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आखिर गांधी को महात्मा और बापू का दर्जा क्यों दिया जाता है? जानें इसके पीछे का इतिहास

02:40 PM Oct 01, 2025 IST | Amit Kumar
आखिर गांधी को महात्मा और बापू का दर्जा क्यों दिया जाता है  जानें इसके पीछे का इतिहास
Mahatma Gandhi jayanti
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Mahatma Gandhi jayanti: भारत का इतिहास अगर महात्मा गांधी के बिना देखा जाए, तो वह अधूरा लगता है। उन्होंने न सिर्फ देश को आजादी की राह दिखाई, बल्कि पूरी दुनिया को अहिंसा, सत्य और प्रेम का संदेश दिया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। हर साल इस दिन को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें उनके जीवन, संघर्ष और विचारों को याद करने का अवसर देता है।

Mahatma Gandhi jayanti: गांधी जी को “महात्मा” क्यों कहा गया?

महात्मा का मतलब होता है "महान आत्मा"। यह उपाधि उन्हें 1915 में रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी। गांधी जी का जीवन सादगी, सत्य और नैतिकता का प्रतीक था। उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से न सिर्फ भारतीयों, बल्कि दुनियाभर के लोगों को प्रभावित किया। सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से उन्होंने यह साबित कर दिया कि बिना हिंसा के भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।

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Gandhi Jayanti 2025: उन्हें “बापू” कहकर क्यों पुकारा जाता है?

“बापू” का अर्थ होता है पिता। गांधी जी को यह नाम लोगों के दिल से मिला। उन्होंने जिस तरह से देशवासियों का मार्गदर्शन किया, उनका ख्याल रखा और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया, उससे लोग उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानने लगे। उनके प्रेम और त्याग को देखकर ही जनता ने उन्हें स्नेहपूर्वक “बापू” कहना शुरू किया।

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Mahatma Gandhi Jayanti 2025 in India: गांधी जी को “राष्ट्रपिता” की उपाधि कैसे मिली?

गांधी जी को "राष्ट्रपिता" की उपाधि सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1944 में दी थी। नेताजी ने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम का मार्गदर्शक और सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत माना। गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, दांडी यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई बड़े आंदोलन हुए, जिनसे लाखों भारतीय जुड़ गए और आज़ादी की लड़ाई तेज हुई।

Mahatma Gandhi jayanti
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गांधी जी के योगदान और विचार

महात्मा गांधी ने विदेश में पढ़ाई के बाद भारत लौटकर महसूस किया कि अंग्रेज भारतीयों के साथ भेदभाव करते हैं। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया। उन्होंने हमेशा अहिंसा और सत्य की राह पर चलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी। उनका मानना था कि बदलाव लाने के लिए पहले खुद को बदलना जरूरी है। उन्होंने जो रास्ता दिखाया, वह सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक सुधार का भी था। उन्होंने छुआछूत, जातिवाद और अन्य कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाई।

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