W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

टीपू सुल्तान पर ‘महाभारत’

जयंती का सबसे ज्यादा विरोध कोडगु जिला में हुआ था और हिंसक घटनाओं में विश्व हिंदू परिषद के दो कार्यकर्ताओं की मौत हो गई ​थी।

03:36 AM Nov 05, 2019 IST | Ashwini Chopra

जयंती का सबसे ज्यादा विरोध कोडगु जिला में हुआ था और हिंसक घटनाओं में विश्व हिंदू परिषद के दो कार्यकर्ताओं की मौत हो गई ​थी।

टीपू सुल्तान पर ‘महाभारत’
Advertisement
कर्नाटक में येदियुरप्पा सरकार द्वारा 18वीं शताब्दी के मैसूर शासक टीपू सुल्तान के दस नवम्बर को 270वें जन्म दिवस समारोह पर प्रतिबंध लगाए जाने और स्कूली किताबों से उनके इतिहास के पाठ को हटाए जाने के ऐलान से भाजपा और विपक्षी कांग्रेस में महाभारत शुरू हो गया है। टीपू सुल्तान को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। भाजपा और समान विचारधारा वाले दल टीपू सुल्तान को कट्टरपंथी बताते हुए जयंती समारोह का कड़ा विरोध करते रहे हैं, वहीं कई इतिहासकार टीपू को धर्मनिरपेक्ष और महान शासक मानते हैं जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जंग लड़ी।
Advertisement
टीपू जयंती समारोह का आयोजन कांग्रेस शासन के दौरान सरकारी तौर पर मनाने की शुरूआत की गई थी। 2015 में तत्कालीन कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने इसका पहला आयोजन किया था। बाद में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार ने भी इसे जारी रखा था। टीपू जयंती मनाने का भाजपा ने जमकर विरोध किया था। जयंती का सबसे ज्यादा विरोध कोडगु जिला में हुआ था और हिंसक घटनाओं में विश्व हिंदू परिषद के दो कार्यकर्ताओं की मौत हो गई ​थी। भाजपा टीपू सुल्तान को अत्याचारी और हिंदू विरोधी शासक मानती है। भाजपा कहती रही है कि टीपू एक ऐसा राजा था जिसने जबरन धर्मांतरण कराने के साथ-साथ मंदिराें को ध्वस्त किया था।
Advertisement
कोडगु वन क्षेत्र और केरल के कुछ हिस्सों में भी टीपू सुल्तान को नायक के रूप में नहीं देखा जाता। टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली की महत्वाकांक्षाएं बहुत ज्यादा थीं। इसी के चलते उन्होंने मालाबार, कोझीकोडे, त्रिशुर, कोडगु व कोच्चि पर विजय प्राप्त कर इन्हें मैसूर के अधीन लाया गया। इन क्षेत्रों में टीपू को एक क्रूर शासक माना जाता है क्योंकि यहां लाखों हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया गया था। राज्य में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जो टीपू को ‘मैसूर का शेर’ के रूप में स्वीकार करते हैं और तर्क देते हैं कि उसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ डटकर संघर्ष किया। आम लोगों में टीपू की छवि एक साहसी योद्धा, कुशल प्रशासक व सैन्य रणनीतिकार के रूप में भी है।
एक ओर जहां यह कहा जाता है कि टीपू ने मंदिरों को तोड़ा तो यह भी सच है ​कि उसने मंदिरों तथा पुजारियों को दान और उपहार दिये। श्रृंगेरी मठ को संरक्षित किया। टीपू सुल्तान को लेकर भाजपा की भी राय बदलती रही है। कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर ने टीपू को नायक बताया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद  भी कर्नाटक विधानसभा की 60वीं सालगिरह के मौके पर टीपू सुल्तान की तारीफ कर चुके हैं। सवाल यह है कि येदियुरप्पा सरकार अब इसे मुद्दा क्यों बना रही है?
दरअसल टीपू सुल्तान को लेकर जो विवाद है उसकी जड़ में साम्राज्यवादी इतिहास का लेखन है​ जिसने टीपू को एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया। टीपू सुल्तान को कट्टर और धर्मांध मुस्लिम शासक के तौर पर सबसे पहले अंग्रेजों ने प्रचारित किया था। इतिहास यह भी बताता है कि 18वीं सदी के मैसूर ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश विस्तारवाद को कड़ी चुनौती दी थी, पहले हैदर  अली ने और बाद में टीपू सुल्तान ने मद्रास की ब्रिटिश कंपनी को बार-बार हराया था।
हैदराबाद के निजाम और मराठों ने अंग्रेजों के साथ गठबंधन कर लिया था लेकिन टीपू ने कभी अंग्रेजों से गठबंधन नहीं किया था। अंग्रेजों की आंख में टीपू हमेशा खटकते रहे और उन्होंने उसकी छवि धूमिल करने के लिए हरसंभव कोशिश की। अब सवाल यह है कि टीपू को कैसे याद किया जाए। उसे अंग्रेजों से टक्कर लेने वाले मैसूर के शेर के तौर पर याद किया जाए या एक क्रूर अत्याचारी शासक के रूप में।
इतिहास को समझने के लिए हर युग का अपना एक नजरिया होता है। इतिहास का सच क्या है इस सवाल को जनभावनाओं के नाम पर सड़कों पर उतरकर तय नहीं किया जा सकता। अब टीपू सुल्तान का विरोध या समर्थन का मामला विशुद्ध राजनीति से जुड़ चुका है। भाजपा कुछ इतिहासकारों के हवाले से कह रही है कि टीपू ने बड़ी संख्या में तमिलों को भी मुस्लिम बनाया था। भाजपा तमिलनाडु और केरल में भी खुद को स्थापित करना चाहती है इसलिए उसने टीपू सुल्तान का चेहरा ढूंढ लिया है।
कांग्रेस भाजपा को साम्प्रदायिक पार्टी करार देकर अल्पसंख्यकों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करना चाहती है। क्या देश का युवा वर्ग ऐसे मुद्दों पर अपनी राय देना चाहेगा? उसे तो गड़े मुर्दे उखाड़ना पसंद ही नहीं। इसलिए विवाद पर सियासत कितनी सफल होती है, कुछ कहा नहीं जा सकता।
Advertisement
Author Image

Ashwini Chopra

View all posts

Advertisement
Advertisement
×