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मलेशिया : धर्मनिरपेक्षता की मिसाल

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11:57 PM Jun 06, 2018 IST | Desk Team

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वैसे तो भारतीय मूल के लोग अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर आदि देशों में अपनी मेहनत और कौशल के बल पर छाये हुए हैं। विदेशों की सियासत में उनको प्रतिष्ठा हासिल हो चुकी है और वह संवैधानिक पदों पर आसीन हैं। कनाडा के रक्षा मंत्री भी भारतीय मूल के हैं। लोकतांत्रिक देशों में तो भारतीयों ने उच्च मुकाम हासिल किए हैं। कुछ ताे वहां के नीति निर्धारक हो चुके हैं लेकिन किसी इस्लामिक देश में भारतीय मूल के व्यक्ति की अटार्नी जनरल पद पर नियुक्ति से भारत गौरवान्वित हुआ है। मलेशिया के सुल्तान मोहम्मद पंचम ने भारतीय मूल के टॉमी थामस को देश का अटार्नी जनरल नियुक्त कर दिया है। सुल्तान ने मौजूदा अटार्नी जनरल मोहम्मद अपांडी अली की सेवाएं खत्म कर टॉमी थामस को नियुक्त किया है। टॉमी थामस पिछले 55 वर्षों में इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले अल्पसंख्यक व्यक्ति हैं। हाल ही में भारी बहुमत हासिल कर प्रधानमंत्री बने महातिर मोहम्मद ने ही उनके नाम का प्रस्ताव दिया था। हालांकि कुछ मुस्लिम संगठन मांग कर रहे हैं कि इस पद पर किसी मुस्लिम की ही नियुक्ति की जाए लेकिन मलेशिया के सुल्तान ने लोगों से अपील की है कि इस फैसले पर धार्मिक या नस्लीय संघर्ष पैदा न किया जाए। उन्होंने कहा है कि अटार्नी जनरल की नियुक्ति को धार्मिक और नस्लीय दृष्टि से नहीं देखा जाए क्योंकि प्रत्येक मलेशियाई व्यक्ति के साथ नस्ल और धर्म की परवाह किए बगैर निष्पक्ष व्यवहार होना चाहिए।

टॉमी थामस की नियुक्ति से मलेशियाई लोगों के विशेष अधिकारों के साथ-साथ इस्लाम के दर्जे पर कोई असर नहीं पड़ेगा। टॉमी टामस को संवैधानिक और दीवानी मामलों के कानूनी विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता है। वह पिछले 42 वर्षों से मलेशिया में वकील हैं। कुआलालम्पुर में जन्मे थामस विक्टोरिया इंस्टीट्यूशन, यूनिवर्सिटी ऑफ मानचेस्टर आैर लन्दन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के पूर्व छात्र रह चुके हैं। अटार्नी जनरल के पद पर नियुक्ति उनकी योग्यता और दक्षता को देखते हुए ही की गई है आैर योग्यता के आगे धर्म और नस्ल भी आड़े नहीं आई। मलेशिया की दो तिहाई आबादी यानी 3.1 करोड़ लोग मलस जाति के हैं आैर इस्लाम धर्म को मानते हैं इसलिए कुछ विरोधी स्वर उठ सकते हैं। 92 वर्षीय प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने और मलेशिया के सुल्तान ने योग्यतानुसार नियुक्ति कर सर्वधर्म समभाव का उत्कृष्ट उदाहरण स्थापित किया है। इससे पहले पिछले माह मलेशिया के इतिहास में पहली बार एक भारतीय मूल के सिख गोबिन्द सिंह देव को महातिर मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।

गोबिन्द सिंह देव कम्युनिकेशन और मल्टी मीडिया मंत्रालय देख रहे हैं। उनके अलावा मंत्रिमंडल में एक आैर भारतीय एम. कुलासेगरन को जगह मिली है। वह मानव संसाधन मंत्रालय सम्भाल रहे हैं। मलेशिया की आबादी में 24 प्रतिशत चीनी मूल के निवासी आैर 7 प्रतिशत भारतीय मूल के लोग हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नजीब रजाक, जो अब भ्रष्टाचार के मामलों का सामना कर रहे हैं, के शासनकाल में स्थानीय मलस नागरिकों को अनेक सुविधाएं दी गईं। सरकारी ठेकों, स्कूल-कॉलेजों में भी उन्हें प्राथमिकता दी गई जबकि चीनी मूल आैर भारतीय मूल के लोगों को प्रताड़ित किया गया। परिणामस्वरूप देश में अशांति और अराजकता फैल गई। मलेशिया में अल्पसंख्यकों को तंग करने के लिए गिरजाघरों को ढहाया गया और हिन्दू मंदिर नहीं बनने दिए गए। जो बने हुए थे उन्हें भी किसी न किसी बहाने गिराया गया। तब महातिर ने उन्हें बार-बार चेताया था कि सरकार को धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए लेकिन नजीब रजाक ने एक न सुनी। हर भ्रष्टाचारी शासन का अन्त तो एक न एक दिन होता है तो नजीब रजाक के शासनकाल का भी अन्त हो गया।

महर्षि अरविन्द कहते थे कि ‘‘भारत सदैव मानव जाति के लिए जिया है, उसे अपने लिए नहीं, उसे मानव जाति के लिए महान होना है। जिस धार्मिक संस्कृति को हम आज हिन्दू धर्म के नाम से पुकारते हैं उसने स्वयं अपना कोई नाम नहीं रखा, क्योंकि उसने स्वयं अपनी कोई साम्प्रदायिक सीमा नहीं बांधी। उसने सारे विश्व को अनुयायी बनाने का दावा भी नहीं ​किया। यह अकेला ऐसा धर्म है जो सत्य पर बल देता है और कहता है कि यही एकमात्र धर्म है, जो मानव कल्याण का आह्वान करता है।’’ सर्वधर्म समभाव, साम्प्रदायिक सौहार्द भारतीय संस्कृति के मूल में है। मुझे दुःख होता है जब देश में साम्प्रदायिक हिंसा होती है या फिर दलितों से मारपीट की जाती है। हम आज भी जाति-पाति की उलझनों में फंसे पड़े हैं। अगर मुस्लिम बहुल देश धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण स्थापित कर सकता है तो हम क्यों नहीं, आपको सोचना होगा।

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