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राष्ट्रीय मुद्दा यही बनाइए, कुत्तों से बचाइए

01:55 AM Feb 16, 2024 IST | Shera Rajput
राष्ट्रीय मुद्दा यही बनाइए  कुत्तों से बचाइए
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सच तो यह है कि आतंकवादियों के हमलों में जितने लोग घायल नहीं हुए, जीवन से हाथ नहीं धो बैठे उससे कहीं ज्यादा आवारा आतंक जो कुत्तों का है उसके शिकार हिंदुस्तान के लोग हो चुके हैं। हिंदुस्तान की सरकार बड़ी सशक्त है। आतंकवाद से सफल लड़ाई लड़ती है। विदेशी आक्रमणकारियों को हमारी शक्ति को देखते हुए हमारी ओर आंख उठाने का भी साहस नहीं होता, पर यह कुत्ते और आवारा कुत्ते आज देश के लोगों की जान के सबसे बड़े दुश्मन बने बैठे हैं। आज का ही समाचार देखिए 18 वर्षीय एक नवयुवक को कुत्तों ने नोच-नोच कर खा लिया। न कोई पशु प्रेमी वहां पहुंचे और न ही मानव अधिकारी। पिछले ही सप्ताह कपूरथला में 32 वर्षीया महिला खूंखार कुत्तों की हिंसा का शिकार हो गई, पर वह बेचारी मनुष्य थी न इसलिए उसके लिए कानून के रक्षक सोये रहे। एक बच्चा अब भी कपूरथला के अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। कुछ दिन पहले ही लुधियाना के दो सगे भाइयों को कुत्ता खा गया।
वैसे प्रशासन में हिम्मत नहीं कि सही संख्या दे सके कि कितने लोग कुत्तों के काटने से रैबीज की बीमारी से मारे गए। यह ऐसा आतंक है जिस पर न सरकार की जुबान हिलती है और न अधिकारियों की। यह भयावह आंकड़े हैं जो कुत्तों के काटने की कहानी कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल आवारा कुत्तों के हमलों के लाखों मामले सामने आते हैं जिससे रैबीज से हर साल हजारों मौतें होती हैं।
वर्ष 2023 में परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय ने कुत्तों के काटने के 25 लाख मामले दर्ज किए, पर कौन विश्वास करेगा कि यह संख्या 25 लाख ही है। जो लोग कुत्ते के काटने के बाद सरकारी अस्पतालों में जाते हैं, जिनका इलाज मुफ्त होता है, इंजेक्शन मिल जाते हैं, यह तो केवल उनकी संख्या है। हर राज्य में ऐसे हजारों लोग हैं जो कुत्तों के जख्मों से बचने के लिए प्राइवेट अस्पतालों में जाते हैं, प्राइवेट केमिस्ट की दुकान से इंजेक्शन ले लेते हैं, क्योंकि आमतौर पर सरकारी अस्पताल से इलाज करवाने के लिए, रैबीज के इंजेक्शन पाने के लिए सिफारिश भी चाहिए और अस्पतालों में अधिकतर यह इंजेक्शन मिलते ही नहीं।
पिछले तीस वर्षों में अपने देश में जितने सुरक्षाकर्मी दुश्मन से लड़कर घायल नहीं हुए, शहीद नहीं हुए, जितनी प्राण हानि आतंकियों के हमले से नहीं हुई, गैंगस्टरों ने जितने लोगों को नहीं मारा और काटा उससे कहीं अधिक जनजीवन की हानि इन कुत्तों ने की है। मैं नहीं कहती, सरकार कहती है कि वर्ष 2019 से 2022 तक कुत्तों के काटने के डेढ़ करोड़ केस सामने आए हैं, पर सन् 2022 में भी यह संख्या केवल जुलाई तक 14 लाख 50 हजार 666 हो चुकी थी।
भारत में कुत्तों के काटने की समस्या बड़ी गंभीर है और हमेशा से ही रही है। वर्ष 2019 से 23 तक तो डेढ़ करोड़ केस सामने आ गए, पर उपचार कहीं नहीं। समस्या का समाधान कहीं नहीं। कुत्तों के काटने से पीड़ित लोग सबसे ज्यादा उत्तरप्रदेश में, उसके पश्चात तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हैं। अगर राज्य के हिसाब से देखें तो आवारा कुत्तों की संख्या भी बहुत बढ़ गई है। सरकारें नसबंदी, नलबंदी की बातें तो करती हैं, कुत्तों को नलबंदी या नसबंदी के बाद वहीं छोड़ा जाएगा, जिस क्षेत्र से इन्हें उठाया है। कितनी बड़ी विडंबना है काटने, भोंकने, गंदगी फैलाने के लिए ये कुत्ते वहीं छोड़ दिए जाएंगे जहां से ये लोगों को काटते और गंदगी फैलाते पहले से ही बहुत बड़ा संकट पैदा कर रहे हैं। क्या सरकार भूल गई कि कानून जो कुत्तों की रक्षा के लिए बना है उसमें यह भी लिखा है कि स्थानीय प्रशासन की संस्थाएं कुत्तों के लिए बाड़ा बनाएंगी। सभी कुत्ते सरकारी संरक्षण में रखे जाएंगे, इसकी देखभाल होगी और धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होगी, पर जनता की किस्मत बदलने के लिए किसी भी स्थानीय निकाय विभाग ने यह प्रयास नहीं किया।
लोकसभा के पिछले चुनाव में जब देश के एक केंद्रीय मंत्री संसद के उम्मीदवार बनकर अमृतसर में आए तो कार्यकर्ताओं की सभा में उनसे यह कहा गया कि हमें कुछ और मत दीजिए लेकिन हमें कुत्तों के आतंक से बचाइए। जनजागरण अभियान भी चलाया। सारी जनता ने अपने-अपने क्षेत्र के उम्मीदवार से कुत्तों को सड़कों से उठाने और जनता को आवारा कुत्तों के आतंक से बचाने की बात कही, पर चुनाव गए बात गई। वास्तविकता यह है कि नेताओं और अमीरों के बच्चे बंद गाड़ियों में स्कूल जाते हैं, अपने बंगलों में खेलते हैं, नेता सुरक्षा घेरों में रहते हैं, कुत्तों से कटने की क्या पीड़ा है वह जानते ही नहीं और सीधी बात घायल की गति घायल जानता है। ठंडे, गर्म महलों में जनता के पैसे से आराम फरमाने वाले नहीं। यह भी सच है कि पूरी-पूरी रात कुत्तों की चीख-पुकार से जो मानसिक कष्ट होता है उससे भी यह परिचित नहीं। बहुत अच्छा रहेगा कि अब फिर चुनावी मौसम है। जिस गति से दल बदल हो रहा है ऐसा स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि दो-तीन महीनों में देश की संसद के चुनाव हो जाएंगे। भारत की जनता को भी यह प्रण कर लेना चाहिए कि जो भी उम्मीदवार संसद के लिए वोट पाने के लिए गलियों-बाजारों में आएंगे उनसे लिखित ले लीजिए कि वे कुत्तों के आतंक से देश की जनता को मुक्त करवाएंगे।
अभी केवल पंजाब की बात की जाए तो वर्ष 2023 में दो लाख दो हजार से ज्यादा कुत्तों ने सरकारी आंकड़ों के अनुसार काटा है। मौतें कितनी हुईं, यह बताने की हिम्मत सरकार में नहीं। अभी जनवरी से फरवरी 15 के बीच ही एक दर्जन लोगों के मारे जाने का समाचार तो मिल चुका है। न वे कैंसर से मरे, न टीबी, न हार्ट अटैक से। सरकार के बहुत प्यारे आवारा जानवरों ने उनका जीवन छीन लिया। कभी 18 साल का युवक, कभी 32 वर्षीय बच्चों की मां, कभी आठ-दस वर्ष के खेलते खेलते बच्चे, कभी बस कंडक्टर और कभी कोई दूसरा। कहानी सबकी एक ही रही है।
क्या प्रशासन या बताएगा कि कितने लोगों को कुत्ते खा गए, कितने लोगों को काटा, कितने लोगों का सरकार ने इलाज किया और मौतें कितनी हुईं? इसके साथ ही जनता से निवेदन है कि इस बार राष्ट्रीय मुद्दा यही बनाइए कि सरकार जी कुत्तों से बचाइए। अगर जनता यह काम नहीं करेगी तो फिर कोई भी हमें बचाने वाला नहीं है। याद रखिए प्रजातंत्र में जो प्रजा चाहती है वही होता है। देश का जन बल, मतदाता, नई पीढ़ी के मतदाता एक संकल्प लें कि हमेें शिक्षा भी चाहिए, रोटी भी चाहिए, देश की सुरक्षा भी चाहिए पर सबसे पहले कुत्तों के आतंकवाद से मुक्ति चाहिए। उनकी गंदगी से दूषित वातावरण शुद्ध चाहिए और कुत्ते सड़कों पर नहीं सरकारी बाड़ों में चाहिए या कुत्ता प्रेमियों के घरों में बंद रखने चाहिए। एक और बात आज ही देश के एक उच्च न्यायालय ने कहा है कि पशुओं, पक्षियों को भी जीने का अधिकार है। यह बहुत ही उत्तम विचार है, पर बूचड़खानों में कटते जानवर और तंदूरों में भूने जाते पक्षियों की चिंता व संरक्षण किया जाता तो बहुत अच्छा लगता।

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