया। यह एक सशस्त्र और जन आंदोलन था। यह आंदोलन लोगों के लिए उनकी सांस्कृतिक पहचान दिलाने के लिए एक न्यायिक लड़ाई थी। उनका यह आंदोलन महात्मा गांधी की तरह ही न्याय और सत्य की खोज से प्रेरित था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण था आदिवासी समुदाय का शोषण, उनकी जल- जंगल-जमीन पर अंग्रेजों और जमीदारों का अधिकार और कब्जा। उनकी भूमि की जप्ती, उनके धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का शोषण इस आंदोलन के केंद्र बिंदु में था। यह आंदोलन गोरिल्ला युद्ध से प्रेरित था। इसी के माध्यम से ही उन्होंने अंग्रेजों और जमीदारों से अपनी मातृभूमि की रक्षा की और राष्ट्र की अस्मिता को उच्चता प्रदान की। बीमार लोगों की सेवा करना जरूरतमंदों को उनका हक और अधिकार दिलाना यह उनकी फितरत में था। उन्होंने मानवीय मूल्यों के आधार पर लोगों की सेवा की।
पिछले समय में भगवान बिरसा मुंडा के इतिहास को ओझल रखा गया। उनका नाम भारतीय इतिहास में गुमनाम नायकों में शामित था किंतु वर्तमान परिदृश्य में बिरसा मुंडा को उनके कृतित्य को न सिर्फ महत्व दिया जा रहा है बल्कि राष्ट्र और समाज के हित में उनके किए गए कार्यों को प्रमुखता से प्रत्येक मंच पर अंकित किया जा रहा है।
भारत सरकार ने 2021 में 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस घोषित कर इसे राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा, 2025 में 150वीं जयंती वर्षगांठ के रूप में इसे अभियान-स्तर पर विस्तृत किया गया।
2014 के बाद माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आदिवासी समाज के कल्याण और उनके समग्र विकास के लिए कई योजनाएं और नीतियां शुरू की है, जिनमें प्रधानमंत्री वनबंधु कल्याण योजना (PMVKY) और प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी व्याप महा अभियान (PM-JANMAN) प्रमुख है। इन योजनाओं का उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल और बुनियादी ढांचे में सुधार करके जनजातीय समुदायों का सशक्तिकरण करना है।
वनाधिकार कानून 2006 में पास हुआ था, मोदी सरकार ने 2014 के बाद इसे प्रभावी तरीके से लागू करने पर जोर दिया। इसके तहत आदिवासी समुदाय को उनकी पारंपारिक वन भूमि पर अधिकार दिए गए। माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में जनजातीय समुदाय की अस्मिता की रक्षा के लिए अनेक कार्य किए जा रहे हैं। पिछले वर्षों में धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष योजना की शुरूआत की गई।
इसी के आलोक में दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में जनजातीय दर्पण भी स्थापित किया गया है जो जनजातीय समुदाय के संघर्ष, वीरगाथा और योगदानों को रेखांकित करता है। 150वीं जयंती वर्ष को 31 अक्तूबर से 15 नवंबर तक विशेष चरणबद्ध गतिविधियों में रूपांतरित करने की अवधारणा ने स्मरण को क्रियान्वयन से जोड़ा है जिससे नीति-संस्कृति-शिक्षा का त्रिवेणी संगम संभव हो।
सशक्तिकरण के तहत ज्ञान-संरक्षण में भाषाओं, लोक-चिकित्सा, कृषि-वन पारंपरिक ज्ञान, और हस्तशिल्प पर डिजिटल रिपॉज़िटरी और ओपन-सोर्स पाठ्यसामग्री विकसित कर स्कूल-कॉलेज पाठ्यक्रम में सम्मिलित की जाए। जिला मुख्यालयों में ट्राइबल कल्चरल हब, भ्रमणशील संग्रहालय बसें और समुदाय निर्देशित त्यौहार कैलेंडर का वार्षिक बजट से समर्थन सुनिश्चित हो। संवाद और भागीदारी के तहत ओप-एड टाउन हॉल और सार्वजनिक व्याख्यानों को ग्रामीण-आदिवासी क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो व मोबाइल मीडिया यूनिट्स तक विस्तारित किया जाए, ताकि सूचना पहुंच और प्रतिपुष्टि दोनों बढ़े।
बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर स्मरण का अर्थ केवल अतीत का गौरव नहीं बल्कि समतामूलक विकास का मार्गचित्र है-जहां नीति, शिक्षा, संस्कृति और आजीविका में आदिवासी दृष्टि केंद्र में हो। जनजातीय गौरव दिवस ने राष्ट्रीय परिकल्पना को जन-सहभागिता का आयाम दिया है। यही बिरसा की ज्योति का सच्चा विस्तार होगा- आत्मसम्मान, अधिकार और सांस्कृतिक स्वराज के साथ भविष्य के भारत का निर्माण।
बिरसा मुंडा का देहांत 9 जून 1900 को हुआ था लेकिन उनके संघर्ष की भावना आज भी जीवित है। उन्हें "धरती आबा (पृथ्वी के पिता) के नाम से जाना जाता है। बिरसा मुंडा का संघर्ष हमें यह सिखाता है कि एकता, संघर्ष और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता ही किसी भी समाज को सशक्त बना सकती है। उनके योगदान को न केवल आदिवासी समाज, बल्कि पूरे भारत ने सराहा है, आज भी बिरसा मुंडा का जीवन और उनका संघर्ष हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। बिरसा मुंडा का योगदान न केवल आदिवासी समाज के लिए था, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण था।
उनका नाम आज भी हर भारतीय के दिल में सम्मान से लिया जाता है, और उनके योगदान को हम सदैव याद रखते हैं। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने विरासत से विधास के मार्ग पर शहीदों और वीर पुरुषों के सम्मान को सर्वोपरी रखते हुए जन जन में राष्ट्र भाव जागृत करने का प्रयास किये हैं। आइये आज जान जातीय गौरव दिवस पर उनके प्रयासों को बाल दें।

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