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महाकुम्भ: सभी विभाजक रेखाएं टूटी

महाकुम्भ धीरे-धीरे अपना दूर-दूर तक फैला अंचल समेटने लगा है। स्नान करने…

10:46 AM Feb 16, 2025 IST | Dr. Chander Trikha

महाकुम्भ धीरे-धीरे अपना दूर-दूर तक फैला अंचल समेटने लगा है। स्नान करने…

महाकुम्भ धीरे-धीरे अपना दूर-दूर तक फैला अंचल समेटने लगा है। स्नान करने वालों का आंकड़ा 50 करोड़ के मोड़ पर है। कोई नहीं जानता, यह कब तक जारी रहेगा। यह एक ऐसा महाकुम्भ है, जहां सिर पर दरी-बिछौना की गठरी लादे आम आदमी उसी जल में स्नान कर रहा था, जिस जल में मुकेश अम्बानी व उनका परिवार स्नान कर रहा था। बीच में कोई भी विभाजक रेखा नहीं है। न जाति-भेद, न लिंग भेद और न ही गरीबी-अमीरी, अनपढ़ता और विद्वता का भेद।

मैं भी हतप्रभ हूं। मेरे एक हाथ में ‘सुमिरनी’ अर्थात् माला है, दूसरे में ‘एआई’ अर्थात् कृत्रिम बुद्धिमत्ता के ‘ऐप्स’ से भरा एक छोटा सा टैब। मुझे फिलहाल नहीं पता, दिशा कौन सी है। मगर यह तय है कि इस ‘आग के दरिया’ से गुज़रना ही होगा। ‘यह इश्क नहीं आसां- बस इतना समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।’ स्नानार्थियों का आंकड़ा निरंतर बढ़ता जा रहा है। कुछ कह रहे हैं यह निर्धारित तिथियों के बाद भी महीना भर चलेगा। करोड़ों ने स्नान किया, पाप धोने के चक्कर में कुछ ने अपनी सोने की अंगूठियां भी खोई हैं, कुछ ने दान के उद्देश्य से कुछ चांदी के सिक्के भी संगम के जल में डाले हैं। हजारों लोग भीड़ छंटने की प्रतीक्षा में हैं और उसके बाद अमृत के बचे-खुचे छींटों व सिक्कों-गहनों की तलाश शुरू हो जाएगी। गोताखोर भी तैयार हैं और एक हुजूम भी, जिन्होंने ढेरों उम्मीदें बांध रखी हैं। लगभग 50 करोड़ लोगों ने अपने पाप धोए हैं, साथ ही वस्त्र भी और अपने मन के साथ तन की गंदगी भी धोई है। अब इसी जल को प्लास्टिक की बोतलों में भर कर घरों को ले जाएंगे श्रद्धालु।

इस महाकुम्भ पर सरकारी बजट कितना खर्च हुआ, श्रद्धालुओं ने औसतन कितना खर्च किया, किस उद्योग ने कितना कमाया, कितना गंवाया, कुछ भी अनुमान लगाना नामुमकिन है। अभी तो ‘काफी-टेबुल-बुक्स’ छपेंगी, ‘एलबमें’ तैयार होंगी, बाज़ार में सब बिकेगा और खूब बिकेगा।

महाकुम्भ के विरोधाभासों को देखकर कई बार शाहिर लुधियानवी का यह गीत याद आ जाता है- ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है?’ तो क्या यह मान लिया जाए कि वे सब 50 करोड़ भारतीय अपने पाप-कर्मों से मुक्त हो चुके हैं, जिन्होंने इस बार संगम में स्नान किया है? इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों का पुण्य कमा लेना कोई छोटी खबर नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं महाकुम्भ में चांदी की गाय-बछिया का भी गोदान हुआ। प्रख्यात उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के चर्चित उपन्यास ‘गोदान’ में उपन्यास के नायक होरी का गोदान कराने को तरसती रह गई, उसकी पत्नी धनिया। काश उसे बताया गया होता कि गोदान तो बिना गाय के भी संभव था। इस बार कुंभनगर में माघी पूर्णिमा स्नान पर गोदान का स्वरूप बदला हुआ नजर आया। स्नान पर्वों पर अत्यधिक उमड़ती भीड़ की वजह से ‘संगम नोज़’ सहित अन्य घाटों पर गाय और बछिया ले जाने की अनुमति प्रशासन ने नहीं दी तो पुरोहितों ने श्रद्धालुओं को चांदी की गाय और चांदी की बछिया के ज़रिए गोदान का संकल्प कराया। दूरदराज के क्षेत्रों से पहुंचे जनसमूह ने भी कुल देवी-देवता व पूर्वजों के निमित्त श्रद्धाभाव के साथ गोदान करते दिखे।

गोदान के लिए किसी पुरोहित ने आठ सौ तो किसी ने एक हजार रुपए खर्च कर दस फरवरी को ही चांदी की गाय बनवा ली थी। पिछले दस वर्षों से संगम पर तख्ता लगाने वाले जैनपुर के चंद्र प्रकाश तिवारी के पास कई श्रद्धालु पहुंचे। हर कोई गाय या बछिया के बारे में उनसे पूछने लगे। तब उन्होंने बताया कि ‘महाकुम्भ में गाय लाने की अनुमति नहीं दी गई थी। आप लोग परेशान न हों, चांदी की बछिया, गाय है। फिर सभी ने बारी-बारी से अपना नाम, गोत्र बताकर गोदान का संकल्प पूरा किया। दशाश्वमेध घाट पर कई पुरोहित कुशा के ज़रिए गोदान कराते हुए दिखाई दिए। पूर्णिमा के अवसर पर घाटों पर श्रद्धालु आस्था के बीच दान-दक्षिणा करते रहे। जहां पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए काले तिल व गंगाजल से तर्पण किया गया, वहीं अन्न में चावल, दाल व घी पुरोहितों को दिया गया। बाहरी प्रांतों से पहुंचे श्रद्धालु अपने साथ धोती व कंबल भी लेकर पहुंचे थे, जिसे घाटों पर बैठे पुरोहितों को दान किया।

कुछ अन्य झलकियां भी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। महाकुम्भ में संतों का वैभव हर किसी को आश्चर्य में डाल रहा है। लग्जरी कारों से लेकर महल सरीखे शिविर श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहे हैं। कई संत ऐसे हैं जिनकी संपत्ति अरबों-खरबों में है। भारत ही नहीं कई देशों में उनके आश्रम हैं।

अध्यात्म की राह चुनने वाले ये संत अपनी दुनियावी सत्ता शिष्यों को सौंप देते हैं। कुछ संत ऐसे भी हैं जिनका साम्राज्य विदेशी शिष्य संभाल रहे हैं।

भारतीय वायुसेना के फाइटर पायलट से आध्यात्मिक गुरु बने पायलट बाबा लंबे समय तक अर्द्धकुम्भ और महाकुम्भ में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहे। बीते वर्ष 20 अगस्त को उनके ब्रह्मलीन होने के बाद जूना अखाड़े के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरि गिरी ने जगजीतपुर स्थित पायलट बाबा के आश्रम में उनकी मुख्य शिष्या जापान की केकी आईकावा (योगमाता केवलानंद) को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया। केकी आईकावा ने बड़ी संख्या में शिष्यों के साथ महाकुम्भ में संगम स्नान किया। पायलट बाबा के भारत एवं विदेशों में कई आश्रम और आध्यात्मिक केंद्र हैं जिनका सम्पत्ति-गत मूल्य सैकड़ों करोड़ में आंका जाता है।

महर्षि महेश योगी के उत्तराधिकारी टोनी दुनियाभर में भावातीत ध्यान के पर्याय रहे महर्षि टोनी योगी के उत्तराधिकारी लेबनान के तंत्रिका वैज्ञानिक, चिकित्सक और वैदिक विद्वान डॉ. टोनी नाडेर हैं। महर्षि महेश योगी ने वर्ष 2000 में ही टोनी नाडेर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।

पांच फरवरी 2008 को ब्रह्मलीन हुए महर्षि महेश योगी के 70 से अधिक देशों में आश्रम और शैक्षणिक संस्थाएं आदि को संभाल रहे टोनी नाडेर की नेटवर्थ तीन खरब से अधिक आंकी गई है। इस विचित्र महाकुम्भ की चर्चाएं शायद आगामी अर्द्धकुम्भ तक चलती रहेंगी।

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