Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

मदन लाल खुरानाः दिल्ली का पुजारी

NULL

11:58 PM Oct 28, 2018 IST | Desk Team

NULL

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के निधन के साथ ही दिल्ली भाजपा के उस युग का अंत हो गया जो युग मदन लाल खुराना, स्वर्गीय केदारनाथ साहनी और विजय कुमार मल्होत्रा के नाम से जाना जाता था। दिल्ली के शेर के नाम से प्रसिद्ध मदन लाल खुराना ही एकमात्र ऐसे नेता थे जिनकी समाज के हर समुदाय पर प्रभावशाली पकड़ रही। दिल्ली भाजपा में भी कोई नेता ऐसा नहीं हुआ जिसने सभी वर्गों में अपनी पहचान बनाई हो। वह एक एेसे नेता रहे जिनके कारण दिल्ली में भाजपा को सत्ता मिली। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए चुनावों में कभी भाजपा दिल्ली में सत्ता में वापिस नहीं आ पाई। मदन लाल खुुराना का जन्म पाकिस्तान के लायलपुर में हुआ था और महज 12 वर्ष की आयु में उन्हें देश विभाजन का दर्द झेलना पड़ा।

बंटवारे के कारण उनका परिवार दिल्ली आ गया और कीर्तिनगर के एक रिफ्यूजी शिविर में रहना पड़ा। फिर पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए और 1959 में पहली बार छात्र राजनीति में सक्रिय हुए। फिर दिल्ली आकर अपनी शिक्षा पूरी की। दिल्ली में उन्होंने विजय कुमार मल्होत्रा के साथ मिलकर जनसंघ के केन्द्र की स्थापना की जिसे आगे चलकर भाजपा के रूप में जाना गया। दिल्ली को विधानसभा का दर्जा दिलाने के लिए उन्होंने लम्बा संघर्ष किया और अंततः सफलता पाई। पार्टी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने और कर्मठता की वजह से वह न केवल पार्टी में बल्कि दिल्ली के लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो चुके थे। 1993 के चुनाव में दिल्ली की जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया और वह दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने दिल्ली के विकास को नई दिशा दी। राजनीति में उतार-चढ़ाव आते ही हैं लेकिन मदन लाल खुराना अपने सिद्धांतों पर अ​िडग रहे।जैन हवाला कांड उछला ताे जैन डायरी में भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण अडवानी का नाम भी उछला। लालकृष्ण अडवानी ने इस्तीफा देकर मिसाल कायम की।

जैन हवाला कांड में मदनलाल खुराना का नाम भी आया। तब उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का निर्णय किया। तत्कालीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अध्यक्ष रज्जू भैय्या और अन्य वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने उन्हें इस्तीफा नहीं देने की सलाह दी थी लेकिन उन्हें अपने सार्वजनिक जीवन पर एक भी दाग स्वीकार्य नहीं था। इसलिए उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। तब 1996 में उनकी जगह तत्कालीन मंत्री साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। अदालत ने जैन हवाला केस में लालकृष्ण अडवानी आैर मदन लाल खुराना को बरी कर दिया। भाजपा हाईकमान को चाहिए था कि वह खुराना को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर बैठाती लेकिन भाजपा हाईकमान ने ऐसा नहीं किया। भाजपा उनके अनुभव और पार्टी के लिए की गई मेहनत का लाभ नहीं उठा सकी। मदन लाल खुराना पार्टी से नाराज और हताश भी थे। चुनावों से कुछ समय पहले श्रीमती सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन तब प्याज की बढ़ती कीमतों ने ऐसा खेल खेला कि भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। जब तक कि भाजपा संभलती तब तक भाजपा के हाथ से तुरुप का पत्ता निकल चुका था। खुराना परिवार से हमारे पारिवारिक संबंध रहे।

पूजनीय पिता श्री रमेश चंद्र जी की उनसे मुलाकातें होती रहती थीं। शाम के वक्त वह अक्सर पंजाब केसरी कार्यालय आकर मुझसे मिलते रहते थे। कोमा में जाने से पहले वह सप्ताह में कम से कम दो बार तो आते ही थे और अपने अनुभव सुनाते थे। 1984 में जब भाजपा की बुरी तरह हार हुई तब दिल्ली में पार्टी को खड़ा करने में उनका बहुत योगदान रहा। केन्द्र में जब पहली बार अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी तो उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। वर्ष 2004 में वह राजस्थान के राज्यपाल भी रहे। कई बार महसूस होता है कि अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थक होने के कारण भाजपा नेतृत्व ने उनसे अन्याय ही किया। वह जीवन भर पत्रकारों के मित्र रहे, साथ ही आलोचनाओं के लिए भी वह प्रशंसा के पात्र रहे। यही कारण था कि विपक्ष के नेता भी उनके प्रशंसक रहे। वह काफी मुखर थे। अपनी बात सबके सामने रख देते थे। 2005 में उन्हें लालकृष्ण अडवानी की आलोचना करने पर भाजपा से निष्कासित भी कर दिया गया था।

पार्टी में लौटे तो उन्होंने एक बार फिर सक्रिय राजनीति में लौटने का प्रयास किया लेकिन तब तक दिल्ली की सियासत का परिदृश्य बदल चुका था। उनका मन दिल्ली में बसता था। दिल्ली की सियासत में वे एक ब्रैंड के तौर पर पहचाने जाते थे। वह अक्सर कहा करते थे दिल्ली उनका मंदिर है और वे इसके पुजारी। 1960 से 2000 तक जनसंघ हो या भाजपा, उनका ही सिक्का चलता था। दिल्ली की सियासत का वह दौर हमने देखा है जब पार्टी में बाहर से आकर बसे पंजाबियों का प्रभुत्व रहा। आज के दौर के कई नेता तो उनकी छत्रछाया में ही पले और बड़े हुए हैं। अब केवल स्मृतियां शेष हैं। पंजाब केसरी परिवार उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। दिल्ली के पुजारी की यादें हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी।

Advertisement
Advertisement
Next Article